Monday, May 25, 2015

पारदर्शिता से रहा परहेज,यूपी में सीएम हों चाहें मुलायम,माया या अखिलेश !



स्नैपशॉट्स पारदर्शिता से  रहा परहेज,यूपी में सीएम हों चाहें  मुलायम,माया या अखिलेश ! : यूपी में आरटीआई एक्ट के प्रचार प्रसार के लिए नहीं बनीं कोई कार्य-योजना और ही  हुआ कोई बजट आवंटन : एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं कथनी से उलट करनी करने बाले  मुलायम,माया ,अखिलेश
 



लखनऊ/तहरीर /२६ मई २०१५/  देश में पारदर्शिता का कानून या यूं कहें आरटीआई एक्ट साल २००५  में लागू हो गया था. हमारे जैसे आरटीआई कार्यकर्ताओं के प्रयासों से ये कानून देश की सर्वाधिक आवादी बाले सूबे में भी साल २००६ में राज्य सूचना आयोग के गठन के साथ मूर्त रूप में गया  परन्तु यदि मैं कहूँ कि उत्तर प्रदेश की सरकारों ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध कारगर माध्यमों में से सर्वाधिक कारगर  माने जाने बाले इस  पारदर्शिता कानून को लोकप्रिय बनाने से सदा ही परहेज किया है तो क्या आप मानेंगे ? शायद नहीं।  परन्तु मेरे द्वारा उत्तर प्रदेश शासन के प्रशासनिक सुधार विभाग में दायर एक आरटीआई के जबाब ने ये सिद्ध कर दिया है कि यूपी में मुलायम सिंह यादव, मायावती और अखिलेश यादव के नेतृत्व बाली  सरकारों में से किसी ने भी आरटीआई एक्ट के प्रचार प्रसार के लिए तो कोई कार्यक्रम बनाया और ही कोई पैसा ही खर्च किया है. 
 
मैंने साल २०१४ के जनवरी माह में उत्तर प्रदेश शासन के प्रशासनिक सुधार विभाग में एक आरटीआई दायर कर जानना चाहा  था कि प्रदेश में आरटीआई एक्ट लागू होने से तब तक सूबे की सरकारों ने पारदर्शिता के इस अस्त्र के प्रयोग की जानकारी सूबे के जनमानस तक  पंहुचाने के लिए क्या कार्यक्रम बनाये हैं और कितना बजट आवंटित  किया है। दुर्भाग्यपूर्ण है  कि सूबे में आरटीआई क्रियान्वयन का  नोडल विभाग होने पर भी उत्तर प्रदेश शासन के प्रशासनिक सुधार विभाग ने ०१ माह  में सूचना देने की वाध्यता होने पर भी साल २०१४ के जनवरी माह में  माँगी गयी सूचना को देने में  १५ माह लगा दिए।
 
प्रशासनिक सुधार अनुभाग - के अनुभाग अधिकारी और जन सूचना अधिकारी संकठा  प्रसाद ने दिनांक ०६ अप्रैल २०१५ को पत्र के माध्यम से मुझे बताया है कि यूपी की सरकारों ने सूबे में आरटीआई एक्ट लागू  होने से अब तक इस एक्ट के प्रचार प्रसार के कार्यक्रमों के लिए कोई बजट आवंटन नहीं किया है। 
 
आरटीआई एक्ट को भ्रष्टाचार के विरुद्ध कारगर माध्यमों में से सर्वाधिक कारगर  माना जाता है और ऐसे में मुलायम सिंह यादव, मायावती और अखिलेश यादव के नेतृत्व बाली यूपी की सरकारों द्वारा पारदर्शिता कानून के प्रचार प्रसार से मुंह मोड़ना  सामने आने से यह स्पष्ट हो रहा है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़े होने का दिखावा करने बाले इन तीनों राजनेताओं की कथनी और करनी में जमीन आसमान का फर्क है और यह भी कि इस मामले में ये तीनों ही एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं।
सामाजिक संगठन तहरीर इस आरटीआई के खुलासे के बाद सूबे के मुख्यमंत्री और राज्यपाल को ज्ञापन भेजकर आरटीआई एक्ट के प्रचार प्रसार के लिए कार्यक्रमों बनाने और इन कार्यक्रमों के लिए समुचित  बजट आवंटन करने की मांग करेगा ताकि पारदर्शिता का यह अस्त्र सूबे के जन -जन तक पहुंचकर सूबे को  भ्रष्टाचार मुक्त बनाने में अपनी निर्णायक भमिका निभा सके।
 

इंजीनियर संजय शर्मा
संस्थापक अध्यक्ष - तहरीर
मोबाइल ८०८१८९८०८१,९४५५५५३८३८

आरटीआई जबाब :->



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