Tuesday, May 26, 2015

यूपी में आरटीआई के प्रचार-प्रसार में ढेला भी खर्च नहीं

यूपी में आरटीआई के प्रचार-प्रसार में ढेला भी खर्च नहीं

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लखनऊ, 26 मई 2015। सूबे में भले ही 2006 में राज्य सूचना आयोग के गठन के साथ आरटीआई एक्ट मूर्त रूप में आ गया हो, लेकिन हालत ये है कि प्रदेश की सरकारों ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध कारगर माध्यमों में से सर्वाधिक कारगर माने जाने बाले इस पारदर्शिता कानून को लोकप्रिय बनाने से सदा ही परहेज किया है। आरटीआई के तहत मिली जानकारी से खुलासा हुआ है चाहे मुलायम, मायावती की सरकार रही हो या फिर मौजूदा अखिलेश सरकार, किसी ने भी आरटीआई एक्ट के प्रचार प्रसार के लिए न तो कोई कार्यक्रम बनाया और न ही कोई पैसा ही खर्च किया है।

सामाजिक कार्यकर्ता संजय शर्मा ने उत्तर प्रदेश शासन के प्रशासनिक सुधार विभाग में एक आरटीआई दायर कर जानना चाहा था कि प्रदेश में आरटीआई एक्ट लागू होने से अब तक सूबे की सरकारों ने पारदर्शिता के इस अस्त्र के प्रयोग की जानकारी सूबे के जनमानस तक पंहुचाने के लिए क्या कार्यक्रम बनाये हैं और कितना बजट आवंटित किया है। इसके जवाब में संजय को बताया गया है कि यूपी की सरकारों ने सूबे में आरटीआई एक्ट लागू होने से अब तक इस एक्ट के प्रचार प्रसार के कार्यक्रमों के लिए कोई बजट आवंटन नहीं किया है। खास बात है कि इस जवाब को इस जवाब को देने में ही 15 महीने का वक्त लगा दिया गया, जबकि एक माह में सूचना देने की बाध्यता है। आरटीआई एक्ट को भ्रष्टाचार के विरुद्ध कारगर माध्यमों में से सर्वाधिक कारगर माना जाता है। ऐसे में संजय का कहना है कि यूपी की सरकारों द्वारा पारदर्शिता कानून के प्रचार प्रसार से मुंह मोड़ने से स्पष्ट हो रहा है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़े होने का दिखावा करने बाले इन तीनों राजनेताओं की कथनी और करनी में जमीन आसमान का फर्क है। इस आरटीआई के खुलासे के बाद संजय अपने संगठन के जरिए सूबे के मुख्यमंत्री और राज्यपाल को ज्ञापन भेजकर आरटीआई एक्ट के प्रचार प्रसार के लिए कार्यक्रमों बनाने और इन कार्यक्रमों के लिए समुचित बजट आवंटन करने की मांग करने की तैयारी में है।

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