Saturday, March 25, 2017

अमर्यादित फेसबुक कमेन्ट के लिए नूतन ठाकुर के खिलाफ FIR की मांग l



लखनऊ / 25-03-17
लखनऊ स्थित समाजसेवी और मानवाधिकार कार्यकर्ता इंजीनियर संजय शर्मा ने लखनऊ के गोमतीनगर  
थाने के थानाध्यक्ष को तहरीर देकर IPS अमिताभ ठाकुर की पत्नी नूतन ठाकुर द्वारा सोशल मीडिया फेसबुक पर उनके खिलाफ अत्यंत अमर्यादित, निंदनीय, अनुचित और अभद्र टिप्पणी करने का आरोप लगाया है और नूतन के खिलाफ मुकद्दमा दर्ज कर नियमानुसार विधिक कार्यवाही किये जाने का अनुरोध किया है l

तहरीर में नूतन के पति और यूपी कैडर के आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर पर विभिन्न सोशल मीडिया पर उनके विरुद्ध मेरे निजी जीवन के वारे में अत्यंत ही अनुचित,अमर्यादित,अभद्र टिप्पणियां करते रहने का आरोप लगाया गया है l

FIR दर्ज कराने की यह तहरीर नूतन द्वारा अपने फेसबुक पर संजय को शिखंडी कहने के आधार पर दी गई है l संजय ने तहरीर में लिखा है कि एक महिला द्वारा 3 बच्चों के बाप एक पुरुष को शिखंडी कहना निश्चित ही एक गंभीर आपराधिक कृत्य है और इसीलिये उन्होंने गोमतीनगर  थाने के थानाध्यक्ष को तहरीर देकर नूतन ठाकुर के खिलाफ कानूनी कार्यवाही किये जाने की मांग की है l

तहरीर के साथ नूतन द्वारा फेसबुक पर डाली गई पोस्ट के स्क्रीनशॉट की प्रति साक्ष्य के रूप में प्रेषित की गई है l

थानाध्यक्ष गोमतीनगर को प्रेषित तहरीर निम्नवत है :
सेवा में,                                                                                                    
थानाध्यक्ष – थाना गोमतीनगर  
जनपद लखनऊ,उत्तर प्रदेश, पिन कोड  – 226010    

विषय : सुश्री नूतन ठाकुर के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर वैधानिक कार्यवाही करने हेतु प्रार्थना पत्र का प्रेषण l

महोदय,
मैं एक इंजीनियर,समाजसेवी और मानवाधिकार कार्यकर्ता हूँ l  प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने की यह तहरीर सुश्री नूतन ठाकुर निवासी 5/426, विराम खण्ड,गोमती नगर, लखनऊ मोबाइल नंबर 9415534525 धारक द्वारा फेसबुक पर मेरे विरुद्ध की गई अत्यंत अमर्यादित, निंदनीय, अनुचित और अभद्र टिप्पणी के सम्बन्ध में मुकद्दमा दर्ज कर नियमानुसार विधिक कार्यवाही किये जाने हेतु आपके समक्ष प्रस्तुत की जा रही है l
सुश्री नूतन ठाकुर और उनके पति श्री अमिताभ ठाकुर निवासी 5/426, विराम खण्ड,गोमती नगर, लखनऊ बहुत लम्बे समय से विभिन्न सोशल मीडिया पर मेरे विरुद्ध मेरे निजी जीवन के वारे में अत्यंत ही अनुचित,अमर्यादित,अभद्र टिप्पणियां करते रहे हैं जिनकी पुष्टि  सुश्री नूतन ठाकुर और उनके पति श्री अमिताभ ठाकुर की सोशल मीडिया ( फेसबुक,ट्विटर,ब्लॉग्स आदि ) पोस्ट्स से की जा सकती है l
26 जुलाई 2015 को नूतन ठाकुर ने अपने फेसबुक अकाउंट पर मेरे वारे में अत्यंत ही अमर्यादित, निंदनीय, अनुचित और अभद्र टिप्पणी “शायद ये सरकार एक औरत से डर गयी है जो संजय शर्मा जैसे शिखंडियों के जरिये छुपकर वार कर रही है” सार्वजनिक रूप से की थी l जब कतिपय लोगों ने मुझे बताया कि सुश्री नूतन ने फेसबुक पर मेरे सम्बन्ध में अत्यंत ही अमर्यादित, निंदनीय, अनुचित और अभद्र टिप्पणी की है तो मैंने सुश्री नूतन का फेसबुक अकाउंट देखा जिस पर नूतन ने मुझे शिखंडी कहा हुआ था l एक महिला द्वारा 3 बच्चों के बाप एक पुरुष को शिखंडी कहना निश्चित ही एक गंभीर आपराधिक कृत्य है l सुश्री नूतन ठाकुर की इस पोस्ट पर अन्य लोगों ने भी मेरे वारे में नितांत ही ही अमर्यादित, निंदनीय, अनुचित और अभद्र टिप्पणियां कीं हुईं थीं l सुश्री नूतन ठाकुर के पति श्री अमिताभ ठाकुर एक IPS अधिकारी हैं और सुश्री नूतन लोगों को अपने पति के उच्च पुलिस पद का हवाला देकर मृत्यु भय की धमकी देती रहती हैं इसीलिये उस समय जीवन भय के चलते मैंने इस मामले की ऍफ़.आई.आर. नहीं लिखाई और असहाय होकर सुश्री नूतन की पोस्ट के स्क्रीनशॉट के साथ अपने फेसबुक पर “ यदि कोई महिला अपनी स्त्रीसुलभ शालीनता खोकर किसी पुरुष को ‘शिखंडी’ की संघ्या दे तो बेचारा पुरुष ऐसी स्थिति में क्या करे ?” लिखा और तदसमय चुप होकर बैठ गया l मेरी दिनांक 26-07-15 की पोस्ट के स्क्रीनशॉट के 1 पेज की प्रति संलग्नक संख्या 1 के रूप में संलग्न है l
क्योंकि मैं एक विवाहित पुरुष हूँ और मेरे अपने 3 बच्चे भी हैं  अतः सुश्री नूतन द्वारा मेरे वारे में इस अत्यंत ही अमर्यादित, निंदनीय, अनुचित और अभद्र टिप्पणी को सार्वजनिक रूप से फेसबुक पर करने और इसका प्रकाशन समाचार पत्र नव भारत टाइम्स में हो जाने के कारण उन सभी जगहों पर मेरी बदनामी हुई जहाँ जहाँ यह अखबार गया और आज भी लोग यह अखबार दिखा-दिखा कर मुझे परेशान करते रहते हैं l समाचार पत्र नव भारत टाइम्स के समाचार  के 1 पेज की कटिंग की प्रति संलग्नक संख्या 2 के रूप में संलग्न है l
क्योंकि मैं एक विवाहित पुरुष हूँ और मेरे अपने 3 बच्चे भी हैं  अतः सुश्री नूतन द्वारा मेरे वारे में इस अत्यंत ही अमर्यादित, निंदनीय, अनुचित और अभद्र टिप्पणी को सार्वजनिक रूप से फेसबुक पर करने और इसका प्रकाशन समाचार पत्र नव भारत टाइम्स की वेबसाइट पर होने के कारण पूरे संसार में मेरी बदनामी हुई और आज भी निरंतर हो रही है l समाचार पत्र नव भारत टाइम्स की वेबसाइट पर दिनांक 27-07-15 को प्रदर्शित समाचार  के 1 पेज की प्रति संलग्नक संख्या 3 के रूप में संलग्न है l सुश्री नूतन ठाकुर द्वारा दिनांक 26-07-15 को की गई अमर्यादित पोस्ट के स्क्रीनशॉट के 1 पेज की प्रति संलग्नक संख्या 4 के रूप में संलग्न है l
सुश्री नूतन ठाकुर और उनके पति श्री अमिताभ ठाकुर द्वारा मेरे विरुद्ध की गई टिप्पणियों से सम्बंधित पोस्ट्स को डिलीट करके इन दोनों के द्वारा अपने उपरोक्त अपराधों के साक्ष्य नष्ट करने की बात भी कतिपय सूत्रों से ज्ञात हुई है l
मुझे यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि सुश्री नूतन ठाकुर के उपरोक्त कृत्य पूर्णतया अनुचित और अमर्यादित होने के साथ साथ स्पष्टतया गंभीर आपराधिक कृत्य हैं l सुश्री नूतन ठाकुर द्वारा कारित किये गये उपरोक्त आपराधिक कृत्य प्रथम दृष्टया ठन्डे दिमाग से किये गये गंभीर संज्ञेय अपराध प्रतीत होते हैंl   IPS श्री अमिताभ ठाकुर द्वारा अपनी पत्नी सुश्री नूतन ठाकुर के आपराधिक कृत्यों को छुपाने की साजिश करने की बात भी  कतिपय सूत्रों से ज्ञात हुई है l इस साजिश का खुलासा मात्र विधिक विवेचना द्वारा ही संभव है l
मा. सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिनांक 12-11-13 को ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (2014) 2 एससीसी 1 में निर्णय पारित करते हुए संज्ञेय अपराध होने की बात सामने आने पर ऍफ़.आई.आर. दर्ज होने के सम्बन्ध में विधिक वाध्यता का कानून प्रतिपादित करते हुए कहा है कि :
Conclusion/Directions:  111) In view of the aforesaid discussion, we hold: (i) Registration of FIR is mandatory under Section 154 of the Code, if the information discloses commission of a cognizable offence and no preliminary inquiry is permissible in such a situation. (ii) If the information received does not disclose a cognizable offence but indicates the necessity for an inquiry, a preliminary inquiry may be conducted only to ascertain whether cognizable offence is disclosed or not. (iii) If the inquiry discloses the commission of a cognizable offence, the FIR must be registered. In cases where preliminary inquiry ends in closing the complaint, a copy of the entry of such closure must be supplied to the first informant forthwith and not later than one week. It must disclose reasons in brief for closing the complaint and not proceeding further. (iv) The police officer cannot avoid his duty of registering offence if cognizable offence is disclosed. Action must be taken against erring officers who do  not register the FIR if information received by him discloses a cognizable offence. (v) The scope of preliminary inquiry is not to verify the veracity or otherwise of the information received but only to ascertain whether the information reveals any cognizable offence. (vi) As to what type and in which cases preliminary inquiry is to be conducted will depend on the facts and circumstances of each case. The category of cases in which preliminary inquiry may be made are as under: (a)Matrimonial disputes/ family disputes (b)Commercial offences (c) Medical negligence cases (d)Corruption cases (e) Cases where there is abnormal delay/laches in initiating criminal prosecution, for example, over 3 months delay in reporting the matter without satisfactorily explaining the reasons for delay. The aforesaid are only illustrations and not exhaustive of all conditions which may warrant  preliminary inquiry. (vii) While ensuring and protecting the rights of the accused and the complainant, a preliminary inquiry should be made time bound and in any case it should not exceed 7 days. The fact of such delay and the causes of it must be reflected in the General Diary entry. (viii) Since the General Diary/Station Diary/Daily Diary is the record of all information received in a police station, we direct that all information relating to cognizable offences, whether resulting in registration of FIR or leading to an inquiry, must be mandatorily and meticulously reflected in the said Diary and the decision to conduct a preliminary inquiry must also be reflected, as mentioned above.

भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को प्रेषित पत्र संख्या 15011/91/2013-SC/ST-W dated 12-10-15  द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार को स्पष्ट निर्देश दिये हैं कि संज्ञेय अपराध के मामले में पुलिस बिना किसी भेद-भाव के शीघ्रता से ऍफ़.आई.आर. दर्ज करे l

मेरी इस शिकायत के तथ्यों और शिकायत के साथ संलग्न साक्ष्यों के आलोक में उपरोक्त अभियुक्ता सुश्री नूतन ठाकुर के खिलाफ प्रथमदृष्टया गंभीर संज्ञेय अपराध बनते हैं l इस मामले में अपराध से सम्बंधित शेष अभिलेख और प्रमाण/साक्ष्य प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने के बाद मात्र विवेचक द्वारा ही प्राप्त किये जा सकते हैं और मुझे किसी भी स्थिति में नहीं मिल सकते हैं l

मा. सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिनांक 12-11-13 को ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (2014) 2 एससीसी 1 में पारित निर्णय और भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को प्रेषित पत्र संख्या 15011/91/2013-SC/ST-W dated 12-10-15  द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार को दिये निर्देशों के अनुपालन में इस प्रकरण में प्रथमदृष्टया संज्ञेय अपराध होने की बात सामने आने के कारण ऍफ़.आई.आर. दर्ज कर विवेचना कर साक्ष्य संकलन कर मामले का विधिक निस्तारण किया जाना आवश्यक है  अतः आपसे अनुरोध है कि सुश्री नूतन ठाकुर के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर वैधानिक कार्यवाही करने का कष्ट  करें l

संलग्नक : उपरोक्तानुसार ( 4 पेज )

दिनांक : 23-03 -17  

भवदीय,

( संजय शर्मा )
102,नारायण टावर, ऍफ़ ब्लाक ईदगाह के सामने
राजाजीपुरम, लखनऊ,उत्तर प्रदेश,भारत, पिन कोड - 226017   
मोबाइल :  7318554721  ई-मेल associated.news.asia@gmail.com




Saturday, March 4, 2017

यूपी : आखिर एक्टिविस्ट ने ही क्यों कर डाली सूचना आयोग को आरटीआई एक्ट की परिधि से बाहर करने की मांग ?


Lucknow/04-03-17
अब तक सभी आरटीआई एक्टिविस्ट किसी भी संस्था या क्षेत्र को पारदर्शिता के कानून या सूचना के अधिकार की परिधि में लाने की वकालत करते दिखाई दिए हैं पर यूपी में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें सूबे के जाने-माने आरटीआई विशेषज्ञ और एक्टिविस्ट इंजीनियर संजय शर्मा ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी को पत्र लिखकर यूपी के सूचना आयोग को आरटीआई की परिधि से बाहर करने की मांग कर डाली  है l जब आप संजय द्वारा उठाई गई इस अप्रत्याशित मांग को उठाने के कारण  के बारे में जानेंगे तो आप दांतों तले  उंगली दबाने को मजबूर हो जाएंगे क्योंकि संजय ने यह मांग यूपी के सूचना आयोग के जन सूचना अधिकारी तेजस्कर पांडेय, प्रथम अपीलीय अधिकारी राघवेंद्र विक्रम सिंह और मुख्य सूचना आयुक्त के धुर आरटीआई विरोधी रवैये के चलते मजबूरी में उठाई है l

मामला दरअसल ये है कि  एक्टिविस्ट संजय ने सूचना आयोग और सूचना आयुक्तों के क्रियाकलापों के सम्बन्ध में सूचना पाने के लिए सूचना आयोग में 8 आरटीआई आवेदन दिए थे l हालाँकि आरटीआई एक्ट की धारा 7 (1 ) के अनुसार 30 दिनों में सूचना दिया जाना अनिवार्य है पर तेजस्कर पांडेय ने  इन 8 में से किसी  भी  आरटीआई आवेदन पर 30 दिनों में कोई भी सूचना नहीं दी और संजय ने आरटीआई एक्ट की  धारा  18  का प्रयोग कर शिकायतों को आयोग पंहुँचा  दिया l बकौल संजय आयोग इन मामलों में सुनवाई तो कई हुईं  है पर मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी ने कार्यवाही के नाम पर कुछ भी नहीं किया है l

इन 8 आरटीआई आवेदनों पर संजय द्वारा आयोग में की गई प्रथम अपीलों को प्रथम अपीलीय अधिकारी राघवेंद्र विक्रम सिंह में ठन्डे बास्ते में डाल  दिया और इन पर आज तक कोई भी कार्यवाही नहीं हुई है l प्रथम अपीलों पर राघवेंद्र विक्रम सिंह द्वारा कार्यवाही न किये जाने पर संजय ने आयोग में द्वितीय अपीलें कीं हैं जिन पर  सुनवाई तो कई हुईं  है पर मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी ने कार्यवाही के नाम पर कुछ भी नहीं किया है l बकौल संजय 6  महीने से अधिक समय बीत जाने पर भी जन सूचना अधिकारी ने इन 8 में से 5 अपीलों के सम्बन्ध में आज तक कोई भी सूचना नहीं दी है और 3 मामलों में द्वितीय अपील दायर करने के बाद आरटीआई आवेदन के उत्तर भेजे हैं जिनके सम्बन्ध में उनके  द्वारा प्रेषित आपत्तियां आज तक जन सूचना अधिकारी के स्तर पर निस्तारण के लिए लंबित हैं l

बकौल संजय पूरे सूबे की सूचना दिलाने के लिए बने सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी की नाक के नीचे बैठकर आरटीआई एक्ट की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाने वाले जन सूचना अधिकारी पर कोई कार्यवाही न होने के इस मामले से खुद-ब-खुद सामने आ रहा है की जावेद उस्मानी ने यूपी में आरटीआई की लुटिया डुबोने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है l


अपने पत्र में संजय ने लिखा है "मेरे द्वारा मांगीं गई सूचनाएं उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में व्याप्त अनियमितताओं और भ्रष्टाचार तथा सूचना आयुक्तों से सम्बंधित अनियमितताओं और भ्रष्टाचार से सम्बंधित हैं l ऐसे में आयोग के तीनों स्तरों क्रमशः जन सूचना अधिकारी, प्रथम अपीलीय अधिकारी और मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा एक सोची समझी साजिश के तहत जानबूझकर मूर्ख बनने का नाटक करके सूचनाओं को सार्वजनिक करने में देरी की जा रही है और इस प्रकार मेरे संवैधानिक/नागरिक/मानव अधिकारों का हनन तो किया ही जा रहा है साथ ही साथ यह आयोग द्वारा किया जा रहा मेरा उत्पीडन भी है l"

संजय ने बताया कि जब आयोग को कोई सूचना देनी ही नहीं है तो फिर क्यों न इस बेबजह की ड्रामेवाजी  को समाप्त कराया जाये और  आयोग को आरटीआई एक्ट की परिधि से बाहर कराने की मुहिम  चलाई जाए ताकि उन जैसे जागरूक नागरिक बेबजह सूचना मांगकर अपना समय और धन नष्ट न करें तथा  आयोग और आयुक्तों को भी  खुलकर भ्रष्टाचार करने की छूट  विधिक रूप से मिल जाए l

संजय ने बताया कि जावेद उस्मानी  ने एक्ट की धारा 15(4) में कई तुगलकी आदेश जारी कर एक्ट को कमजोर करने की साजिश की है तो उन्होंने सोचा कि क्यों न जावेद उस्मानी को  पत्र लिखकर उनको एक और तुगलकी आदेश जारी करने की गुहार लगाईं जाए और इसीलिये उन्होंने उस्मानी को पत्र लिखकर आयोग को ही आरटीआई एक्ट की परिधि से बाहर करने का आदेश  जारी करके आयोग द्वारा किया जा रहा उनका उत्पीडन समाप्त कराने का अनुरोध किया है l

बकौल संजय वे अनियमितता दिखने पर  सूचना मांगने की अपनी आदत से मजबूर हैं और आयोग भ्रष्टाचार छुपाने के लिए सूचना न देने की आदत से मजबूर है l

संजय के अनुसार जब तक आयोग आरटीआई एक्ट की परिधि में रहेगा वे सूचना मांगते रहेंगे और सूचना आयोग के हाथों उत्पीड़ित होते रहेंगे इसीलिये उन्होंने आयोग को ही आरटीआई एक्ट की परिधि से बाहर करने का आदेश  जारी करने का अनुरोध किया है ताकि सारा बखेड़ा ही ख़त्म हो जाए l

संजय द्वारा भेजा  गया पत्र निम्नानुसार है :
सुनवाई कक्ष संख्या S1 - सुनवाई की तिथि 06-03-2017
सेवा में,                                                                                                                            
श्री जावेद उस्मानी - मुख्य सूचना आयुक्त
उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग,आर.टी.आई.भवन
गोमती नगर,लखनऊ,उत्तर प्रदेश, पिन कोड – 226016   

विषय : संजय शर्मा बनाम जन सूचना अधिकारी उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग से सम्बंधित 8 शिकायतों एवं 8 अपीलों ( कुल 16 प्रकरणों ) की दिनांक 06-03-17 की सुनवाई के रिकॉर्ड में लेने के लिए पत्र का प्रेषण  l
महोदय,
आपके संज्ञानार्थ सादर अवगत कराते हुए अनुरोध है कि :
1- दिनांक 06-03-17 को  सूचीबद्ध 16 प्रकरणों के सम्बन्ध में महोदय को एवं जन सूचना अधिकारी को पृथक-पृथक संबोधित करते हुए प्रकरण-वार आपत्ति विषयक पत्र  दिनांक 10-02-17,22-02-17 और 27-02-17 को आयोग के प्राप्ति पटल पर प्राप्त कराये जा चुके हैं जिन के सम्बन्ध में मुझे आज तक जन सूचना अधिकारी का कोई भी पत्र नहीं मिला है l कृपया दिनांक 10-02-17,22-02-17 और 27-02-17 को प्रेषित आपत्तियों का संज्ञान लेकर सुनवाई करें l
2- दिनांक 06-03-17 को  सूचीबद्ध मामलों में से अधिकतर मामले पूर्व में भी आयोग में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध थे किन्तु आप द्वारा इन मामलों की पूर्व की इन सुनवाइयों के समय इन प्रकरणों में गुण-दोष के आधार पर सूचना देने या न देने के सम्बन्ध में अपना अभिमत स्थिर कर जन सूचना अधिकारी को कोई निर्देश नहीं दिये गये जिसके कारण न केवल आयोग के समय का दुरुपयोग हुआ है अपितु मुझे सूचना दिलाने में नाहक ही बिलम्ब भी हुआ है और अधिनियम की मूल मंशा के खिलाफ काम हुआ है l   
3- उपरोक्त 16 प्रकरणों को जन सूचना अधिकारी के इस निवेदन पर एक साथ सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है कि सुनवाई में कार्यालय के समय का सदुपयोग हो सके जबकि उपरोक्त 16 प्रकरणों में से जो आठ शिकायतें हैं वे आठ की आठों शिकायतें महज इसलिए करनी पडीं हैं क्योंकि जन सूचना अधिकारी ने इन सभी शिकायतों से सम्बंधित  आरटीआई आवेदनों पर 30 दिनों में कोई भी सूचना नहीं दी है l अवशेष 8 द्वितीय अपीलें इस कारण करनी पडीं हैं कि प्रथम अपीलीय अधिकारी ने किसी भी प्रथम अपील की सुनवाई नहीं की है और जन सूचना अधिकारी ने इन 8 में से 5 अपीलों से सम्बंधित आरटीआई आवेदनों पर आज तक कोई भी सूचना नहीं दी है और 3 मामलों में द्वितीय अपील दायर करने के बाद आरटीआई आवेदन के उत्तर भेजे हैं जिनके सम्बन्ध में मेरे द्वारा प्रेषित आपत्तियां आज तक जन सूचना अधिकारी के स्तर पर निस्तारण के लिए लंबित हैं l उपरोक्त से स्पष्ट है कि आयोग के जन सूचना अधिकारी एक दोगली कार्यपद्धति के तहत कार्य करके न केवल आयोग का कीमती समय नष्ट करने के अपितु आयोग में आप की नाक के नीचे बैठकर आरटीआई एक्ट की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाने के दोषी हैं  जिसके लिए इनको धारा 20(1) और 20(2) के तहत दण्डित किया जाना अनिवार्य है l
4- उपरोक्त 16 मामलों में से जो 8 मामले धारा 18 की शिकायतों के हैं उन में मैंने सूचना प्राप्त करने की  नहीं अपितु 30 दिन से अधिक की प्रत्येक दिन की देरी के लिए जन सूचना अधिकारी को @250/- प्रतिदिन की दर से दण्डित करने की मांग की है l जन सूचना अधिकारी से प्रत्येक मामले में सूचना देने में 30 दिन से अधिक की प्रत्येक दिन की देरी के लिए स्पष्टीकरण तलब कर जन सूचना अधिकारी को धारा 20(1) के तहत दण्डित किया जाए l
5- उपरोक्त 16 मामलों में से जो 8 मामले धारा 19(3) की अपीलों के हैं उनमें आयोग के प्रथम अपीलीय अधिकारी को अधिनियम की धारा 19(6) के तहत लेखबद्ध किये गये कारणों के साथ आयोग के समक्ष तलब किया जाए और जन सूचना अधिकारी को उन 5 अपीलों से सम्बंधित आरटीआई आवेदनों पर, जिन पर आज तक कोई भी सूचना नहीं दी है, बिन्दुवार सूचना निःशुल्क देने के लिए और अवशेष 3 मामलों में मेरे द्वारा प्रेषित आपत्तियां का बिन्दुवार निराकरण कर सूचना निःशुल्क देने के लिए निर्देशित करने के साथ साथ आयोग में आप की नाक के नीचे बैठकर आरटीआई एक्ट की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाने के लिए  जन सूचना अधिकारी से प्रत्येक मामले में स्पष्टीकरण तलब कर उसे धारा 20(2) के तहत दण्डित किया जाए l
6- सुनवाई में  हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा Sanjay Hindwan vs. State Information Commission and others, CWP No.640 of 2012-D, decided on 24.08.2012 के आदेश और HIGH COURT OF PUNJAB AND HARYANA AT CHANDIGARH द्वारा CWP No.17758 of 2014 Smt. Chander Kanta ...Petitioner Versus The State Information Commission and others ...Respondents के सम्बन्ध में पारित आदेश दिनांक 19.05.2016 का संज्ञान लेकर जनसूचना अधिकारी को 30 दिन के अधिक की अवधि की प्रत्येक दिन की देरी के लिए एक्ट की धारा 20 के तहत दण्डित किया जाए l
7- मेरे द्वारा मांगीं गई सूचनाएं उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में व्याप्त अनियमितताओं और भ्रष्टाचार तथा सूचना आयुक्तों से सम्बंधित अनियमितताओं और भ्रष्टाचार से सम्बंधित हैं l ऐसे में आयोग के तीनों स्तरों क्रमशः जन सूचना अधिकारी, प्रथम अपीलीय अधिकारी और मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा एक सोची समझी साजिश के तहत जानबूझकर मूर्ख बनने का नाटक करके सूचनाओं को सार्वजनिक करने में देरी की जा रही है और इस प्रकार मेरे संवैधानिक/नागरिक/मानव अधिकारों का हनन तो किया ही जा रहा है साथ ही साथ यह आयोग द्वारा किया जा रहा मेरा उत्पीडन भी है l  कृपया या तो आयोग से सम्बंधित उत्तर प्रदेश आरटीआई नियमावली 2015 के प्रारूप 3 को आयोग की वेबसाइट पर प्रदर्शित कर प्रति सप्ताह अपडेट कराने के लिए या फिर आयोग को आरटीआई एक्ट की परिधि से बाहर करने का आदेश एक्ट की धारा 15(4) में जारी कर आयोग द्वारा किया जा रहा मेरा उत्पीडन समाप्त कराने का कष्ट करें l

प्रतिलिपि : श्री तेजस्कर पाण्डेय,उप सचिव एवं जन सूचना अधिकारी, राज्य सूचना आयोग,आर.टी.आई.भवन,गोमती नगर,लखनऊ,उत्तर प्रदेश, पिन कोड – 226016  को सूचनार्थ एवं आवश्यक कार्यवाही हेतु प्रेषित l

भवदीय,   

( संजय शर्मा )
102, नारायण टॉवर, ईदगाह के सामने,ऍफ़ ब्लाक

राजाजीपुरम ,लखनऊ, उत्तर प्रदेश, भारत,पिन कोड – 226017    ई –मेल पता :   tahririndia@gmail.com      मोबाइल :  7318554721                                                                        

Friday, March 3, 2017

उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग को आरटीआई एक्ट की परिधि से बाहर करने की गुहार ?


सुनवाई कक्ष संख्या S1 - सुनवाई की तिथि 06-03-2017
सेवा में,                                                                                                                            
श्री जावेद उस्मानी - मुख्य सूचना आयुक्त
उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग,आर.टी.आई.भवन
गोमती नगर,लखनऊ,उत्तर प्रदेश, पिन कोड – 226016      

विषय : संजय शर्मा बनाम जन सूचना अधिकारी उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग से सम्बंधित 8 शिकायतों एवं 8 अपीलों ( कुल 16 प्रकरणों ) की दिनांक 06-03-17 की सुनवाई के रिकॉर्ड में लेने के लिए पत्र का प्रेषण  l

महोदय,
आपके संज्ञानार्थ सादर अवगत कराना है कि :
1- दिनांक 06-03-17 को  सूचीबद्ध 16 प्रकरणों के सम्बन्ध में महोदय को एवं जन सूचना अधिकारी को पृथक-पृथक संबोधित करते हुए प्रकरण-वार आपत्ति विषयक पत्र  दिनांक 10-02-17,22-02-17 और 27-02-17 को आयोग के प्राप्ति पटल पर प्राप्त कराये जा चुके हैं जिन के सम्बन्ध में मुझे आज तक जन सूचना अधिकारी का कोई भी पत्र नहीं मिला है l कृपया दिनांक 10-02-17,22-02-17 और 27-02-17 को प्रेषित आपत्तियों का संज्ञान लेकर सुनवाई करें l
2- दिनांक 06-03-17 को  सूचीबद्ध मामलों में से अधिकतर मामले पूर्व में भी आयोग में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध थे किन्तु आप द्वारा इन मामलों की पूर्व की इन सुनवाइयों के समय इन प्रकरणों में गुण-दोष के आधार पर सूचना देने या न देने के सम्बन्ध में अपना अभिमत स्थिर कर जन सूचना अधिकारी को कोई निर्देश नहीं दिये गये जिसके कारण न केवल आयोग के समय का दुरुपयोग हुआ है अपितु मुझे सूचना दिलाने में नाहक ही बिलम्ब भी हुआ है और अधिनियम की मूल मंशा के खिलाफ काम हुआ है l   
3- उपरोक्त 16 प्रकरणों को जन सूचना अधिकारी के इस निवेदन पर एक साथ सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है कि सुनवाई में कार्यालय के समय का सदुपयोग हो सके जबकि उपरोक्त 16 प्रकरणों में से जो आठ शिकायतें हैं वे आठ की आठों शिकायतें महज इसलिए करनी पडीं हैं क्योंकि जन सूचना अधिकारी ने इन सभी शिकायतों से सम्बंधित  आरटीआई आवेदनों पर 30 दिनों में कोई भी सूचना नहीं दी है l अवशेष 8 द्वितीय अपीलें इस कारण करनी पडीं हैं कि प्रथम अपीलीय अधिकारी ने किसी भी प्रथम अपील की सुनवाई नहीं की है और जन सूचना अधिकारी ने इन 8 में से 5 अपीलों से सम्बंधित आरटीआई आवेदनों पर आज तक कोई भी सूचना नहीं दी है और 3 मामलों में द्वितीय अपील दायर करने के बाद आरटीआई आवेदन के उत्तर भेजे हैं जिनके सम्बन्ध में मेरे द्वारा प्रेषित आपत्तियां आज तक जन सूचना अधिकारी के स्तर पर निस्तारण के लिए लंबित हैं l उपरोक्त से स्पष्ट है कि आयोग के जन सूचना अधिकारी एक दोगली कार्यपद्धति के तहत कार्य करके न केवल आयोग का कीमती समय नष्ट करने के अपितु आयोग में आप की नाक के नीचे बैठकर आरटीआई एक्ट की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाने के दोषी हैं  जिसके लिए इनको धारा 20(1) और 20(2) के तहत दण्डित किया जाना अनिवार्य है l
4- उपरोक्त 16 मामलों में से जो 8 मामले धारा 18 की शिकायतों के हैं उन में मैंने सूचना प्राप्त करने की  नहीं अपितु 30 दिन से अधिक की प्रत्येक दिन की देरी के लिए जन सूचना अधिकारी को @250/- प्रतिदिन की दर से दण्डित करने की मांग की है l जन सूचना अधिकारी से प्रत्येक मामले में सूचना देने में 30 दिन से अधिक की प्रत्येक दिन की देरी के लिए स्पष्टीकरण तलब कर जन सूचना अधिकारी को धारा 20(1) के तहत दण्डित किया जाए l
5- उपरोक्त 16 मामलों में से जो 8 मामले धारा 19(3) की अपीलों के हैं उनमें आयोग के प्रथम अपीलीय अधिकारी को अधिनियम की धारा 19(6) के तहत लेखबद्ध किये गये कारणों के साथ आयोग के समक्ष तलब किया जाए और जन सूचना अधिकारी को उन 5 अपीलों से सम्बंधित आरटीआई आवेदनों पर, जिन पर आज तक कोई भी सूचना नहीं दी है, बिन्दुवार सूचना निःशुल्क देने के लिए और अवशेष 3 मामलों में मेरे द्वारा प्रेषित आपत्तियां का बिन्दुवार निराकरण कर सूचना निःशुल्क देने के लिए निर्देशित करने के साथ साथ आयोग में आप की नाक के नीचे बैठकर आरटीआई एक्ट की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाने के लिए  जन सूचना अधिकारी से प्रत्येक मामले में स्पष्टीकरण तलब कर उसे धारा 20(2) के तहत दण्डित किया जाए l
6- सुनवाई में  हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा Sanjay Hindwan vs. State Information Commission and others, CWP No.640 of 2012-D, decided on 24.08.2012 के आदेश और HIGH COURT OF PUNJAB AND HARYANA AT CHANDIGARH द्वारा CWP No.17758 of 2014 Smt. Chander Kanta ...Petitioner Versus The State Information Commission and others ...Respondents के सम्बन्ध में पारित आदेश दिनांक 19.05.2016 का संज्ञान लेकर जनसूचना अधिकारी को 30 दिन के अधिक की अवधि की प्रत्येक दिन की देरी के लिए एक्ट की धारा 20 के तहत दण्डित किया जाए l
7- मेरे द्वारा मांगीं गई सूचनाएं उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में व्याप्त अनियमितताओं और भ्रष्टाचार तथा सूचना आयुक्तों से सम्बंधित अनियमितताओं और भ्रष्टाचार से सम्बंधित हैं l ऐसे में आयोग के तीनों स्तरों क्रमशः जन सूचना अधिकारी, प्रथम अपीलीय अधिकारी और मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा एक सोची समझी साजिश के तहत जानबूझकर मूर्ख बनने का नाटक करके सूचनाओं को सार्वजनिक करने में देरी की जा रही है और इस प्रकार मेरे संवैधानिक/नागरिक/मानव अधिकारों का हनन तो किया ही जा रहा है साथ ही साथ यह आयोग द्वारा किया जा रहा मेरा उत्पीडन भी है l  कृपया या तो आयोग से सम्बंधित उत्तर प्रदेश आरटीआई नियमावली 2015 के प्रारूप 3 को आयोग की वेबसाइट पर प्रदर्शित कर प्रति सप्ताह अपडेट कराने के लिए या फिर आयोग को आरटीआई एक्ट की परिधि से बाहर करने का आदेश एक्ट की धारा 15(4) में जारी कर आयोग द्वारा किया जा रहा मेरा उत्पीडन समाप्त कराने का कष्ट करें l

प्रतिलिपि : श्री तेजस्कर पाण्डेय,उप सचिव एवं जन सूचना अधिकारी, राज्य सूचना आयोग,आर.टी.आई.भवन,गोमती नगर,लखनऊ,उत्तर प्रदेश, पिन कोड – 226016  को सूचनार्थ एवं आवश्यक कार्यवाही हेतु प्रेषित l

दिनांक :  03-03-17

भवदीय, 

( संजय शर्मा )
102, नारायण टॉवर, ईदगाह के सामने,ऍफ़ ब्लाक
राजाजीपुरम ,लखनऊ, उत्तर प्रदेश, भारत,पिन कोड – 226017

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