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Saturday, March 4, 2017

यूपी : आखिर एक्टिविस्ट ने ही क्यों कर डाली सूचना आयोग को आरटीआई एक्ट की परिधि से बाहर करने की मांग ?


Lucknow/04-03-17
अब तक सभी आरटीआई एक्टिविस्ट किसी भी संस्था या क्षेत्र को पारदर्शिता के कानून या सूचना के अधिकार की परिधि में लाने की वकालत करते दिखाई दिए हैं पर यूपी में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें सूबे के जाने-माने आरटीआई विशेषज्ञ और एक्टिविस्ट इंजीनियर संजय शर्मा ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी को पत्र लिखकर यूपी के सूचना आयोग को आरटीआई की परिधि से बाहर करने की मांग कर डाली  है l जब आप संजय द्वारा उठाई गई इस अप्रत्याशित मांग को उठाने के कारण  के बारे में जानेंगे तो आप दांतों तले  उंगली दबाने को मजबूर हो जाएंगे क्योंकि संजय ने यह मांग यूपी के सूचना आयोग के जन सूचना अधिकारी तेजस्कर पांडेय, प्रथम अपीलीय अधिकारी राघवेंद्र विक्रम सिंह और मुख्य सूचना आयुक्त के धुर आरटीआई विरोधी रवैये के चलते मजबूरी में उठाई है l

मामला दरअसल ये है कि  एक्टिविस्ट संजय ने सूचना आयोग और सूचना आयुक्तों के क्रियाकलापों के सम्बन्ध में सूचना पाने के लिए सूचना आयोग में 8 आरटीआई आवेदन दिए थे l हालाँकि आरटीआई एक्ट की धारा 7 (1 ) के अनुसार 30 दिनों में सूचना दिया जाना अनिवार्य है पर तेजस्कर पांडेय ने  इन 8 में से किसी  भी  आरटीआई आवेदन पर 30 दिनों में कोई भी सूचना नहीं दी और संजय ने आरटीआई एक्ट की  धारा  18  का प्रयोग कर शिकायतों को आयोग पंहुँचा  दिया l बकौल संजय आयोग इन मामलों में सुनवाई तो कई हुईं  है पर मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी ने कार्यवाही के नाम पर कुछ भी नहीं किया है l

इन 8 आरटीआई आवेदनों पर संजय द्वारा आयोग में की गई प्रथम अपीलों को प्रथम अपीलीय अधिकारी राघवेंद्र विक्रम सिंह में ठन्डे बास्ते में डाल  दिया और इन पर आज तक कोई भी कार्यवाही नहीं हुई है l प्रथम अपीलों पर राघवेंद्र विक्रम सिंह द्वारा कार्यवाही न किये जाने पर संजय ने आयोग में द्वितीय अपीलें कीं हैं जिन पर  सुनवाई तो कई हुईं  है पर मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी ने कार्यवाही के नाम पर कुछ भी नहीं किया है l बकौल संजय 6  महीने से अधिक समय बीत जाने पर भी जन सूचना अधिकारी ने इन 8 में से 5 अपीलों के सम्बन्ध में आज तक कोई भी सूचना नहीं दी है और 3 मामलों में द्वितीय अपील दायर करने के बाद आरटीआई आवेदन के उत्तर भेजे हैं जिनके सम्बन्ध में उनके  द्वारा प्रेषित आपत्तियां आज तक जन सूचना अधिकारी के स्तर पर निस्तारण के लिए लंबित हैं l

बकौल संजय पूरे सूबे की सूचना दिलाने के लिए बने सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी की नाक के नीचे बैठकर आरटीआई एक्ट की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाने वाले जन सूचना अधिकारी पर कोई कार्यवाही न होने के इस मामले से खुद-ब-खुद सामने आ रहा है की जावेद उस्मानी ने यूपी में आरटीआई की लुटिया डुबोने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है l


अपने पत्र में संजय ने लिखा है "मेरे द्वारा मांगीं गई सूचनाएं उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में व्याप्त अनियमितताओं और भ्रष्टाचार तथा सूचना आयुक्तों से सम्बंधित अनियमितताओं और भ्रष्टाचार से सम्बंधित हैं l ऐसे में आयोग के तीनों स्तरों क्रमशः जन सूचना अधिकारी, प्रथम अपीलीय अधिकारी और मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा एक सोची समझी साजिश के तहत जानबूझकर मूर्ख बनने का नाटक करके सूचनाओं को सार्वजनिक करने में देरी की जा रही है और इस प्रकार मेरे संवैधानिक/नागरिक/मानव अधिकारों का हनन तो किया ही जा रहा है साथ ही साथ यह आयोग द्वारा किया जा रहा मेरा उत्पीडन भी है l"

संजय ने बताया कि जब आयोग को कोई सूचना देनी ही नहीं है तो फिर क्यों न इस बेबजह की ड्रामेवाजी  को समाप्त कराया जाये और  आयोग को आरटीआई एक्ट की परिधि से बाहर कराने की मुहिम  चलाई जाए ताकि उन जैसे जागरूक नागरिक बेबजह सूचना मांगकर अपना समय और धन नष्ट न करें तथा  आयोग और आयुक्तों को भी  खुलकर भ्रष्टाचार करने की छूट  विधिक रूप से मिल जाए l

संजय ने बताया कि जावेद उस्मानी  ने एक्ट की धारा 15(4) में कई तुगलकी आदेश जारी कर एक्ट को कमजोर करने की साजिश की है तो उन्होंने सोचा कि क्यों न जावेद उस्मानी को  पत्र लिखकर उनको एक और तुगलकी आदेश जारी करने की गुहार लगाईं जाए और इसीलिये उन्होंने उस्मानी को पत्र लिखकर आयोग को ही आरटीआई एक्ट की परिधि से बाहर करने का आदेश  जारी करके आयोग द्वारा किया जा रहा उनका उत्पीडन समाप्त कराने का अनुरोध किया है l

बकौल संजय वे अनियमितता दिखने पर  सूचना मांगने की अपनी आदत से मजबूर हैं और आयोग भ्रष्टाचार छुपाने के लिए सूचना न देने की आदत से मजबूर है l

संजय के अनुसार जब तक आयोग आरटीआई एक्ट की परिधि में रहेगा वे सूचना मांगते रहेंगे और सूचना आयोग के हाथों उत्पीड़ित होते रहेंगे इसीलिये उन्होंने आयोग को ही आरटीआई एक्ट की परिधि से बाहर करने का आदेश  जारी करने का अनुरोध किया है ताकि सारा बखेड़ा ही ख़त्म हो जाए l

संजय द्वारा भेजा  गया पत्र निम्नानुसार है :
सुनवाई कक्ष संख्या S1 - सुनवाई की तिथि 06-03-2017
सेवा में,                                                                                                                            
श्री जावेद उस्मानी - मुख्य सूचना आयुक्त
उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग,आर.टी.आई.भवन
गोमती नगर,लखनऊ,उत्तर प्रदेश, पिन कोड – 226016   

विषय : संजय शर्मा बनाम जन सूचना अधिकारी उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग से सम्बंधित 8 शिकायतों एवं 8 अपीलों ( कुल 16 प्रकरणों ) की दिनांक 06-03-17 की सुनवाई के रिकॉर्ड में लेने के लिए पत्र का प्रेषण  l
महोदय,
आपके संज्ञानार्थ सादर अवगत कराते हुए अनुरोध है कि :
1- दिनांक 06-03-17 को  सूचीबद्ध 16 प्रकरणों के सम्बन्ध में महोदय को एवं जन सूचना अधिकारी को पृथक-पृथक संबोधित करते हुए प्रकरण-वार आपत्ति विषयक पत्र  दिनांक 10-02-17,22-02-17 और 27-02-17 को आयोग के प्राप्ति पटल पर प्राप्त कराये जा चुके हैं जिन के सम्बन्ध में मुझे आज तक जन सूचना अधिकारी का कोई भी पत्र नहीं मिला है l कृपया दिनांक 10-02-17,22-02-17 और 27-02-17 को प्रेषित आपत्तियों का संज्ञान लेकर सुनवाई करें l
2- दिनांक 06-03-17 को  सूचीबद्ध मामलों में से अधिकतर मामले पूर्व में भी आयोग में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध थे किन्तु आप द्वारा इन मामलों की पूर्व की इन सुनवाइयों के समय इन प्रकरणों में गुण-दोष के आधार पर सूचना देने या न देने के सम्बन्ध में अपना अभिमत स्थिर कर जन सूचना अधिकारी को कोई निर्देश नहीं दिये गये जिसके कारण न केवल आयोग के समय का दुरुपयोग हुआ है अपितु मुझे सूचना दिलाने में नाहक ही बिलम्ब भी हुआ है और अधिनियम की मूल मंशा के खिलाफ काम हुआ है l   
3- उपरोक्त 16 प्रकरणों को जन सूचना अधिकारी के इस निवेदन पर एक साथ सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है कि सुनवाई में कार्यालय के समय का सदुपयोग हो सके जबकि उपरोक्त 16 प्रकरणों में से जो आठ शिकायतें हैं वे आठ की आठों शिकायतें महज इसलिए करनी पडीं हैं क्योंकि जन सूचना अधिकारी ने इन सभी शिकायतों से सम्बंधित  आरटीआई आवेदनों पर 30 दिनों में कोई भी सूचना नहीं दी है l अवशेष 8 द्वितीय अपीलें इस कारण करनी पडीं हैं कि प्रथम अपीलीय अधिकारी ने किसी भी प्रथम अपील की सुनवाई नहीं की है और जन सूचना अधिकारी ने इन 8 में से 5 अपीलों से सम्बंधित आरटीआई आवेदनों पर आज तक कोई भी सूचना नहीं दी है और 3 मामलों में द्वितीय अपील दायर करने के बाद आरटीआई आवेदन के उत्तर भेजे हैं जिनके सम्बन्ध में मेरे द्वारा प्रेषित आपत्तियां आज तक जन सूचना अधिकारी के स्तर पर निस्तारण के लिए लंबित हैं l उपरोक्त से स्पष्ट है कि आयोग के जन सूचना अधिकारी एक दोगली कार्यपद्धति के तहत कार्य करके न केवल आयोग का कीमती समय नष्ट करने के अपितु आयोग में आप की नाक के नीचे बैठकर आरटीआई एक्ट की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाने के दोषी हैं  जिसके लिए इनको धारा 20(1) और 20(2) के तहत दण्डित किया जाना अनिवार्य है l
4- उपरोक्त 16 मामलों में से जो 8 मामले धारा 18 की शिकायतों के हैं उन में मैंने सूचना प्राप्त करने की  नहीं अपितु 30 दिन से अधिक की प्रत्येक दिन की देरी के लिए जन सूचना अधिकारी को @250/- प्रतिदिन की दर से दण्डित करने की मांग की है l जन सूचना अधिकारी से प्रत्येक मामले में सूचना देने में 30 दिन से अधिक की प्रत्येक दिन की देरी के लिए स्पष्टीकरण तलब कर जन सूचना अधिकारी को धारा 20(1) के तहत दण्डित किया जाए l
5- उपरोक्त 16 मामलों में से जो 8 मामले धारा 19(3) की अपीलों के हैं उनमें आयोग के प्रथम अपीलीय अधिकारी को अधिनियम की धारा 19(6) के तहत लेखबद्ध किये गये कारणों के साथ आयोग के समक्ष तलब किया जाए और जन सूचना अधिकारी को उन 5 अपीलों से सम्बंधित आरटीआई आवेदनों पर, जिन पर आज तक कोई भी सूचना नहीं दी है, बिन्दुवार सूचना निःशुल्क देने के लिए और अवशेष 3 मामलों में मेरे द्वारा प्रेषित आपत्तियां का बिन्दुवार निराकरण कर सूचना निःशुल्क देने के लिए निर्देशित करने के साथ साथ आयोग में आप की नाक के नीचे बैठकर आरटीआई एक्ट की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाने के लिए  जन सूचना अधिकारी से प्रत्येक मामले में स्पष्टीकरण तलब कर उसे धारा 20(2) के तहत दण्डित किया जाए l
6- सुनवाई में  हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा Sanjay Hindwan vs. State Information Commission and others, CWP No.640 of 2012-D, decided on 24.08.2012 के आदेश और HIGH COURT OF PUNJAB AND HARYANA AT CHANDIGARH द्वारा CWP No.17758 of 2014 Smt. Chander Kanta ...Petitioner Versus The State Information Commission and others ...Respondents के सम्बन्ध में पारित आदेश दिनांक 19.05.2016 का संज्ञान लेकर जनसूचना अधिकारी को 30 दिन के अधिक की अवधि की प्रत्येक दिन की देरी के लिए एक्ट की धारा 20 के तहत दण्डित किया जाए l
7- मेरे द्वारा मांगीं गई सूचनाएं उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में व्याप्त अनियमितताओं और भ्रष्टाचार तथा सूचना आयुक्तों से सम्बंधित अनियमितताओं और भ्रष्टाचार से सम्बंधित हैं l ऐसे में आयोग के तीनों स्तरों क्रमशः जन सूचना अधिकारी, प्रथम अपीलीय अधिकारी और मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा एक सोची समझी साजिश के तहत जानबूझकर मूर्ख बनने का नाटक करके सूचनाओं को सार्वजनिक करने में देरी की जा रही है और इस प्रकार मेरे संवैधानिक/नागरिक/मानव अधिकारों का हनन तो किया ही जा रहा है साथ ही साथ यह आयोग द्वारा किया जा रहा मेरा उत्पीडन भी है l  कृपया या तो आयोग से सम्बंधित उत्तर प्रदेश आरटीआई नियमावली 2015 के प्रारूप 3 को आयोग की वेबसाइट पर प्रदर्शित कर प्रति सप्ताह अपडेट कराने के लिए या फिर आयोग को आरटीआई एक्ट की परिधि से बाहर करने का आदेश एक्ट की धारा 15(4) में जारी कर आयोग द्वारा किया जा रहा मेरा उत्पीडन समाप्त कराने का कष्ट करें l

प्रतिलिपि : श्री तेजस्कर पाण्डेय,उप सचिव एवं जन सूचना अधिकारी, राज्य सूचना आयोग,आर.टी.आई.भवन,गोमती नगर,लखनऊ,उत्तर प्रदेश, पिन कोड – 226016  को सूचनार्थ एवं आवश्यक कार्यवाही हेतु प्रेषित l

भवदीय,   

( संजय शर्मा )
102, नारायण टॉवर, ईदगाह के सामने,ऍफ़ ब्लाक

राजाजीपुरम ,लखनऊ, उत्तर प्रदेश, भारत,पिन कोड – 226017    ई –मेल पता :   tahririndia@gmail.com      मोबाइल :  7318554721                                                                        

Monday, August 1, 2016

पीएम मोदी भूले गंगा से किये वादे ! : ऐश्वर्या की RTI से उजागर हुई ‘नमामि गंगे’ पर ‘मोदी सरकार’ की सुस्ती.







विशेष समाचार का सार  ©TAHRIR : लखनऊ के सिटी मोंटेसरी स्कूल की राजाजीपुरम शाखा की कक्षा 10 की छात्रा और ‘आरटीआई गर्ल’ के नाम से विख्यात 14 वर्षीय ऐश्वर्या पाराशर की एक आरटीआई पर भारत सरकार के जल संसाधन,नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय द्वारा दिए गए जबाब को देखकर लगता है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी चुनाव से पूर्व गंगा नदी की सफाई पर किये गए अपने बड़े बड़े वादों को शायद भूल गए हैं और गंगा नदी की साफ-सफाई के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की बहुप्रचारित नमामि गंगे योजना महज फाइलों, सरकारी विज्ञापनों, राजनैतिक आयोजनों और राजनैतिक बयानबाजी तक ही सिमट कर रह गयी है.



Lucknow/02 August 2016/ Written by Sanjay Sharma ©TAHRIR


लगभग सवा दो साल पहले भाजपा द्वारा प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार  बनाए गए नरेन्द्र मोदी ने उत्तरप्रदेश की  बनारस लोकसभा सीट से नामांकन भरने के पहले सार्वजनिक रूप से कहा था पहले मुझे लगा था मैं यहां आया, या फिर मुझे पार्टी ने यहां भेजा है, लेकिन अब मुझे लगता है कि मैं मां गंगा की गोद में लौटा हूं. तब मोदी  ने सार्वजनिक रूप से भावुक होते हुए कहा था न तो मैं आया हूं और न ही मुझे भेजा गया है.दरअसल, मुझे तो मां गंगा ने यहां बुलाया है.यहां आकर मैं वैसी ही अनुभूति कर रहा हूं, जैसे एक बालक अपनी मां की गोद में करता है. मोदी ने उस समय यह भी कहा था कि वे गंगा को साबरमती से भी बेहतर बनाएंगे. पर अब लखनऊ के सिटी मोंटेसरी स्कूल की राजाजीपुरम शाखा की कक्षा 10 की छात्रा और ‘आरटीआई गर्ल’ के नाम से विख्यात 14 वर्षीय ऐश्वर्या पाराशर की एक आरटीआई पर भारत सरकार के जल संसाधन,नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय द्वारा दिए गए जबाब को देखकर लगता है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी चुनाव से पूर्व गंगा नदी की सफाई पर किये गए अपने बड़े बड़े वादों को शायद भूल गए हैं और गंगा नदी की साफ-सफाई के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की बहुप्रचारित नमामि गंगे योजना महज फाइलों, सरकारी विज्ञापनों, राजनैतिक आयोजनों और राजनैतिक बयानबाजी तक ही सिमट कर रह गयी है.



दरअसल ऐश्वर्या ने बीते 09 मई को प्रधानमंत्री कार्यालय में एक आरटीआई अर्जी देकर नमामि गंगे योजना पर केंद्र सरकार द्वारा किये गए खर्चों, प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आयोजित बैठकों और गंगा के प्रदूषण  को रोकने के सम्बन्ध में 7 बिन्दुओं पर जानकारी चाही थी. प्रधानमंत्री कार्यालय के अवर सचिव और केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी सुब्रतो हाजरा ने बीते 6 जून को ऐश्वर्या को सूचित किया कि नमामि गंगे योजना से सम्बंधित कोई भी जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय में नहीं है और ऐश्वर्या की अर्जी अधिनियम की धारा 6(3) के अंतर्गत भारत सरकार के जल संसाधन,नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग को अंतरित कर दी. जल संसाधन,नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के अवर सचिव एवं जन सूचना अधिकारी के. के. सपरा ने बीते 4 जुलाई के पत्र के माध्यम से ऐश्वर्या को जो सूचना दी है वह अत्यधिक चौंकाने वाली है और नमामि गंगे योजना के क्रियान्वयन को लेकर केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वास्तव में गंभीर होने पर एक बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा रही है. ऐश्वर्या को दी गयी सूचना  के अनुसार सरकार बनाने के बाद से अब तक केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने गंगा की साफ-सफाई के लिए निर्धारित बजटीय आबंटन में कटौती तो की ही है साथ ही साथ सरकार आबंटित बजट की धनराशि को खर्च करने में भी विफल रही है.



सपरा ने ऐश्वर्या को बताया है कि वित्तीय वर्ष 2014-15 में गंगा सफाई के राष्ट्रीय अभियान के लिए 2137 करोड़ रुपयों का बजटीय आवंटन निर्धारित किया गया था जिसमें 84 करोड़ की कटौती कर संशोधित आबंटन 2053 करोड़ किया गया किन्तु सरकार इस वित्तीय वर्ष में महज 326 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाई तो वहीं वित्तीय वर्ष 2015-16 में इस अभियान के लिए 2750 करोड़ रुपयों का बजटीय आवंटन निर्धारित था जिसमें 1100 करोड़ की भारीभरकम कटौती कर संशोधित आबंटन 1650 करोड़ किया गया किन्तु सरकार इस वित्तीय वर्ष में भी 1632 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाई. इस प्रकार केंद्र सरकार वितीय वर्ष 2014-15 में आबंटित धनराशि में से 1727 करोड़ रुपये खर्च नहीं कर पाई और वितीय वर्ष 2015-16 में भी 1100 करोड़ की भारीभरकम कटौती के बाद किये गए संशोधित बजटीय आबंटन में से भी 18 करोड़ रुपये खर्च नहीं कर पाई है.



ऐश्वर्या को देने के लिए 20 जून को तैयार की गई इस सूचना के अनुसार वित्तीय वर्ष 2016-17 में गंगा सफाई के राष्ट्रीय अभियान के लिए 2500 करोड़ रुपयों का बजटीय आवंटन निर्धारित किया गया है पर इस आबंटन के सापेक्ष संशोधित आबंटन या बास्तविक खर्चों की कोई भी सूचना केंद्र सरकार के पास नहीं है.

  
ऐश्वर्या ने एक विशेष बातचीत में कहा कि हालाँकि माँ गंगा के आशीर्वाद ने नरेंद्र मोदी को न केवल बनारस से लोकसभा में पंहुचाया अपितु उनकी पार्टी को आशातीत सफलता का आशीर्वाद देते हुए मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पंहुचाया पर लगता है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद हमारे प्रधानमंत्री गंगा मां से किये अपने वायदों को भूल गए हैं. गंगा साफ-सफाई पर बजटीय आबंटन के सापेक्ष वित्तीय वर्ष 2014-15 में  महज 15% खर्च और वित्तीय वर्ष 2015-16 में भी मात्र 59% खर्च पर केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए ऐश्वर्या ने वित्तीय वर्ष 2016-17 में गंगा सफाई के राष्ट्रीय अभियान के लिए महज 2500 करोड़ रुपयों का बजटीय आवंटन निर्धारित किये जाने को गंगा साफ-सफाई पर अगले 5 वर्षों में 20000 करोड़ रुपये खर्च करने की मोदी सरकार की बीते साल 13 मई में की गयी घोषणा के आधार पर नाकाफी बताया.


ऐश्वर्या कहती हैं कि गंगा सफाई पर हुई बैठकों की सूचना के लिए मुझे वेबसाइट को देखने का निर्देश दिया गया था. ऐश्वर्या के अनुसार जब उन्होंने वेबसाइट को देखा तो उनको पता चला कि साल 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण (एनजीआरबीए) के गठन से अब तक इसकी 6 बैठकें हुईं हैं जिनमें से 3 बैठक क्रमशः दिनांक 05-10-2009, 01-11-2010 और 17-04-2012 को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हुईं और 3 बैठक क्रमशः दिनांक 27-10-2014, 26-03-2015 और 04-07-2016 को वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में. ऐश्वर्या ने बताया कि इन बैठकों के कार्यवृत्तों को डाउनलोड कर देखने पर मालूम चला कि जहाँ एक तरफ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने  कार्यकाल में हुई तीनों बैठकों की अध्यक्षता की तो वहीं वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल में हुई 3 बैठकों में से एक मात्र  दिनांक 26-03-2015 की बैठक में ही उपस्थित रहे और बाकी 2 बैठकों की अध्यक्षता जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने की. ऐश्वर्या बताती हैं कि राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण (एनजीआरबीए) के पदेन अध्यक्ष भारत के प्रधानमंत्री होते हैं और सामान्यतया इस प्राधिकरण की बैठकों की अध्यक्षता भारत के प्रधानमंत्री के द्वारा की जानी चाहिए किन्तु वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस प्राधिकरण की दिनांक 27-10-2014 और 04-07-2016 की बैठक में अनुपस्थिति से गंगा साफ-सफाई पर उनके  वास्तव  में गंभीर होने पर प्रश्नचिन्ह तो लग ही रहा है.




ऐश्वर्या ने बताया कि वे अपने ‘अंकल मोदी’ को पत्र लिखकर उनसे अनुरोध करेंगी कि वे आगे से ‘नमामि गंगे’ योजना पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देकर गंगा को निर्धारित समयान्तर्गत साफ करायें और माँ गंगा से किये अपने सभी वादे पूरे करें. ऐश्वर्या को विश्वास है कि विश्व में भारत के नाम का डंका बजबाने वाले उसके ‘अंकल मोदी’ उसके पत्र का संज्ञान लेकर गंगा को साफ कराकर एक नई मिसाल कायम करने में कामयाब होंगे.

©TAHRIR
( This news item can be reproduced/used but only with specific mention of TAHRIR blog  )


Sanjay Sharma is a Lucknow based freelancer and President at TAHRIR. He can be contacted at associated.news.asia@gmail.com Mobile/Whatsapp No. 7318554721.

To download related documents ©TAHRIR ( These downloaded documents can be reproduced/used only with specific mention of this TAHRIR blog ), please click here http://tahriruploads.blogspot.in/2016/08/tahrir-feature-dated-02-08-16-documents.html

Tuesday, May 26, 2015

एमनेस्टी इंटरनेशनल की सपोर्टर इंगेजमेंट टीम ने एमनेस्टी इंटरनेशनल की भारत स्थित इकाई को अग्रेषित किया सामाजिक संगठन 'तहरीर' के संस्थापक और मानवाधिकार कार्यकर्ता इंजीनियर संजय शर्मा का ई-मेल।

Fw: यूपी सरकार के मंत्री विनोद सिंह उर्फ पंडित सिंह द्वारा पुलिसबालों की मदद से गोंड़ा के आकाश अग्रवाल और उसके परिवार को महिला शालीनता को भंग करने बाली गालियां देते हुए जान से मारने की धमकी देने मामले में सामाजिक संगठन 'तहरीर' ने उठायी विनोद सिंह को मंत्री पद से हटाने, एफआईआर लिखाने और मानवाधिकार उल्लंघन की जांच की मांग।

 

   Inbox 
 

Mobilization

<**************@amnesty.org>
Tue, May 26, 2015 at 3:26 PM
To: ">" <tahririndia@gmail.com>



-----Forwarded by Mobilization/I.S./Amnesty International on 05/26/2015 10:55AM -----
To: ***********@amnesty.org.in
From: Mobilization/I.S./Amnesty International
Date: 05/26/2015 10:55AM
Subject: Fw: यूपी सरकार के मंत्री विनोद सिंह उर्फ पंडित सिंह द्वारा पुलिसबालों की मदद से गोंड़ा के आकाश अग्रवाल और उसके परिवार को महिला शालीनता को भंग करने बाली गालियां देते हुए जान से मारने की धमकी देने मामले में सामाजिक संगठन 'तहरीर' ने उठायी विनोद सिंह को मंत्री पद से हटाने, एफआईआर लिखाने और मानवाधिकार उल्लंघन की जांच की मांग।

Dear AI India,
Please see below, for your information.
Kind regards,

Amnesty International
Supporter Engagement Team


-----Forwarded by Mobilization/I.S./Amnesty International on 05/26/2015 10:54AM -----
To: *****************
From: Sanjay Sharma <tahririndia@gmail.com>
Date: 05/24/2015 02:52PM
Subject: यूपी सरकार के मंत्री विनोद सिंह उर्फ पंडित सिंह द्वारा पुलिसबालों की मदद से गोंड़ा के आकाश अग्रवाल और उसके परिवार को महिला शालीनता को भंग करने बाली गालियां देते हुए जान से मारने की धमकी देने मामले में सामाजिक संगठन 'तहरीर' ने उठायी विनोद सिंह को मंत्री पद से हटाने, एफआईआर लिखाने और मानवाधिकार उल्लंघन की जांच की मांग।

यूपी सरकार के मंत्री विनोद सिंह उर्फ पंडित सिंह द्वारा  पुलिसबालों की
मदद से गोंड़ा के आकाश अग्रवाल और उसके परिवार को महिला शालीनता को भंग
करने  बाली गालियां देते हुए जान से   मारने की धमकी देने मामले में
सामाजिक संगठन 'तहरीर' ने उठायी विनोद सिंह  को मंत्री पद से  हटाने,
एफआईआर लिखाने और मानवाधिकार उल्लंघन की जांच की मांग।


सामाजिक संगठन 'तहरीर'  की मांग यहाँ उपलब्ध है :
http://tahririndia.blogspot.in/2015/05/tahrir-demands-suspension-of-vinod.html

TAHRIR demands suspension of  Vinod Singh  alias Pandit Singh from UP
Ministerial berth and  registration of FIR against him and his aides
for criminal intimidation, insult to modesty of woman and giving life
threats to Aakash Agrawal of Gonda district of UP.

Find TAHRIR’s Complaint here
http://tahririndia.blogspot.in/2015/05/tahrir-demands-suspension-of-vinod.html



--
Sanjay Sharma سنجے شرما संजय शर्मा
( Founder & Chairman)
Transparency, Accountability & Human Rights Initiative for Revolution
( TAHRIR )
101,Narain Tower,F Block, Rajajipuram
Lucknow,Uttar Pradesh-226017
https://www.facebook.com/sanjay.sharma.tahrir.india
Website :http://tahririndia.blogspot.in/
E-mail : tahririndia@gmail.com
Twitter Handle : @tahririndia
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 TAHRIR ( Transparency, Accountability & Human Rights initiative for
revolution ) is a Bareilly/Lucknow based Social Organization, working
at grass-root level by taking up & solving issues related to
strengthening transparency & accountability in public life and
protection of Human Rights in India.   तहरीर (पारदर्शिता, जवाबदेही और
मानवाधिकार क्रांति के लिए पहल  )  भारत में लोक जीवन में पारदर्शिता
संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के
हितार्थ  जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था  है  l



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Monday, May 25, 2015

पारदर्शिता से रहा परहेज,यूपी में सीएम हों चाहें मुलायम,माया या अखिलेश !



स्नैपशॉट्स पारदर्शिता से  रहा परहेज,यूपी में सीएम हों चाहें  मुलायम,माया या अखिलेश ! : यूपी में आरटीआई एक्ट के प्रचार प्रसार के लिए नहीं बनीं कोई कार्य-योजना और ही  हुआ कोई बजट आवंटन : एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं कथनी से उलट करनी करने बाले  मुलायम,माया ,अखिलेश
 



लखनऊ/तहरीर /२६ मई २०१५/  देश में पारदर्शिता का कानून या यूं कहें आरटीआई एक्ट साल २००५  में लागू हो गया था. हमारे जैसे आरटीआई कार्यकर्ताओं के प्रयासों से ये कानून देश की सर्वाधिक आवादी बाले सूबे में भी साल २००६ में राज्य सूचना आयोग के गठन के साथ मूर्त रूप में गया  परन्तु यदि मैं कहूँ कि उत्तर प्रदेश की सरकारों ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध कारगर माध्यमों में से सर्वाधिक कारगर  माने जाने बाले इस  पारदर्शिता कानून को लोकप्रिय बनाने से सदा ही परहेज किया है तो क्या आप मानेंगे ? शायद नहीं।  परन्तु मेरे द्वारा उत्तर प्रदेश शासन के प्रशासनिक सुधार विभाग में दायर एक आरटीआई के जबाब ने ये सिद्ध कर दिया है कि यूपी में मुलायम सिंह यादव, मायावती और अखिलेश यादव के नेतृत्व बाली  सरकारों में से किसी ने भी आरटीआई एक्ट के प्रचार प्रसार के लिए तो कोई कार्यक्रम बनाया और ही कोई पैसा ही खर्च किया है. 
 
मैंने साल २०१४ के जनवरी माह में उत्तर प्रदेश शासन के प्रशासनिक सुधार विभाग में एक आरटीआई दायर कर जानना चाहा  था कि प्रदेश में आरटीआई एक्ट लागू होने से तब तक सूबे की सरकारों ने पारदर्शिता के इस अस्त्र के प्रयोग की जानकारी सूबे के जनमानस तक  पंहुचाने के लिए क्या कार्यक्रम बनाये हैं और कितना बजट आवंटित  किया है। दुर्भाग्यपूर्ण है  कि सूबे में आरटीआई क्रियान्वयन का  नोडल विभाग होने पर भी उत्तर प्रदेश शासन के प्रशासनिक सुधार विभाग ने ०१ माह  में सूचना देने की वाध्यता होने पर भी साल २०१४ के जनवरी माह में  माँगी गयी सूचना को देने में  १५ माह लगा दिए।
 
प्रशासनिक सुधार अनुभाग - के अनुभाग अधिकारी और जन सूचना अधिकारी संकठा  प्रसाद ने दिनांक ०६ अप्रैल २०१५ को पत्र के माध्यम से मुझे बताया है कि यूपी की सरकारों ने सूबे में आरटीआई एक्ट लागू  होने से अब तक इस एक्ट के प्रचार प्रसार के कार्यक्रमों के लिए कोई बजट आवंटन नहीं किया है। 
 
आरटीआई एक्ट को भ्रष्टाचार के विरुद्ध कारगर माध्यमों में से सर्वाधिक कारगर  माना जाता है और ऐसे में मुलायम सिंह यादव, मायावती और अखिलेश यादव के नेतृत्व बाली यूपी की सरकारों द्वारा पारदर्शिता कानून के प्रचार प्रसार से मुंह मोड़ना  सामने आने से यह स्पष्ट हो रहा है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़े होने का दिखावा करने बाले इन तीनों राजनेताओं की कथनी और करनी में जमीन आसमान का फर्क है और यह भी कि इस मामले में ये तीनों ही एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं।
सामाजिक संगठन तहरीर इस आरटीआई के खुलासे के बाद सूबे के मुख्यमंत्री और राज्यपाल को ज्ञापन भेजकर आरटीआई एक्ट के प्रचार प्रसार के लिए कार्यक्रमों बनाने और इन कार्यक्रमों के लिए समुचित  बजट आवंटन करने की मांग करेगा ताकि पारदर्शिता का यह अस्त्र सूबे के जन -जन तक पहुंचकर सूबे को  भ्रष्टाचार मुक्त बनाने में अपनी निर्णायक भमिका निभा सके।
 

इंजीनियर संजय शर्मा
संस्थापक अध्यक्ष - तहरीर
मोबाइल ८०८१८९८०८१,९४५५५५३८३८

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