Saturday, April 27, 2024

प्रतिज्ञान पत्र और आरटीआई विरोधी पोस्ट सोशल मीडिया पर डालने पर यूपी के सूचना आयुक्त मोहम्मद नदीम के खिलाफ शिकायत.


 लखनऊ / शनिवार, 27 अप्रैल 2024 ..............

 


उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के सुनवाई कक्ष  संख्या एस – 7 में कार्यरत सूचना आयुक्त मोहम्मद नदीम पर अनियमित कृत्य करने का आरोप लगाते हुए सूबे के राज्यपाल,हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश,मुख्यमंत्री,मुख्य सचिव,प्रशासनिक सुधार विभाग के प्रमुख सचिव,मुख्य सूचना आयुक्त के साथ-साथ भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री,सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश समेत दर्जनों अधिकारियों को शिकायत भेजकर विधिवत जांच की मांग उठाई गई है.

 


 

शिकायतकर्ता राजाजीपुरम निवासी कंसलटेंट इंजीनियर संजय शर्मा ने अपनी शिकायत में लिखा है कि मोहम्मद नदीम ने बीती 13 मार्च को सूचना आयुक्त पद के प्रतिज्ञान पत्र पर राज्यपाल के हस्ताक्षर होने से पूर्व ही अधूरे प्रतिज्ञान पत्र का फोटो राजभवन की लिखित अनुमति  के बिना ही अवैध रूप से चोरी –छुपे खींचकर उसका प्रयोग सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए अपने सोशल मीडिया ट्विटर अकाउंट पर पोस्ट करने ,रीपोस्ट करने  के  साथ-साथ सोशल मीडिया फेसबुक पर डाली गई पोस्ट में भी किया.

 


 

बकौल संजय राज्यपाल के हस्ताक्षर होने से पूर्व ही अधूरे प्रतिज्ञान पत्र का फोटो राजभवन की लिखित अनुमति  के बिना ही अवैध रूप से चोरी –छुपे खींचकर उसका प्रयोग सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए अपने सोशल मीडिया पर डालना प्रशासनिक अनुशासनहीनता और कदाचार का कृत्य तो है ही साथ ही सरकारी दस्तावेज का फोटो बिना विधिक अनुमति चोरी – छुपे खींचकर सोशल मीडिया पर प्रयोग करना भारतीय दंड संहिता और सूचना प्रौधोगिकी अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय कृत्य भी है.

 

 


संजय बताते हैं कि जब उन्होंने राज्यपाल सचिवालय,यूपी प्रशासनिक सुधार विभाग,यूपी प्रशासनिक सुधार निदेशालय और उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में आरटीआई अर्जियां देकर सभी सूचना आयुक्तों के प्रतिज्ञान पत्रों की सत्यापित प्रतियाँ मांगीं तब एक माह पूरा होने के बाद इन सभी कार्यालयों के रेस्पोंसों से यह बात सामने आई है कि सूचना आयुक्तों के प्रतिज्ञान पत्र सार्वजनिक किये  जाने योग्य डाक्यूमेंट्स नहीं हैं.

 


 

संजय ने अपनी शिकायत में लिखा है कि मोहम्मद नदीम ने बीती 15 अप्रैल को ट्विटर पर दो बार और फेसबुक पर भी लिखा कि सूचना का अधिकार क़ानून के तहत क़ानून के दायरे में आवेदक को सूचना दिलाने से ज़्यादा चुनौती पूर्ण कार्य इस क़ानून के बेजा इस्तेमाल को रोकने का है l संजय ने बताया कि कुछ समय पूर्व तक के समाचारों से उनको ज्ञात है कि भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग,केन्द्रीय सूचना आयोग,यूपी प्रशासनिक सुधार विभाग,यूपी प्रशासनिक सुधार निदेशालय और उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में डाली गईं आरटीआई अर्जियों के उत्तरों में इन कार्यालयों द्वारा बताया गया है कि इन केन्द्रीय और उत्तर प्रदेश के इन कार्यालयों में सूचना कानून के दुरुपयोग का कोई भी मामला रिकॉर्ड पर नहीं है और यह भी कि  अपनी बात को सत्य साबित करने के प्रमाण मांगे जाने पर वे ये प्रमाण देने में समर्थ हैं.

 


संजय कहते हैं कि ऐसे में प्रथम दृष्टया यह बात सामने आ रही है कि पूर्व में पत्रकार रहे  मोहम्मद नदीम आरटीआई प्रयोगकर्ताओं के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं और बिना किसी प्रमाण के ही अपनी प्रतिकूल  राय बनाए हुए हैं.बकौल संजय यदि यह बात किंचित भी सही है तो सूचना कानून की धारा 17 के अनुसार मोहम्मद नदीम सूचना आयुक्त के पद पर बने रहने के योग्य नहीं हैं अतः इस बिंदु पर नदीम के विरुद्ध सम्यक रूप से प्रशासनिक जांच संस्थित करके नदीम से वे साक्ष्य मांगे जाएँ जिनके आधार पर नदीम ने सूचना क़ानून के बेजा इस्तेमाल की निश्चयात्मक बात कहते हुए इस बात को आरटीआई आवेदकों को सूचना दिलाने से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण होने का निश्चयात्मक वक्तव्य सार्वजनिक रूप से दिया है एवं इन पोस्ट्स पर आये आरटीआई विरोधी कमेंट्स का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन भी किया है. संजय कहते हैं कि यदि नदीम जांच अधिकारी को सूचना क़ानून के बेजा इस्तेमाल के ठोस साक्ष्य देने में असमर्थ रहते हैं तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि इन पोस्ट्स के द्वारा मोहम्मद नदीम ने प्रशासनिक कदाचार तो किया ही है साथ ही भारतीय दंड संहिता और सूचना प्रौधोगिकी अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय कृत्य भी किया है.

 

 


संजय ने आशा जताई है कि सुशासन के क्षेत्र में नित्य नए कीर्तिमान स्थापित कर रही योगी सरकार सूचना आयुक्त मोहम्मद नदीम की इन अनियमितताओं की जांच सम्यक स्तर से कराकर विधि-अनुसार यथेष्ट  प्रशासनिक एवं विधिक  कार्यवाही अवश्य कराएगी.

 





 


Tuesday, April 23, 2024

कटघरे में यूपी सूचना आयोग : सूबे के सभी विभागों में सूचना कानून की धारा 4 (1)(b) का पालन कराने के लिए जिम्मेवार सूचना आयोग खुद ही नहीं कर रहा इस धारा का पालन.

‘चिराग तले अँधेरा’, एक ऐसी कहावत जिसके अर्थ और उदाहरण हिंदी भाषा के पाठ्यक्रमों में पुराने समय से पढाये जाते रहे हैं. यदि आपको इस कहावत को रोजमर्रा की जिंदगी में जीवंत होते देखना हो तो आपको उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयोग की वेबसाइट  पर जाकर सूचना कानून की धारा 4 (1)(b) के तहत अपलोड की गईं सूचनाओं को देखना होगा. इस कहावत को कहते हुए सूबे की राजधानी लखनऊ के राजाजीपुरम क्षेत्र निवासी इंजीनियर संजय शर्मा ने सूचना आयोग पर आरोप लगाया है कि सूचना आयोग ने सूचना कानून की धारा 4 (1)(b) की सूचनाओं को वित्तीय वर्ष 2021-22 के बाद से अपडेट ही नहीं किया है. जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23, 2023-24  और वर्तमान वित्तीय वर्ष 2024-25 में उपरोक्त सूचनाएं पब्लिक अथॉरिटी के रूप में राज्य सूचना आयोग द्वारा अपडेट की  जानी चाहिए थीं. संजय कहते हैं कि विगत मार्च माह में मुख्य सूचना आयुक्त और 10 सूचना आयुक्तों के पदों पर नए आयुक्तों के द्वारा कार्यभार ग्रहण कर कार्य आरम्भ कर देने के बाद भी इन सूचनाओं को अपडेट नहीं किया गया है जो कि अत्यंत खेदपूर्ण है और एक पब्लिक अथॉरिटी के रूप में आयोग के स्तर पर अपने कर्तव्यों के निर्वहन में नितांत अक्षमता,असंवेदनशीलता और लचर कार्यप्रणाली का द्योतक है जिसके लिए आयोग के आतंरिक प्रशासन का सम्पूर्ण निकाय समग्र रूप से उत्तरदाई है.

 

 


सूचना कानून और सुप्रीम कोर्ट की साल 2021 की सिविल याचिका संख्या 990 (  KISHAN CHAND JAIN VERSUS UNION OF INDIA & ORS. )  के आदेश के आधार पर संजय का कहना है कि पूरे सूबे के सभी सरकारी कार्यालयों द्वारा सूचना कानून की धारा 4 (1)(b) का पालन करवाने की जिम्मेदारी सूचना आयोग की है लेकिन ऐसा सूचना आयोग अपनी जिम्मेदारियों को क्या निभाएगा जो खुद धारा 4 (1)(b) का पालन करने के मामले में कई वर्षों से गहरी नींद में सोया पड़ा है.

 


 

संजय कहते हैं कि सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो देश के प्रधानमन्त्री और अपनी भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति को आगे बढाने के लिए सूचना आयोग को पेपरलेस करने के लिए वेबसाइट का उद्घाटन भी कर दिया और मुख्य सूचना आयुक्त समेत 10 सूचना आयुक्तों के साथ रजिस्ट्रार,सचिव आदि सभी पद भर दिए लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा है मानों सूचना आयोग के आतंरिक प्रशासन का सम्पूर्ण निकाय देश के प्रधानमन्त्री और सूबे के मुख्यमंत्री के अथक प्रयासों को विफल करने की साजिश जैसी कर रहा हो.

 

 


आसान शब्दों में सूचना कानून 2005 की धारा 4 (1)(b) को समझाते हुए संजय ने बताया कि सूचना कानून को लाने वाले नीति नियंताओं ने सभी सरकारी कार्यालयों के ऐसे सामान्य विषयों को चुना जिन से सम्बंधित सूचनाएं देश के नागरिकों  द्वारा बार-बार मांगे जाने की संभावनाएं अधिक थीं और धारा 4 (1)(b) में ऐसी सूचनाओं के 17 बिंदु देकर  प्रत्येक लोक प्राधिकारी के लिए ये आवश्यक किया वह कानून लागू होने के 120 दिन के अन्दर इन सभी बिन्दुओं की बिन्दुवार सूचनाएं अपनी वेबसाइट पर अपलोड करेगा और प्रत्येक वर्ष इन सूचनाओं को आवश्यक रूप से अपडेट करेगा ताकि आरटीआई अर्जियों की अनावश्यक पुनरावृत्ति से बचा जा सके.

संजय बताते हैं कि आयोग की दोनों वेबसाइट पर धारा 4(1)(b) की कुल 31 पेज की अशुद्ध और कालातीत सूचनाएं प्रदर्शित हैं. बकौल संजय  अशुद्ध सूचनाएं प्रदर्शित रहने से भ्रम की स्थिति उत्पन्न होने के साथ-साथ सूचना का अधिकार कानून का भी निरंतर उल्लंघन हो रहा है एवं इस स्थिति से उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवमानना भी हो रही है जो सर्वथा अनुचित और दुर्भाग्यपूर्ण है.

 

 

संजय बताते हैं कि उन्होंने सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त,रजिस्ट्रार,सचिव आदि के साथ सूबे के राज्यपाल और मुख्यमंत्री समेत तमाम आला अधिकारियों को शिकायत भेजकर इस मुद्दे को उठाकर वृहद जनहित में मांग की है कि आयोग की वेबसाइट से आरटीआई एक्ट 2005 की धारा 4(1)(b) की अशुद्ध सूचनाएं हटवाकर शुद्ध एवं अद्यतन सूचनाएं तत्काल अपलोड कराई जाएँ.

 

 

Friday, April 12, 2024

यूपी के 812 अभियुक्त पत्रकारों की जिलेवार सूची आरटीआई में डीजीपी ऑफिस ने की सार्वजनिक.

 लखनऊ / शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024...................

 





आपराधिक मामलों में आरोपित उत्तर प्रदेश के 812 अभियुक्त पत्रकारों की जिलेवार सूचना सूबे के पुलिस महानिदेशक कार्यालय ने सूचना का अधिकार ( आरटीआई ) क़ानून के तहत सार्वजनिक कर दी है. सूबे के मुख्यालय पुलिस महानिदेशक के जन सूचना अधिकारी ने राजधानी के राजाजीपुरम क्षेत्र निवासी कंसलटेंट इंजीनियर संजय शर्मा की एक आरटीआई अर्जी पर मुख्यालय पुलिस महानिदेशक कार्यालय में तैनात पुलिस उपाधीक्षक ( अपराध ) राम शब्द के पत्र के साथ 25 पेज संलग्न करके ये सूचना सार्वजनिक की है.   

 


 

दरअसल संजय शर्मा ने बीते साल के दिसंबर माह में डीजीपी कार्यालय में एक आरटीआई अर्जी दायर करके  इस सम्बन्ध में सूचना मांगी थी जिस पर बीते मार्च माह की 18 तारीख को सूचना जारी की गई है.

 


 

संजय ने बताया कि वे शीघ्र ही सूबे के राज्यपाल,मुख्यमंत्री,मुख्य सचिव,सूचना विभाग के प्रमुख सचिव और निदेशक के साथ-साथ राज्य संपत्ति विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र के साथ डीजीपी कार्यालय द्वारा सार्वजनिक की गई जिलेवार सूची भेजकर सूची में वर्णित दागी 812 पत्रकारों ( जिनके खिलाफ आपराधिक अभियोग पंजीकृत हुए हैं ) के जिलेवार नामों को प्रदेश के सभी जिलों के एल.आई.यू. कार्यालयों को भिजवाकर प्रदेश के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा इन 812 पत्रकारों की विभिन्न श्रेणियों की सरकारी मान्यताएं सम्बंधित जिलाधिकारियों के माध्यम से निरस्त कराने और इन 812 पत्रकारों में से जिन पत्रकारों को वर्तमान में राज्य संपत्ति विभाग के आवास आबंटित हों उनका आबंटन तत्काल निरस्त कर सरकारी आवास तत्काल खाली कराने की मांग करेंगे.

 


 

संजय ने बताया उनको विश्वास है कि सूबे की सरकारी मशीनरी देश के प्रधानमंत्री और सूबे के मुख्यमंत्री की भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत कार्य करते हुए लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ से गन्दगी दूर कर इसकी साफ-सफाई करने का लोकहित का कार्य अवश्य करेगी तथापि यदि इस मामले में सरकार स्तर से नियमानुसार कार्यवाही नहीं की जाती है तो उनके पास उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करके वृहद् लोकहित में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के दागियों के खिलाफ कार्यवाही कराने के लिए प्रयास करने का विकल्प खुला हुआ है.

 


 

 

 




Saturday, January 27, 2024

लखनऊ के ड्रेनेज सिस्टम पर अतिक्रमण,अवैध निर्माण,सफाई में भ्रष्टाचार के कारण जल भराव जैसी समस्याओं पर हाई कोर्ट सख्त : संजोग वाल्टर की पीआईएल पर शासन समेत नगर निगम,एलडीए,केजीएमयू से 3 सप्ताह में मांगा जबाव.


 


 

 

लखनऊ,शनिवार,27 जनवरी 2024 ...............................

आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की प्रमुख जनसमस्याओं में से एक समस्या सरकारी एजेंसियों में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण इन एजेंसियों की सरपरस्ती में नालों और ड्रेनेज सिस्टम का अतिक्रमण कराकर इनके ऊपर कराये गए अवैध निर्माणों और शहर के नालों और ड्रेनेज सिस्टम की सफाई कराने के लिए आये धन से मानकों के अनुसार सफाई कराने के स्थान पर धन का बंदरबांट कर महज कागजी खानापूर्ति करने के कारण होने वाले जल भरावों की है. जहाँ एक तरफ इन अतिक्रमणों और अवैध निर्माणों के कारण आम जनमानस को निरंतर ट्रैफिक जाम जैसी समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है तो वहीँ दूसरी तरफ मानकों के अनुसार सफाई नहीं होने के कारण लगातार बढती जा रही गाद से चोक हो रहे नाले और ड्रेनेज सिस्टम के सामान्य सी बरसात होते ही उफनने के कारण हुई वाटर लॉगिंग आम जनमानस को घर से बहार निकलते ही नरक में होने जैसा अहसास करा देती है. बरसात के मौसम में राजधानी के कई इलाकों के नागरिकों को तो घर से बाहर निकलने की जरूरत भी नहीं पड़ती है और प्रायः ही उनके घरों में गुस आया पानी उनको नरक में होने जैसा अहसास करा देता है.

 इन जन समस्याओं को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में वरिष्ठ पत्रकार,कैंसर सरवाइवर, कैंसर एक्टिविस्ट,पूर्व सदस्य उत्तर प्रदेश राज्य मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति एवं पूर्व जेल विजिटर संजोग वाल्टर द्वारा दायर की गई एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर श्रीमती संगीता चंद्रा और अजय कुमार श्रीवास्तव-I की बेंच ने बीती 17 जनवरी को हुई सुनवाई में सख्त रुख अख्तियार करते हुए शासन, लखनऊ नगर निगम,लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए)  और किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी ( केजीएमयू ) समेत सभी उत्तरदाताओं को तीन सप्ताह के भीतर मामले में अपने जवाबी हलफनामे दाखिल करने का निर्देश देते हुए मामले को आगामी 15 फरवरी को फ्रेश केस मानकर सूचीबद्ध करने का आदेश पारित किया है.

 बताते चलें कि संजोग वाल्टर द्वारा यह जनहित याचिका कई प्रार्थनाओं के साथ दायर की गई है, जिसका सार उत्तरदाताओं को शहर में जल निकासी प्रणाली की उचित सफाई के लिए नगर निगम अधिनियम और उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत दिए गए अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए एक परमादेश की मांग करना है ताकि बरसात के मौसम में जल जमाव की संभावना से बचा जा सके और नालों,नालियों के पास हुए अवैध निर्माण को हटवाने सहित ड्रेनेज सिस्टम,जल जमाव की नियमित सफाई के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश तैयार कर उनका अनुपालन सुनिश्चित हो सके.

 संजोग ने याचिका में यह भी प्रार्थना की है कि लखनऊ शहर के निचले इलाकों से पानी की निकासी के लिए स्थापित पंपों के उचित कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए विपक्षियों को एक परमादेश ( मेंडामस ) जारी किया जाए और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ एक स्वतंत्र जांच भी कराई जाए जो इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा बजट उपलब्ध कराए जाने के बावजूद लखनऊ शहर के लिए नालियों,नालों,ड्रेनेज सिस्टम की सफाई के अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहे हैं.

 मामले की सुनवाई में संजोग के अधिवक्ता शिखर चौबे, अशोक कुमार चौबे और सौरभ सिंह द्वारा यह तथ्य भी  प्रस्तुत किया गया कि संजोग द्वारा जवाहर नगर, लखनऊ में संक्रामक रोग अस्पताल, लखनऊ के पास इसकी चारदीवारी के अवैध निर्माण के सम्बन्ध में की गई शिकायत पर संबंधित अधिकारी द्वारा प्रस्तुत जवाब में यह स्वीकार किया गया है कि जवाहर नगर क्षेत्र में चल रहे नालों,ड्रेनेज सिस्टम पर अतिक्रमण है. संजोग ने अपनी याचिका में कई अन्य सूचनाओं का भी हवाला दिया है जो लखनऊ शहर में जल निकासी व्यवस्था की सफाई के संबंध में याचिकाकर्ता द्वारा सूचना के अधिकार ( आरटीआई ) अधिनियम के तहत दिए गए आवेदन के आधार पर निकाली गई हैं.

 याचिका में विपक्षियों की तरफ से मुख्य स्थाई अधिवक्ता के अतिरिक्त अधिवक्तागण नमित शर्मा, रत्नेश चंद्र, सवित्रा वर्धन सिंह, शुभम त्रिपाठी और  शैलेश सिंह चौहान उपस्थित हुए. सुनवाई में नगर निगम, लखनऊ की और से उपस्थित वकील ने कार्यक्रम कार्यान्वयन इकाई,संबंधित ठेकेदार द्वारा नाला के निर्माण से संबंधित तस्वीरें न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कीं और मामले में जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए समय देने की प्रार्थना की जिसके बाद मंच ने सभी विपक्षियों को तीन सप्ताह के भीतर मामले में अपने जवाबी हलफनामे दाखिल करने का निर्देश देते हुए मामले को आगामी 15 फरवरी को फ्रेश केस मानकर सूचीबद्ध करने का आदेश पारित किया है.

 संजोग ने बताया कि उनको पूरी उम्मीद है कि न्यायालय इस मामले में नालों,नालियों के पास हुए अवैध निर्माण को हटवाने,ड्रेनेज सिस्टम,जल जमाव की नियमित सफाई के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश तैयार कराकर उनका अनुपालन सुनिश्चित कराने,लखनऊ शहर के निचले इलाकों से पानी की निकासी के लिए स्थापित पंपों के उचित कामकाज को सुनिश्चित कराने और भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों के खिलाफ एक स्वतंत्र जांच कराने का परमादेश जारी कर आम जनमानस को ट्रैफिक जाम और वाटर लॉगिंग की समस्याओं से स्थाई रूप से निजात अवश्य दिलाएगा.

 

 

 

 

लखनऊ के ड्रेनेज सिस्टम पर अतिक्रमण,अवैध निर्माण,सफाई में भ्रष्टाचार के कारण जल भराव जैसी समस्याओं पर हाई कोर्ट सख्त : संजोग वाल्टर की पीआईएल पर शासन समेत नगर निगम,एलडीए,केजीएमयू से 3 सप्ताह में मांगा जबाव.

 


लखनऊ,शनिवार,27 जनवरी 2024 ...............................

 

आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की प्रमुख जनसमस्याओं में से एक समस्या सरकारी एजेंसियों में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण इन एजेंसियों की सरपरस्ती में नालों और ड्रेनेज सिस्टम का अतिक्रमण कराकर इनके ऊपर कराये गए अवैध निर्माणों और शहर के नालों और ड्रेनेज सिस्टम की सफाई कराने के लिए आये धन से मानकों के अनुसार सफाई कराने के स्थान पर धन का बंदरबांट कर महज कागजी खानापूर्ति करने के कारण होने वाले जल भरावों की है. जहाँ एक तरफ इन अतिक्रमणों और अवैध निर्माणों के कारण आम जनमानस को निरंतर ट्रैफिक जाम जैसी समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है तो वहीँ दूसरी तरफ मानकों के अनुसार सफाई नहीं होने के कारण लगातार बढती जा रही गाद से चोक हो रहे नाले और ड्रेनेज सिस्टम के सामान्य सी बरसात होते ही उफनने के कारण हुई वाटर लॉगिंग आम जनमानस को घर से बहार निकलते ही नरक में होने जैसा अहसास करा देती है. बरसात के मौसम में राजधानी के कई इलाकों के नागरिकों को तो घर से बाहर निकलने की जरूरत भी नहीं पड़ती है और प्रायः ही उनके घरों में गुस आया पानी उनको नरक में होने जैसा अहसास करा देता है.
 
 

इन जन समस्याओं को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में वरिष्ठ पत्रकार,कैंसर सरवाइवर, कैंसर एक्टिविस्ट,पूर्व सदस्य उत्तर प्रदेश राज्य मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति एवं पूर्व जेल विजिटर संजोग वाल्टर द्वारा दायर की गई एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर श्रीमती संगीता चंद्रा और अजय कुमार श्रीवास्तव-I की बेंच ने बीती 17 जनवरी को हुई सुनवाई में सख्त रुख अख्तियार करते हुए शासन, लखनऊ नगर निगम,लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए)  और किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी ( केजीएमयू ) समेत सभी उत्तरदाताओं को तीन सप्ताह के भीतर मामले में अपने जवाबी हलफनामे दाखिल करने का निर्देश देते हुए मामले को आगामी 15 फरवरी को फ्रेश केस मानकर सूचीबद्ध करने का आदेश पारित किया है.
 
 
बताते चलें कि संजोग वाल्टर द्वारा यह जनहित याचिका कई प्रार्थनाओं के साथ दायर की गई है, जिसका सार उत्तरदाताओं को शहर में जल निकासी प्रणाली की उचित सफाई के लिए नगर निगम अधिनियम और उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत दिए गए अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए एक परमादेश की मांग करना है ताकि बरसात के मौसम में जल जमाव की संभावना से बचा जा सके और नालों,नालियों के पास हुए अवैध निर्माण को हटवाने सहित ड्रेनेज सिस्टम,जल जमाव की नियमित सफाई के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश तैयार कर उनका अनुपालन सुनिश्चित हो सके.
 
 
संजोग ने याचिका में यह भी प्रार्थना की है कि लखनऊ शहर के निचले इलाकों से पानी की निकासी के लिए स्थापित पंपों के उचित कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए विपक्षियों को एक परमादेश ( मेंडामस ) जारी किया जाए और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ एक स्वतंत्र जांच भी कराई जाए जो इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा बजट उपलब्ध कराए जाने के बावजूद लखनऊ शहर के लिए नालियों,नालों,ड्रेनेज सिस्टम की सफाई के अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहे हैं.
 
 
मामले की सुनवाई में संजोग के अधिवक्ता शिखर चौबे, अशोक कुमार चौबे और सौरभ सिंह द्वारा यह तथ्य भी  प्रस्तुत किया गया कि संजोग द्वारा जवाहर नगर, लखनऊ में संक्रामक रोग अस्पताल, लखनऊ के पास इसकी चारदीवारी के अवैध निर्माण के सम्बन्ध में की गई शिकायत पर संबंधित अधिकारी द्वारा प्रस्तुत जवाब में यह स्वीकार किया गया है कि जवाहर नगर क्षेत्र में चल रहे नालों,ड्रेनेज सिस्टम पर अतिक्रमण है. संजोग ने अपनी याचिका में कई अन्य सूचनाओं का भी हवाला दिया है जो लखनऊ शहर में जल निकासी व्यवस्था की सफाई के संबंध में याचिकाकर्ता द्वारा सूचना के अधिकार ( आरटीआई ) अधिनियम के तहत दिए गए आवेदन के आधार पर निकाली गई हैं.
 
 
याचिका में विपक्षियों की तरफ से मुख्य स्थाई अधिवक्ता के अतिरिक्त अधिवक्तागण नमित शर्मा, रत्नेश चंद्र, सवित्रा वर्धन सिंह, शुभम त्रिपाठी और  शैलेश सिंह चौहान उपस्थित हुए. सुनवाई में नगर निगम, लखनऊ की और से उपस्थित वकील ने कार्यक्रम कार्यान्वयन इकाई,संबंधित ठेकेदार द्वारा नाला के निर्माण से संबंधित तस्वीरें न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कीं और मामले में जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए समय देने की प्रार्थना की जिसके बाद मंच ने सभी विपक्षियों को तीन सप्ताह के भीतर मामले में अपने जवाबी हलफनामे दाखिल करने का निर्देश देते हुए मामले को आगामी 15 फरवरी को फ्रेश केस मानकर सूचीबद्ध करने का आदेश पारित किया है.
 
 
संजोग ने बताया कि उनको पूरी उम्मीद है कि न्यायालय इस मामले में नालों,नालियों के पास हुए अवैध निर्माण को हटवाने,ड्रेनेज सिस्टम,जल जमाव की नियमित सफाई के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश तैयार कराकर उनका अनुपालन सुनिश्चित कराने,लखनऊ शहर के निचले इलाकों से पानी की निकासी के लिए स्थापित पंपों के उचित कामकाज को सुनिश्चित कराने और भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों के खिलाफ एक स्वतंत्र जांच कराने का परमादेश जारी कर आम जनमानस को ट्रैफिक जाम और वाटर लॉगिंग की समस्याओं से स्थाई रूप से निजात अवश्य दिलाएगा.