Thursday, December 17, 2015

19% मुस्लिम आबादी बाले यूपी की पुलिस की नौकरियों में महज 5% ही मुसलमान.



अंतरराष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस की पूर्व संध्या पर विशेष : 19% मुस्लिम आबादी बाले यूपी की पुलिस की नौकरियों में महज 5% ही मुसलमान. 
  

लखनऊ/17 दिसम्बर 2015/ कल अंतरराष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस  है.कल भारत में भी केंद्र और राज्य की सरकारें विभिन्न आयोजनों के माध्यम से अल्पसंख्यकों के लिए किये गए कार्यों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करेंगीं. पर क्या तमाम योजनाओं को  बनाने बाली ये सरकारें भारत की आजादी के 68 साल बाद भी मुसलमानों को विकास की मुख्यधारा में लाने में सफल हो पायीं हैं? शायद नहीं. और ऐसा हम कतई नहीं कह रहे हैं बल्कि ऐसा तो कह रहा है एक आरटीआई जबाब जिसके अनुसार आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े सूबे यूपी, जिस की कुल आबादी में से 19% आबादी मुसलमानों की है, सरकारें इस सूबे में तमाम जतन करने के बाद भी इस यूपी की पुलिस में मुसलामानों का प्रतिनिधित्व महज 5% तक ही पंहुंचा पायीं है.

 


आरटीआई दायर करने बाले सामाजिक कार्यकर्ता संजय शर्मा कहते हैं कि इस मुद्दे पर सबाल केवल मुसलामानों का मसीहा होने का दम भरने बाली बसपा,सपा और कांग्रेस से ही नहीं है बल्कि उस बीजेपी से भी है जिस पर अल्पसंख्यक विरोधी होने के तमाम इल्जाम लगते रहते हैं. सबाल बसपा सपा और कांग्रेस से इसलिए है क्योंकि ये पार्टियाँ वोट लेने के लिए तो मुसलमानों की हिमायती बनती हैं पर सत्ता पाने के बाद मुसलमानों को विकास की मुख्य धारा में लाने के लिए कुछ खास नहीं कर पाती है तो वहीं बीजेपी से इसलिए क्योंकि उसके लिए भी सत्ता पाने के बाद मुसलमानों के विकास के मुद्दे को छोड़ देना राष्ट्र धर्म से विमुख होने जैसा है.


संजय कहते हैं कि सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व को विकास का संकेतक मान मुसलमानों के विकास का मोटा-मोटा आंकलन करने के लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश के पुलिस मुख्यालय इलाहाबाद में एक आरटीआई दायर करके उत्तर प्रदेश पुलिस की नौकरियों में मुसलमानों की संख्या की सूचना माँगी थी जिससे निकलकर आया है कि 19% की मुस्लिम आबादी बाले यूपी की पुलिस की नौकरियों में महज 5% ही मुसलमान हैं. 
    


अब बात उत्तर प्रदेश के पुलिस मुख्यालय इलाहाबाद द्वारा लखनऊ के सामाजिक कार्यकर्ता और इंजीनियर संजय शर्मा की आरटीआई पर दिए गए जबाब की दरअसल संजय ने बीते साल के फरवरी माह में यूपी के पुलिस महानिदेशक के कार्यालय में एक आरटीआई दायर करके यूपी पुलिस में कार्यरत मुसलमानों की संख्या की सूचना माँगी थी। पुलिस महकमा इस मामले में हीलाहवाली करता रहा और राज्य सूचना आयोग के दखल के बाद पुलिस मुख्यालय इलाहाबाद के पुलिस अधीक्षक कार्मिक ने बीते 26 नवम्बर के पत्र के माध्यम से संजय को सूचना उपलब्ध कराई है


समाजसेवी संजय को उपलब्ध कराई गयी सूचना के अनुसार यूपी पुलिस में कार्यरत तृतीय श्रेणी के कुल 192799 कार्मिकों में से महज 10203 (5.29%) ही मुसलमान हैं .इसी प्रकार यूपी पुलिस में कार्यरत चतुर्थ श्रेणी के कुल 13489 कार्मिकों में से 408 (3.02%) मुसलमान कार्यरत हैं .  


यदि यूपी पुलिस में वर्तमान में कार्यरत तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी के कार्मिकों की सम्मिलित संख्या के आधार पर देखें तो कुल 206288 कार्मिकों में से महज 10611 (5.14%) ही मुसलमान कार्मिक कार्यरत हैं      
      


बताते चलें कि सयुंक्त राष्ट्र संघ द्वारा सन 1992 में  घोषणा होने के बाद अंतरराष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस विश्वभर में प्रत्येक वर्ष 18 दिसम्बर को मनाया जाता है.संयुक्त राष्ट्र के एक विशेष प्रतिवेदक फ्रेंसिस्को कॉपोटोर्टी की वैश्विक परिभाषा के अनुसार किसी राष्ट्र-राज्य में रहने वाले ऐसे समुदाय जो संख्या में कम हों और सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक रूप से कमजोर हों एवं जिनकी प्रजाति, धर्म, भाषा आदि बहुसंख्यकों से अलग होते हुए भी राष्ट्र के निर्माण, विकास, एकता, संस्कृति, परंपरा और राष्ट्रीय भाषा को बनाये रखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हों, तो ऐसे समुदायों को उस राष्ट्र-राज्य में अल्पसंख्यक माना जाना चाहिए।


संजय बताते हैं कि साल 2005 में भारत के मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक स्थिति को जानने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा दिल्ली हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजिंदर सच्चर की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा 30 नवंबर, 2006 को लोकसभा में पेश की 403 पेज की रिपोर्ट से पहली बार खुलासा हुआ  था कि भारत में  मुसलमानों की स्थिति अनुसूचित जाति-जनजाति से भी खराब थी.


यही नहीं इस समिति के छह सदस्यों में से एक डॉ. अबुसालेह  शरीफ की एक  रिपोर्ट  के हबाले से संजय का कहना है कि सरकारी मुलाजिमों के भ्रष्टाचार के चलते मुस्लिम परिवारों और समुदायों के लिए तय फंड और सेवाएं उन इलाकों में भेज दी जाती हैं, जहां मुसलमानों की संख्या कम है या न के बराबर है और इस तरह योजनाओं के धन का अफसरों और  राजनेताओं के बीच बंदरबांट होने की बजह से ये योजनायें मुसलामानों का अपेक्षित विकास करने में कारगर नहीं हो पा रही हैं.


संजय कहते हैं कि केंद्र और राज्य के अल्पसंख्यक मंत्रालयों द्वारा अल्पसंख्यकों की समस्याओं के मूल कारणों का निवारण नहीं कर पाने के कारण ही सच्चर समर्थित सरकारी नीतियों के बावजूद भी मुस्लिम समुदाय हाशिए पर बना हुआ है.


समाजसेवी संजय ने मुसलमानों की इस स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए बताया कि वे इस मुद्दे पर देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और यूपी के राज्यपाल,मुख्यमंत्री,मुख्य सचिव को पत्र लिखकर मुसलमानों के लिए बनाई गयी योजनाओं को भ्रष्टाचार मुक्त कर उनका सही क्रियान्वयन कराने की  मांग करेंगे   





No comments:

Post a Comment