Sunday, January 3, 2016

अमिताभ ठाकुर के धुर-अल्पसंख्यक विरोध और अति-हिंदूवादी दिखावे में "एक हाथ लो- दूसरे हाथ दो" की कार्य-संस्कृति होने की जांच की मांग.




अमिताभ ठाकुर के धुर-अल्पसंख्यक विरोध और अति-हिंदूवादी दिखावे से अमिताभ के निहित स्वार्थ और "एक हाथ लो- दूसरे हाथ दो" वाली कार्यसंस्कृति पर कार्य करने जैसी चर्चा स्वतः शुरू.


कुछ साल पूर्व तक बीजेपी को गलत बताने बाली किन्तु विगत दिनों बीजेपी में शामिल होने बाली नूतन ठाकुर के  पति और हाल ही में आरएसएस में शामिल होने की घोषणा करने बाले;बलात्कार,आय से अधिक संपत्ति,एनजीओ के माध्यम से फ्रॉड,भूखंडों पर अवैध कब्जे आदि मामलों के अभियुक्त यूपी के निलंबित आईपीएस आईजी अमिताभ ठाकुर द्वारा उत्तर प्रदेश के  नवनियुक्त डीजीपी जावीद अहमद की तैनाती पर सवाल उठाने से यह आशंका बलवती हो रही है कि कहीं यह अभियुक्त अधिकारी अब बीजेपी और आरएसएस को खुश करके अपने आपको इन मामलों में बचाने के लिए बीजेपी के राजनैतिक प्रभाव का बेजा इस्तेमाल करने के लिए ही "एक हाथ लो- दूसरे हाथ दो" वाली कार्यसंस्कृति पर कार्य कर रहा है और यही कारण है कि पीके-ओएमजी ट्रस्ट बनाने बाला यह कथित सेक्युलर एकदम से चरम हिन्दूवादी हो गया है और मुसलामानों का असंगत विरोध किये पड़ा है. सरकारी खजाने से परिवार पालने बाले अमिताभ से अपेक्षित है कि वह सभी धर्मों का एकसमान आदर करे और चाहे किसी भी धर्म को माने पर धर्म के आधार पर किसी व्यक्ति का विरोध न करे किन्तु ऐसा लगता है कि यह मतलबपरस्त लोकसेवक  अब निहित स्वार्थवश मुस्लिम धर्म के प्रति अपने पूर्वाग्रह का भोंडा प्रदर्शन कर रहा है.

जावीद अहमद से वरिष्ठ 13 आईपीएस अधिकारी और भी है और यदि सरकार के इस कदम से उनमें से किसी को भी कोई आपत्ति है तो वह प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार में सुप्रीम कोर्ट के दिये निर्देश के अनुपालन के लिए राज्य सरकार से या फिर न्यायालय से अपनी बात कहने के लिए स्वतंत्र हैं किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि इस निलंबित आईपीएस द्वारा सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए और बीजेपी में अपनी पत्नी की और आरएसएस में अपनी पैठ बनाने के लिए ही अल्पसंख्यक समुदाय के नवनियुक्त डीजीपी की काबिलियत पर उंगली उठायी गयी है जिससे देश के लोकसेवकों के लिए निर्धारित विधि का खुला उल्लंघन हुआ  है और सारे संसार में  उत्तर प्रदेश की छवि भी धूमिल हुई है । यह एक लोकसेवक की ऐसी स्वार्थपरता का जीवंत  उदाहरण भी हो सकता है जिसके कारण इस लोकसेवक पर पर "एक हाथ लो- दूसरे हाथ दो" वाली निकृष्ट कार्यसंस्कृति पर कार्य कर जैसी चर्चा स्वतः शुरू हो गयी है।

गौरतलब है कि अमिताभ ने कुछ दिन पहले राजस्थान के आईएएस अफसर उमराव सालोदिया द्वारा इस्लाम स्वीकार करने को  अजीब,गलत और मतलबपरस्ती बताते हुए हिन्दू धर्म को सहिष्णुता, उत्तमता, स्वतंत्रता, वैचारिकता, दार्शनिक सोच का चरमोत्कर्ष बताते हुए सालोदिया  के धर्म परिवर्तन को निहित स्वार्थों के लिए किया गया कदम बताया था और हिन्दू धर्म को अपना प्रिय धर्म बताते हुए सालोदिया की  निंदा थी पर अमिताभ का अचानक से मुसलमानों की निंदा करना उनके निहित स्वार्थों के ही कारण नहीं हैं, आखिर इसकी भी क्या गारंटी है?

बहरहाल,मैं इन मामलों में इस लोकसेवक के व्यक्तिगत निहितार्थ होने या न होने के बारे में जांच के लिए राज्यपाल को पत्र भेज रहा हूँ.

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