Tuesday, April 23, 2024

कटघरे में यूपी सूचना आयोग : सूबे के सभी विभागों में सूचना कानून की धारा 4 (1)(b) का पालन कराने के लिए जिम्मेवार सूचना आयोग खुद ही नहीं कर रहा इस धारा का पालन.

‘चिराग तले अँधेरा’, एक ऐसी कहावत जिसके अर्थ और उदाहरण हिंदी भाषा के पाठ्यक्रमों में पुराने समय से पढाये जाते रहे हैं. यदि आपको इस कहावत को रोजमर्रा की जिंदगी में जीवंत होते देखना हो तो आपको उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयोग की वेबसाइट  पर जाकर सूचना कानून की धारा 4 (1)(b) के तहत अपलोड की गईं सूचनाओं को देखना होगा. इस कहावत को कहते हुए सूबे की राजधानी लखनऊ के राजाजीपुरम क्षेत्र निवासी इंजीनियर संजय शर्मा ने सूचना आयोग पर आरोप लगाया है कि सूचना आयोग ने सूचना कानून की धारा 4 (1)(b) की सूचनाओं को वित्तीय वर्ष 2021-22 के बाद से अपडेट ही नहीं किया है. जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23, 2023-24  और वर्तमान वित्तीय वर्ष 2024-25 में उपरोक्त सूचनाएं पब्लिक अथॉरिटी के रूप में राज्य सूचना आयोग द्वारा अपडेट की  जानी चाहिए थीं. संजय कहते हैं कि विगत मार्च माह में मुख्य सूचना आयुक्त और 10 सूचना आयुक्तों के पदों पर नए आयुक्तों के द्वारा कार्यभार ग्रहण कर कार्य आरम्भ कर देने के बाद भी इन सूचनाओं को अपडेट नहीं किया गया है जो कि अत्यंत खेदपूर्ण है और एक पब्लिक अथॉरिटी के रूप में आयोग के स्तर पर अपने कर्तव्यों के निर्वहन में नितांत अक्षमता,असंवेदनशीलता और लचर कार्यप्रणाली का द्योतक है जिसके लिए आयोग के आतंरिक प्रशासन का सम्पूर्ण निकाय समग्र रूप से उत्तरदाई है.

 

 


सूचना कानून और सुप्रीम कोर्ट की साल 2021 की सिविल याचिका संख्या 990 (  KISHAN CHAND JAIN VERSUS UNION OF INDIA & ORS. )  के आदेश के आधार पर संजय का कहना है कि पूरे सूबे के सभी सरकारी कार्यालयों द्वारा सूचना कानून की धारा 4 (1)(b) का पालन करवाने की जिम्मेदारी सूचना आयोग की है लेकिन ऐसा सूचना आयोग अपनी जिम्मेदारियों को क्या निभाएगा जो खुद धारा 4 (1)(b) का पालन करने के मामले में कई वर्षों से गहरी नींद में सोया पड़ा है.

 


 

संजय कहते हैं कि सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो देश के प्रधानमन्त्री और अपनी भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति को आगे बढाने के लिए सूचना आयोग को पेपरलेस करने के लिए वेबसाइट का उद्घाटन भी कर दिया और मुख्य सूचना आयुक्त समेत 10 सूचना आयुक्तों के साथ रजिस्ट्रार,सचिव आदि सभी पद भर दिए लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा है मानों सूचना आयोग के आतंरिक प्रशासन का सम्पूर्ण निकाय देश के प्रधानमन्त्री और सूबे के मुख्यमंत्री के अथक प्रयासों को विफल करने की साजिश जैसी कर रहा हो.

 

 


आसान शब्दों में सूचना कानून 2005 की धारा 4 (1)(b) को समझाते हुए संजय ने बताया कि सूचना कानून को लाने वाले नीति नियंताओं ने सभी सरकारी कार्यालयों के ऐसे सामान्य विषयों को चुना जिन से सम्बंधित सूचनाएं देश के नागरिकों  द्वारा बार-बार मांगे जाने की संभावनाएं अधिक थीं और धारा 4 (1)(b) में ऐसी सूचनाओं के 17 बिंदु देकर  प्रत्येक लोक प्राधिकारी के लिए ये आवश्यक किया वह कानून लागू होने के 120 दिन के अन्दर इन सभी बिन्दुओं की बिन्दुवार सूचनाएं अपनी वेबसाइट पर अपलोड करेगा और प्रत्येक वर्ष इन सूचनाओं को आवश्यक रूप से अपडेट करेगा ताकि आरटीआई अर्जियों की अनावश्यक पुनरावृत्ति से बचा जा सके.

संजय बताते हैं कि आयोग की दोनों वेबसाइट पर धारा 4(1)(b) की कुल 31 पेज की अशुद्ध और कालातीत सूचनाएं प्रदर्शित हैं. बकौल संजय  अशुद्ध सूचनाएं प्रदर्शित रहने से भ्रम की स्थिति उत्पन्न होने के साथ-साथ सूचना का अधिकार कानून का भी निरंतर उल्लंघन हो रहा है एवं इस स्थिति से उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवमानना भी हो रही है जो सर्वथा अनुचित और दुर्भाग्यपूर्ण है.

 

 

संजय बताते हैं कि उन्होंने सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त,रजिस्ट्रार,सचिव आदि के साथ सूबे के राज्यपाल और मुख्यमंत्री समेत तमाम आला अधिकारियों को शिकायत भेजकर इस मुद्दे को उठाकर वृहद जनहित में मांग की है कि आयोग की वेबसाइट से आरटीआई एक्ट 2005 की धारा 4(1)(b) की अशुद्ध सूचनाएं हटवाकर शुद्ध एवं अद्यतन सूचनाएं तत्काल अपलोड कराई जाएँ.

 

 

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