http://hindi.eenaduindia.com/UttarPradesh/LucknowCity/2015/09/10210717/Lokayukta-court-dismissed-the-lawsuit-mediation.vpf
डॉ. ठाकुर ने इसपर कड़ा प्रतिवाद किया कि आपराधिक मामलों में तीसरा व्यक्ति हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। यदि कोई बात कहनी है तो वह स्वयं महरोत्रा द्वारा कही जा सकती है। मध्यस्थ के जरिए कोई बात नहीं हो सकती है।
उन्होंने कहा कि उनके पति के खिलाफ वाद दायर करने वाले व्यक्ति का इस तरह एनके मेंहरोत्रा की मदद में खड़ा होना दोनों की मिलीभगत को दर्शाता है।
डॉ ठाकुर की आपत्ति को स्वीकार करते हुए सीजेएम सोम प्रभा मिश्रा ने प्राथमिक स्तर पर ही मध्यस्थता प्रार्थनापत्र ख़ारिज कर दी।
साथ ही उन्होंने 200 सीआरपीसी में डॉ. ठाकुर का विस्तृत बयान दर्ज करने के लिए शुक्रवार 11 सितम्बर 2015 की तारीख तय किया है।
परिवाद के अनुसार एनके महरोत्रा ने अपने राजनैतिक आकाओं को खुश करने और निजी नाराजगी के कारण न सिर्फ विधिविरुद्ध तरीके से उनके पति के खिलाफ जांच स्वीकार किया, बल्कि तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर गलत तथ्य सार्वजनिक कर इसे अकारण सनसनीखेज बनाने, उनके सास-ससुर के सिविल मामलों में हस्तक्षेप करने और उन्हें फर्जी फंसाने का प्रयास किया है। जो कि धारा 166, 167, 195, 195ए, 196, 200, 211, 219, 500 आईपीसी के तहत अपराध में आता है।
लोकायुक्त पर मुकदमे में कोर्ट ने ख़ारिज की मध्यस्थता
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लोकायुक्त एनके मेंहरोत्रा।
डॉ. ठाकुर ने इसपर कड़ा प्रतिवाद किया कि आपराधिक मामलों में तीसरा व्यक्ति हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। यदि कोई बात कहनी है तो वह स्वयं महरोत्रा द्वारा कही जा सकती है। मध्यस्थ के जरिए कोई बात नहीं हो सकती है।
उन्होंने कहा कि उनके पति के खिलाफ वाद दायर करने वाले व्यक्ति का इस तरह एनके मेंहरोत्रा की मदद में खड़ा होना दोनों की मिलीभगत को दर्शाता है।
डॉ ठाकुर की आपत्ति को स्वीकार करते हुए सीजेएम सोम प्रभा मिश्रा ने प्राथमिक स्तर पर ही मध्यस्थता प्रार्थनापत्र ख़ारिज कर दी।
साथ ही उन्होंने 200 सीआरपीसी में डॉ. ठाकुर का विस्तृत बयान दर्ज करने के लिए शुक्रवार 11 सितम्बर 2015 की तारीख तय किया है।
परिवाद के अनुसार एनके महरोत्रा ने अपने राजनैतिक आकाओं को खुश करने और निजी नाराजगी के कारण न सिर्फ विधिविरुद्ध तरीके से उनके पति के खिलाफ जांच स्वीकार किया, बल्कि तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर गलत तथ्य सार्वजनिक कर इसे अकारण सनसनीखेज बनाने, उनके सास-ससुर के सिविल मामलों में हस्तक्षेप करने और उन्हें फर्जी फंसाने का प्रयास किया है। जो कि धारा 166, 167, 195, 195ए, 196, 200, 211, 219, 500 आईपीसी के तहत अपराध में आता है।
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