Sunday, March 1, 2015

सूचना आयुक्त से मिलेंगे आरटीआई कार्यकर्ता, सौंपेंगे मांगपत्र

सूचना आयुक्त से मिलेंगे आरटीआई कार्यकर्ता, सौंपेंगे मांगपत्र

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सूचना कार्यकर्ताओं की सुरक्षा को लेकर चिंतित

गोरखपुर/लखनऊ। उत्तर प्रदेश में आरटीआई एक्ट के प्रभावी क्रियान्वयन और आरटीआई प्रयोगकर्ताओं के उत्पीड़न को रोककर उनके हितों को सुरक्षित रखने आदि मुद्दों को लेकर प्रदेश के आरटीआई कार्यकर्ताओं द्वारा मंगलवार दिनांक 03.03.2015 को 01 बजे से उत्तर प्रदेश सूचना आयोग के पास स्थित जवाहर भवन के चतुर्थ तल पर स्थित केंटीन में एक सभा का आयोजन किया है जिसमें नवनियुक्त सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी से मिलकर उनको आरटीआई एक्ट के प्रभावी क्रियान्वयन के बारे में और आरटीआई प्रयोगकर्ताओं की समस्याओं के बारे में अवगत कराने हेतु एक माँग-पत्र सौंपा जायेगा।

तहरीर के संस्थापक सामाजिक कार्यकर्ता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट संजय शर्मा ने बताया कि आरटीआई कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करते हुए उ0प्र0 के सरकारी तंत्र द्वारा आरटीआई कानून का मजाक बना दिया गया है और इस कानून के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी जिन लोगों पर है वह भी अपने काम को कानून से इतर होकर कर रहे हैं जिससे सूचना कार्यकर्ताओं को भारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है।

सामाजिक कार्यकर्ता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट अशोक कुमार गोयल ने कहा कि एक तरफ जहां आवेदकों को सूचनाएं कानून के तहत नहीं मिल पा रही हैं वहीं दूसरी ओर राज्य सूचना आयोग में भी इसके लिए कोई ठोस पहल न होकर महज न्यायालयों की तरह से विपक्षियों को अवसर देकर इसे लम्बा खींचा जा रहा है जो इस कानून का सीधे-सीधे मजाक बनाने जैसा है। उन्होंने कहा कि एक्ट में उल्लिखित प्रावधानों के तहत सुनवाई के तिथि को ही मामले का निस्तारण किया जाये तो निश्चत ही मामले जल्द निपटेंगे और तंत्र इस पर तेजी से काम करते हुए आवेदकों को उनकी सूचनाएं नियत तिथि के अन्दर उपलब्ध करायेगा।

इण्डो आरटीआई एक्टिविस्ट ग्रुप के संयोजक जितेन्द्र कुमार ने कहा कि भ्रष्ट तंत्र द्वारा जानबूझकर सूचनाएं आवेदकों को नहीं दी जाती हैं और अपीलीय अधिकारी से लगायत आयुक्त तक ऐसे मामलों के प्रति उदासीन हैं। अगर अपीलीय अधिकारी भी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करें तो आवेदकों को आयोग तक जाने से रोका जा सकता है और आयोग पर भी बोझ कम पड़ेगा लेकिन सभी अपनी जिम्मेदारियों के प्रति उदासीन हैं इस कारण ही सूचना कार्यकर्ताओं को कई तरह की परेशानियों को झेलना पड़ रहा है।

आरटीआई कार्यकर्ताओं की सुरक्षा के प्रति केन्द्र व राज्य सरकार की उदासीनता व असंवेदनशीलता पर चिन्ता जताते हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि सरकारें भ्रष्टाचार का खुलासा करने वालों का साथ न देकर भ्रष्टाचारियों को प्रश्रय देने का कार्य कर रही है। आज जो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं उन्हें उच्च श्रेणी की सुरक्षा मुहैया करायी जा रही है और जो भी कार्यकर्ता सूचना की मांग कर अपने को असुरक्षित कर रहा है उनके सुरक्षा जैसे गंभीर आवेदनों को रद्दी में डाल दिया जाता है।

जितेन्द्र कुमार ने इस बात पर भी जोर दिया कि आरटीआई के मामलों की मण्डल व जिले स्तर पर समीक्षा उसी तरह से होनी चाहिए जिस तरह से अन्य शासकीय योजनाओं की होती है। उन्होंने कहा कि अगर ऐसी समीक्षाएं होती रहें तो निश्चित तौर पर आवेदनों का निस्तारण समय से होगा और आवेदक यहां-वहां नहीं भटकेंगे।
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