विशाखा गाइड लाइन का कोई मायने नहीं , —- नागरिक सुरक्षा में
Kanpur Nagar News February 9, 2015
आज का कानपुर संवादाता – नागरिक सुरक्षा
निदेशालय उत्तर प्रदेश कितना मदान्ध व् कानूनों से ऊपर है इसका प्रत्यक्ष
प्रमाण नागरिक सुरक्षा कानपुर के महिला अधिकारी द्वारा यौन उत्पीडन की जाँच
के दौरान सामने आया विशाखा केस में उच्यतम न्यायलय द्वारा कार्यस्थल पर
यौन उत्पीडन कि जाँच हेतु जो निर्देश जारी किये गये थे उनकी खुले आम
धज्जिया उड़ाते हुए व् सर्वोच्च न्यायालय कि अवमानना कर जो जाँच कार्यवाही
आई.जी.नागरिक सुरक्षा अमिताभ ठाकुर ने की है वो स्वयं में इस विभाग की
कानून से ऊपर श्रेष्ठता को सिद्ध करता है सूत्रों के अनुशार दिनाक
१६-११-२०१४ को आई.जी.नागरिक सुरक्षा अमिताभ ठाकुर इस यौन उत्पीडन कि जाँच
के लिए अकेले कानपुर आये थे व् उन्होंने अकेले ही पीडिता के बयान लिए उसके
चश्मदीद गवाह को बुलाया तो अवश्य परन्तु उसका कोई साक्ष्य / बयान नहीं लिया
एव प्रेस के समझ दौरान वार्ता पीडिता कि पहचान आम करते हुए आपनी जाँच में
पीडिता को ही बराबर का दोषी बताया जबकि सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट
निर्देश है कि एसे अपराधो की जाँच हेतु शासन , प्रशासन व् विभागी स्तर पर
पूर्व से ही एक समिति गठित कि जाय जिसमे महिलाओ की भागीदारी हो व् वही
समिति अपने प्रत्यक्ष पीडिता के बयान / साक्ष्य आदि ले परन्तु आई.जी.नागरिक
सुरक्षा अमिताभ ठाकुर को शायद ऐसा करना उचित नहीं लगा तभी उन्होंने न केवल
अकेले बन्द कमरे में पीडिता के बयान लिए अपितु बाद में जो जाँच समिति बनाई
गयी उसमे भी इस यौन उत्पीडन आरोप के सह अभियुक्त ए.डी.सी. रवीन्द्र
प्रताप कि पत्नी डिप्टी कन्टोलर लखनऊ अनीता प्रताप को पीठासीन अधिकारी
बनाया व् स्वय कि पत्नी नूतन ठाकुर को समिति सदस्य अब सोचा जा सकता है कि
जंहा आरोपी की पत्नी स्वय जाँच करेगी व् पूर्व में ही पीडिता को दोषी मानने
वाले अधिकारी की पत्नी सदस्य होगी वहा पीडिता को क्या न्याय मिलेगा इस
सन्दर्भ में जब समाचार पत्र ने निदेशक नागरिक सुरक्षा से सम्पर्क कर उनका
पक्ष जान्ने का प्रयास किया तो वह कार्यालय में अनुपलब्ध बताये गये |
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