Monday, June 29, 2015

पीएम मोदी की 'नमामि गंगे' योजना - नाम बड़े पर दर्शन छोटे






गंगा साफ सफाई पर पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट 'नमामि गंगे' भी सुस्त : वित्तीय वर्ष 2015-16  में बात 4000 करोड़ की पर  पहली तिमाही में  धेला भी नहीं खर्चा : वित्तीय वर्ष 2014 -15 में  बात 6300 करोड़ की  पर मात्र 324 करोड़ 88 लाख रुपये खर्च


लगता है एक साल में ही गंगा की सफाई और संरक्षण से जुड़ी अन्य योजनाओं और कैबिनेट से हालिया मंजूर की गयी  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना ‘नमामी गंगे पर सरकार आरम्भ से ही सुस्त  होती जा रही है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के सिटी मोंटेसरी स्कूल की राजाजीपुरम शाखा की कक्षा 9 की छात्रा और 'आरटीआई गर्ल' नाम से प्रसिद्ध ऐश्वर्या पाराशर द्वारा इस सम्बन्ध में दायर एक आरटीआई अर्जी पर भारत सरकार ने इस  बाल आरटीआई कार्यकर्ता को बताया है कि   वित्तीय वर्ष 2015-16 की पहली तिमाही में गंगा साफ-सफाई  पर एक धेला भी नहीं खर्चा  गया है।


ऐश्वर्या बताती है कि समाचार पत्रों में गंगा की सफाई और संरक्षण से जुड़ी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी महत्वाकांक्षी योजना ‘नमामी गंगे को  केंद्रीय सरकार द्वारा  20 हजार करोड़ रूपए का बजट आवंटित किये जाने सम्बन्धी खबर पढ़ने के बाद उन्होंने बीते 26 मई को प्रधानमंत्री कार्यालय में एक आरटीआई दायर की थी। 


तीन बिन्दुओं की इस आरटीआई अर्जी के माध्यम से इस 'आरटीआई गर्ल' ने  वित्तीय वर्ष 2014 -15  और 2015-16  में गंगा नदी की साफ सफाई  पर खर्चे गए पैसे और इस सम्बन्ध में आयोजित बैठकों की सूचना माँगी थी। 


प्रधानमंत्री कार्यालय के केंद्रीय जनसूचना अधिकारी और अवर सचिव बी. के. रॉय ने बीते  4 जून को ऐश्वर्या का आरटीआई आवेदन जल संसाधन नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के सचिव को अंतरित कर दिया था।  जल संसाधन नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के उप सचिव एल. बी. तुओलते ने इस सम्बन्ध में ऐश्वर्या को बीते 22 जून के एक पत्र के माध्यम से सूचना भेजी है।   


ऐश्वर्या को दी गयी सूचना के अनुसार वित्तीय वर्ष 2014 -15 में भारत सरकार ने  गंगा नदी की साफ सफाई की नमामी गंगेयोजना  पर कुल 324 करोड़ 88 लाख रुपये खर्च किये थे।  इसमें से 90 करोड़ रुपये गैर वाह्य सहायतित परियोजनाओं पर और 324 करोड़ 88 लाख रुपये वाह्य सहायतित परियोजनाओं पर खर्चे गए। वित्तीय वर्ष 2014 -15 में  गंगा नदी की साफ सफाई  पर खर्चे गए कुल 324 करोड़ 88 लाख रुपयों में से 12 करोड़ 88 लाख रुपये सामान्य मद में और अवशेष 312 करोड़ रुपये कैपिटल एसेट्स पर खर्चे गए। 


एल. बी. तुओलते ने  ऐश्वर्या को यह भी बताया है कि भारत सरकार ने वित्तीय वर्ष 2015-16 की पहली तिमाही में गंगा साफ-सफाई  पर एक पैसा  भी नहीं खर्चा है। 


ऐश्वर्या को दी गयी सूचना के की वेबसाइट लिंक के अनुसार वित्तीय वर्ष 2014 -15 में गंगा  साफ सफाई पर दो बैठक दिनांक 27.10.2014 और 26.03.2015 को हुईं और वित्तीय वर्ष 2015-16 में गंगा  साफ सफाई पर अब तक  कोई बैठक नहीं हुई है। 


गौरतलब है कि  पिछले साल जुलाई में अपने पहले बजट में नरेंद्र मोदी ने नमामि गंगे  योजना को 6300 करोड़ से अधिक का बजट आवंटन करने की बात कही थी।  बीते मई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई एक कैबिनेट  बैठक मेंनमामी गंगेयोजना  को मंजूरी दी गई थी।  इस योजना में  समन्वित प्रयासों से गंगा नदी को व्यापक तरीके से स्वच्छ और संरक्षित किये जाने की बात कही गयी थी यह भी कहा गया था कि गंगा नदी की सफाई और संरक्षण के लिए   पिछले तीन दशकों  में  खर्च किये गए धन में  चार गुना बढ़ोतरी करते हुए अगले पांच सालों के लिए 20,000 करोड़ रुपये के बजट को मंजूरी दी गई थी सरकार ने बेहतर और सतत परिणाम हासिल करने के लिए नदी के किनारों पर रहने वाले लोगों को इस परियोजना में शामिल करने पर जोर दिए जाने की बात भी कही थी। 



ऐश्वर्या कहती हैं कि गंगा साफ सफाई पर पिछले वर्ष के 6300 करोड़ के वित्तीय आवंटन के विरुद्ध महज 325 करोड़ का खर्चा और वित्तीय वर्ष 2015 -16 में 20000 करोड़ की भारीभरकम रकम की बात करके पहली तिमाही में एक भी रुपये का खर्चा न किये जाने के कारण  वह दुःखी भी हैं और गंगा सफाई को लेकर चिंतित भी।


कक्षा 9 की यह जागरूक छात्रा कहती है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जनता में सिविक सेंस की कमी,  उद्योगपतियों के निहित स्वार्थ और सरकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते गंगा आज  देश की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है जिसका प्रदूषण स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सुरक्षित बताए गए प्रदूषण के स्तर से तीन हजार गुना अधिक है। 


ऐश्वर्या अब नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर बताएंगी  कि एक समय लन्दन की 'टेम्स' नदी भी ब्रिटेन की सर्वाधिक प्रदूषित  नदी थी पर आज वह ब्रिटेन की सर्वाधिक साफ नदियों में से एक है और देश के प्रधानमंत्री से 'गंगा' का  भी 'टेम्स' की तरह  तर्ज पर कायाकल्प करने के लिए बनायी गयी योजना के समुचित क्रियान्वयन और प्रबंधन का अनुरोध करेंगी।  





Saturday, June 27, 2015

Akhilesh Yadav spent Rs. 45 Lakhs public money on 30 lakh leaflets to make SP reach every 29th literate eligible voter, Every 8th SP Voter just to popularize 3 years of SP rule in UP !





Is Akhilesh Yadav led Samajwaadi Party government of Uttar Pradesh is gearing up for election 2017 stealthily?  

The question comes to my mind because in reply to one of my RTI queries, Dr. Vishwanath Tripathi, Deputy Director & Public Information officer of Department of Information & public Relations, vide his letter dated 23-06-15 has informed me that Akhilesh Government spent a whopping Rs. 45 Lakh from state exchequer to get 30 lakh leaflets containing 3 years’ achievements of SP Rule printed.          

As per census 2011, UP has a population of 199,812,341 and as per data of election 2012, there were 127,492,836 voters in the state. Keeping in view the literacy rate of 67.68%, the literate voters in the state comes out to be 86,287,151. This statistics shows that Akhilesh Yadav has made it sure that every 29th eligible literate voter should get this leaflet containing details of his governments’ 3 years achievements.


In election 2012,SP increased its vote share to its highest 29.15 per cent of total votes polled, up from 25.43 per cent, helping it to  raise the party tally from 97 previous time to a record 224. Total votes polled in election 2012 were 75,831,682 of which SP got 22,104,935. This statistics shows that every 8th SP voter got this leaflet containing details of UP governments’ 3 years achievements to pass it on to others.

With total area of 240928 Sq. Kms., the data shows Akilesh distributed 12.5 leaflets per Sq. Kms all across UP.

I perceive this as a gearing up strategy of ruling Samajwadi Party Government to gear up for election 2017 publicize itself in whole of  UP at the cost of taxpayers hard earned money meant for development work.


This act of Akhilesh led SP Government is highly condemnable. Governments should focus on implement its schemes and refrain from such large scale publicity ventures at the cost of state’s coffers. I feel if government’s schemes are implemented in their true spirits, there won’t be any need of such ‘leaflet printing and distribution’ projects.

Are other political parties listening the sound of foot-steps of upcoming election 2017?




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Sanjay Sharma سنجے شرما संजय शर्मा
( Founder & Chairman)
Transparency, Accountability & Human Rights Initiative for Revolution
( TAHRIR )
101,Narain Tower,F Block, Rajajipuram
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 TAHRIR ( Transparency, Accountability & Human Rights initiative for revolution ) is a Bareilly/Lucknow based Social Organization, working at grass-root level by taking up & solving issues related to strengthening transparency & accountability in public life and protection of Human Rights in India.   तहरीर (पारदर्शिता, जवाबदेही और मानवाधिकार क्रांति के लिए पहल  )  भारत में लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ  जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था  है  l 

सपा सरकार की तीन साल की उपलब्धियों का बखान करने बाले 30 लाख पत्रक छपवा अखिलेश ने फूंके जनता के 45 लाख रुपये !



एक अंग्रेजी कहावत है 'एक्शन्स स्पीक लाउडर देन वर्ड्स' अर्थात किसी के द्वारा किये गए कृत्य उसके द्वारा बोले गए शब्दों से अधिक गुंजित होते हैं पर लगता है कि सूबे की सपा  सरकार इस कहावत से इतर काम करती है और योजनाओं का क्रियान्वयन करने  में नहीं अपितु घोषणाओं का ढोल पीटने में अधिक विश्वास करती है।  जी हाँ , मैं अखिलेश सरकार पर ऐसी तोहमत  अपनी एक आरटीआई पर अखिलेश सरकार द्वारा दिए गए जबाब के आधार पर ही लगा रहा हूँ। 

बताते चलें कि इस साल के जनवरी माह में सूबे के मुखिया अखिलेश यादव ने समाजवादी सरकार के तीन साल की उपलब्धियों बाले पत्रकों का वितरण कराया था।  यह पत्रक उत्तर प्रदेश के सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा प्रकाशित कराये गए थे।  लीगल आकार के रंगीन और ग्लेज़्ड पेपर पर आगे और पीछे दोनों और छपे इन पत्रकों में सपा सरकार की तीन साल की 25  ऐसे कोशिशों,इरादों और कामयाबियों को बताने का दावा करते हुए सपा सरकार को महिमामंडित किया गया था।  


बीते मई माह में मैंने एक आरटीआई दायर कर छपवाए गए पत्रकों की संख्या और इन पत्रकों की छपाई पर आये खर्चे के बारे में सूचना माँगी थे।  उत्तर प्रदेश  सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के जनसूचना अधिकारी और  उपनिदेशक डा०  विश्वनाथ त्रिपाठी ने बीते 23 जून को सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के  उपनिदेशक सै०  अमजद हुसैन का एक पत्र मुझे भेजा है जो बेहद चौंकाने बाला होने के साथ साथ चुनी गयी सरकारों की कार्यप्रणाली पर एक प्रश्नचिन्ह भी है   सै०  अमजद हुसैन के इस पत्र  के अनुसार अखिलेश यादव ने सपा सरकार की तीन साल की उपलब्धियों का बखान करने बाले 30 लाख पत्रक छपवा कर  जनता की गाढ़ी कमाई के  45 लाख रुपये खर्च कर दिए। 


साल 2011 में हुई गिनती के आधार पर यूपी की आवादी 199,812,341 थी और साल 2012 में हुए आम चुनावों में सूबे में 127,492,836 वोटर्स थे।  उत्तर प्रदेश में  67.68% साक्षरता दर के आधार पर हम कह सकते हैं कि सूबे में साक्षर मतदाताओं की संख्या 86,287,151 है।  इन साक्षर मतदाताओं के लिए 30 लाख पत्रक छपवाने का मतलब है क़ि अखिलेश ने सूबे के हर 29 वें  साक्षर वोटर के लिए यह परचा छपवाया।  साल 2012 में हुए आम चुनावों में समाजवादी पार्टी ने कुल पड़े 75,831,682 वोट्स में से  29.15% अर्थात 22,104,935 वोट्स प्राप्त किये थे।  इन सपा मतदाताओं के लिए 30 लाख पत्रक छपवाने का मतलब है क़ि अखिलेश ने  हर 8वें  सपा  वोटर के लिए यह परचा छपवाया।  240928 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल बाले इस सूबे में  अखिलेश ने प्रति  वर्ग किलोमीटर 12.5 पर्चे वँटवाए।

तो क्या अखिलेश की पार्टी अभी से साल 2017 में होने बाले आम चुनावों की तैयारियों में गुपचुप रूप से जुट गयी है और इस प्रकार सरकारी धन से सूबे की जनता के बीच अपनी पैठ बनाना चाह रही है ? मैं तो इसे सपा के चुनाव प्रचार के  रूप में देखता हूँ और यूपी सरकार द्वारा योजनाओं को अक्षरशः क्रियान्वित कर उनका लाभ समाज की पंक्ति  के अन्तिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक पंहुचाने के स्थान पर महज बनायी गयी योजनाओं का   प्रचार जनता के पैसे से करने के सपा सरकार के इस कृत्य की भर्त्सना करता हूँ।    





हमारा सामाजिक संगठन 'तहरीर' इस सम्बन्ध में सूबे के मुखिया अखिलेश यादव को एक पत्र लिखकर  अंग्रेजी कहावत 'एक्शन्स स्पीक लाउडर देन वर्ड्स' अर्थात किसी के द्वारा किये गए कृत्य उसके द्वारा बोले गए शब्दों से अधिक गुंजित होते हैं, याद दिलाने जा रहा है।  सपा सरकार को आइना दिखाते हुए हम अखिलेश को यह भी बताएंगे कि वर्तमान में सूबे की सपा  सरकार इस कहावत से इतर काम कर रही  है औरयह सरकार  योजनाओं का क्रियान्वयन करने  में नहीं अपितु घोषणाओं का ढोल पीटने में अधिक विश्वास कर रही  है जो एक चुनी हुई सरकार से अपेक्षित कृत्यों के सर्वथा प्रतिकूल है ।


हमारा मानना है कि एक लोकतंत्र  में सरकार  को संसाधनों का वेहतर प्रवंधन करने और समाज के सर्वांगीण विकास के लिए चुना  जाता है न कि सरकारी धन को प्रचार में उड़ाने के लिए।  हम अखिलेश को यह भी बताना चाहते है कि यदि उनकी सरकार  समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक पंहुचेंगे तो उनका और उनकी पार्टी की सरकार का प्रचार  स्वतः ही हो जायेगा और इसके लिए उनको इस प्रकार 30 -30 लाख पत्रक छपवाकर जनता के 45 -45 लाख रुपये खर्च करने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। 

पर क्या यूपी के विपक्षी दल आने वाले चुनाव-2017 की पदचाप सुन रहे हैं ?


Sanjay Sharma سنجے شرما संजय शर्मा
( Founder & Chairman)
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 TAHRIR ( Transparency, Accountability & Human Rights initiative for revolution ) is a Bareilly/Lucknow based Social Organization, working at grass-root level by taking up & solving issues related to strengthening transparency & accountability in public life and protection of Human Rights in India.   तहरीर (पारदर्शिता, जवाबदेही और मानवाधिकार क्रांति के लिए पहल  )  भारत में लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ  जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था  है  l