विधुत उत्पादन पूंजी
निवेश में माया से 18% फिसड्डी अखिलेश !: क्या विकास की योजनाओं का पैसा लोक-लुभावन
योजनाओं में लगा रहे अखिलेश ? : उत्तर प्रदेश में बिजली उत्पादन लागत
17 रुपये 76 पैसे प्रति यूनिट भी और 1 रुपये
97 पैसे प्रति यूनिट भी !
मायावती की सरकार
की कार्यप्रणाली से
नाखुश उत्तर
प्रदेश की जनता
ने साल 2012 के
आम चुनाव में
शिक्षा से इंजीनियर
अखिलेश यादव के
युवा नेतृत्व में
चुनाव लड़ने बाली
समाजवादी पार्टी को
ऐतिहासिक बहुमत प्रदान कर
बहुत बड़ी बड़ी
अपेक्षाएं पाली थीं। क्या
मुख्यमंत्री बनने के
बाद अखिलेश जनता
की अपेक्षाओं पर
खरे उतर रहे
हैं या सूबे
की जनता एक
बार फिर अपने
आप को ठगा
गया महसूस कर
रही है ?
यह एक ऐसा
सबाल है जिसका
उत्तर देना आसान
नहीं है और
यदि उत्तर दे
भी दिया जाये
तो भी अपनी
गलती न मानने
की मानसिकता से
ग्रसित ये राजनैतिक
दल बिना प्रमाणों
के दिए गए
उत्तरों को तो
मानने से रहे। सो
यहाँ सरकार से
ही प्राप्त प्रमाणों
के आधार पर
यूपी की वर्तमान
सरकार की सुस्त
रफ्तार , कथनी और
करनी के अंतर
और अंधेर नगरी
चौपट राजा बाली
कार्यप्रणाली पर कुछ
खुलासे कर रहा
हूँ।
उत्तर प्रदेश में विकास
की बातें तो बहुत होतीं है पर विकास करने के रत्ती भर भी प्रयास नहीं होते है। बिजली
विकास का प्रमुख कारक है और समाज के हर तबके की मूलभूत आवश्यकता भी। बिजली की कमी से खेती,उद्योग,ऑफिस और सामान्य जनजीवन,
सभी प्रतिकूल प्रभावित होते हैं। यह बात हम तो समझते हैं पर शायद अखिलेश यादव के
नेतृत्व बाली सपा सरकार ऐसा नहीं समझती। शायद
इसीलिये अखिलेश ने मुख्यमंत्री के रूप
में काम करते हुए अपने तीन वर्ष के कार्यकाल में विधुत उत्पादन की परियोजनाओं के पूंजीनिवेश बढ़ाने की जगह अपनी पूर्ववर्ती मायावती के मुकाबले पूंजीनिवेश
में 1071 करोड़ से अधिक की भारीभरकम कटौती कर डाली।
मेरा मानना है कि मुद्रा
अवमूल्यन और बढ़ती
आवादी तथा बढ़ते
इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण
बढ़ती विधुत आवश्यकता
के मद्देनज़र विद्युत
उत्पादन के क्षेत्र
में पूर्ववर्ती सरकार
के मुकाबले पूंजीनिवेश को बढ़ाने
की आवश्यकता थी
पर लोक-लुभावन
योजनाओं को तरजीह
देने बाली अपरिपक्व
सरकार विकास की
मूलभूत आवश्यकताओं के खर्चों
में कटौती करती
रही जिसका खामियाजा
प्रदेश की जनता
अब की जा
रही लम्बी-लम्बी
बिजली कटौती के
दंश के रूप
में उठा रही
है।
मेरी एक आरटीआई
के जबाब में
उत्तर प्रदेश राज्य
विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड
के महाप्रबंधक (लेखा)
एम. सी. पाल
ने जो सूचना
दी है उसके अनुसार
उत्तर प्रदेश की
27 विधुत उत्पादन परियोजनाओं में वित्तीय
वर्ष 2007-08 में 1690.48 करोड़ की, वित्तीय
वर्ष 2008-09 में 2014.92करोड़ की,
वित्तीय वर्ष 2009-10 में 2195.99 करोड़ की,
वित्तीय वर्ष 2010-11 में 3037.97 करोड़ की,
वित्तीय वर्ष 2011-12 में 2238.09 करोड़ की,
वित्तीय वर्ष 2012-13 में 2450.99 करोड़ की,
वित्तीय वर्ष 2013-14 में 975.50 करोड़ की और वित्तीय
वर्ष 2014-15 में 1403.42 करोड़ की पूंजी
व्यय की गयी।
इन आंकड़ों से स्पष्ट
है कि मायावती के नेतृत्व बाली बहुजन समाज पार्टी की सरकार के आरंभिक 3 वर्षों में
उत्तर प्रदेश की विधुत उत्पादन परियोजनाओं में
5901.39 करोड़ की पूंजी व्यय की गयी
जबकि अखिलेश के नेतृत्व बाली समाजवादी पार्टी की सरकार के आरंभिक 3 वर्षों में उत्तर प्रदेश
की विधुत उत्पादन परियोजनाओं में 4829.91 करोड़ की पूंजी व्यय की गयी है जो पूर्ववर्ती मायावती
सरकार के मुकाबले 1071.48 करोड़ ( 18%) कम है । मायावती सरकार ने अपने पांच वर्षों के कार्यकाल
में विधुत उत्पादन परियोजनाओं में 11177.45
करोड़ का खर्चा किया था और अखिलेश को कागज पर मायावती की बराबरी करने के लिए भी बचे
दो वर्षों में विधुत उत्पादन परियोजनाओं में
6347.54 करोड़ रुपये खर्चने होंगे।
मेरा
मानना है
कि उत्तर प्रदेश
का सकल बजट
साल दर साल
बढ़ने के बाबजूद
अखिलेश द्वारा विकास के
मुख्य कारक बिजली
के उत्पादन की
परियोजनाओं के बजट
में कटौती करने
से एक बड़ा
सबाल यह भी
खड़ा हो रहा
है कि क्या
अखिलेश विकास के प्रति
वास्तव में संजीदा
हैं और यह भी
कि क्या अखिलेश ने
यही धन अपनी
लोकलुभावन योजनाओं पर व्यय
किया। गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2007
-08 से 2014 -15 तक की 8 वर्षों की अवधि में यूपी में वित्तीय वर्षवार
वित्तीय वर्ष 2007 -08 में 100911 करोड़, वित्तीय
वर्ष 2008 -09 में 112472 करोड़, वित्तीय वर्ष 2009 -10 में 133596 करोड़, वित्तीय वर्ष 2010 -11 में 153199 करोड़, वित्तीय वर्ष 2011 -12 में 169000 करोड़, वित्तीय वर्ष 2012 -13 में 200110 करोड़, वित्तीय वर्ष 2013 -14 में 221201 करोड़, और वित्तीय वर्ष 2014 -15 में 259848 करोड़ का सकल बजट पारित किया गया था।
मेरा
मानना है
कि यह आरटीआई जबाब विकास के मुद्दे पर वर्तमान सरकार की सुस्त रफ्तार तथा विकास
पर इस सरकार और अखिलेश यादव की कथनी और करनी
के अंतर को स्वतः ही सिद्ध कर रही है।
सूबे
के मुखिया अखिलेश यादव इंजीनियर हैं और उत्तर प्रदेश पॉवर कॉरपोरेशन लिमिटेड के ऊर्जा
विभाग के मातहत तो अनगिनत इंजीनियर और मैनेजर कार्यरत है पर मेरा मानना है कि अन्धेर नगरी चौपट राजा बाली कहावत जितनी इस विभाग
पर चरितार्थ होती है, शायद ही कहीं और हो।
मेरी इसी आरटीआई के जबाब में उत्तर
प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के महाप्रबंधक (लेखा) एम. सी. पाल ने यह
भी सूचना दी है कि उत्तर
प्रदेश की विधुत उत्पादन परियोजनाओं में वित्तीय
वर्ष 2013 - 14 के सम्प्रेक्षित लागत लेखों
के अनुसार प्रति यूनिट बिजली की उत्पादन लागत
17 रुपये 76 पैसे प्रति यूनिट भी है और
1 रुपये 97 पैसे प्रति यूनिट भी।
मुझे
दी गयी सूचना
के अनुसार सूबे
में सबसे सस्ती
बिजली का उत्पादन
अनपरा 'ब' तापीय
परियोजना में 1 रुपये 97 पैसे
प्रति यूनिट की
दर पर हो
रहा है तो
वहीं सबसे मंहगी
बिजली हरदुआगंज तापीय
परियोजना में 17 रुपये
76 पैसे प्रति यूनिट पर
बिजलीबन रही है। अनपरा
'अ ' तापीय परियोजना
में बिजली का
उत्पादन 2 रुपये
27 पैसे
प्रति यूनिट की
दर पर, ओबरा
'ब' तापीय
परियोजना में बिजली
का उत्पादन 2 रुपये 66 पैसे
प्रति यूनिट की
दर पर, पारीछा
2x250 मे० वा०
तापीय परियोजना में बिजली
का उत्पादन 4 रुपये 56 पैसे
प्रति यूनिट की
दर पर, पारीछा 2x210 मे०
वा० तापीय
परियोजना में बिजली
का उत्पादन 4 रुपये 72 पैसे
प्रति यूनिट की
दर पर,2x250
मे० वा०
हरदुआगंज तापीय परियोजना में बिजली
का उत्पादन 5 रुपये
03
पैसे प्रति यूनिट की
दर पर, ओबरा 'अ
' तापीय परियोजना में बिजली
का उत्पादन 5 रुपये 89 पैसे
प्रति यूनिट की
दर पर, पारीछा
2x110 मे० वा०
तापीय परियोजना में बिजली
का उत्पादन 6 रुपये
51
पैसे प्रति यूनिट की
दर पर और पनकी तापीय परियोजना
में 7 रुपये 17 पैसे प्रति यूनिट पर बिजली बना रही है।
इस
प्रकार उत्तर प्रदेश 2 रुपये
प्रति यूनिट से
कम की भी
बिजली बना रहा
है और 17 रुपये
प्रति यूनिट से
अधिक की भी। है
न अन्धेर
नगरी चौपट राजा
बाली व्यवस्था। मैं तो
ऐसा ही मानता
हूँ।
मैं
सोचता हूँ कि
काश अखिलेश ने
बार-बार बिजली
की दरें बढ़ाने
के स्थान पर
2 रुपये प्रति यूनिट की
दर से अधिक
से अधिक बिजली
बनाने के लिए
प्रयास किये होते
तो आम जनता
को भी राहत
होती और सही
अर्थों में समाजवाद
को पोषित होते
देख लोहिया की
आत्मा भी तृप्त
होती। पर
मुझे लगता है
कि अखिलेश को
जनता, समाजवाद और लोहिया
की फिक्र ही
नहीं है। वह
तो बस राजसुख
भोग रहे हैं।
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