चुनावों में स्वयं को 'चाय बेचने वाला' कहकर प्रचारित कर आमजन
का वोट पाने वाले नरेन्द्र मोदी भी प्रधानमंत्री बनते ही भूले पुराने दिन - अब नहीं रही वादे पूरे करने और जनता के पैसों से
फिजूल शाहख़र्ची न करने की चाहत ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पसंदीदा ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत पहले साल में भारत कितना साफ हुआ यह तो सभी जानते है पर मीडिया को
उपकृत करने के लिए महज विज्ञापन पर ही सरकार
ने जनता के 94 करोड़ रूपए फूँक दिए । क्या आप जानते भी हैं कि ‘स्वच्छ भारत अभियान’ पर बड़ी-बड़ी बातें करने
बाले प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में नरेंद्र मोदी के संसदीय कार्यालय से थोड़ी सी दूरी पर बीएचयू से सटे गांव छित्तूपुर की एक बस्ती में 250 साल से रह रहे 50 से अधिक परिवारों के लगभग 350 लोग आज भी डेढ़ फीट
के रास्ते से होकर अपने झोपड़े पंहुच गन्दगी
के बीच रहने को मजबूर हैं क्योंकि यहाँ पानी, सड़क, बिजली , जल निकासी नहीं है। “जहाँ सोच वहां शौचालय” की बात करने बाले
मोदी इस मुसहर बस्ती को अभी तक यह ‘सोच’ या यूँ कहें कि ‘शौचालय’ नहीं दे पाए हैं और ये लोग शौच और नहाने के लिए गाँव से बाहर जाने को मजबूर है ।
बड़ी स्मार्टनेस से बनारस को भी ‘क्योटो’ की तरह बनाने या ‘स्मार्टसिटी’ बनाने के पेंच में फंसा दिया गया है और शिलान्यासों के नाम पर 11-11 करोडी यात्राएं कर जनता को खूब गुमराह किया जा रहा है ।
पीएम नरेंद्र मोदी बनारस का दौरा तीन बार रद्द कर जनता के 33 करोड़
रुपये गटर में बहा चुके है । हास्यास्पद कारण रहे हैं साइक्लोन हुदहुद और बारिश ।
रैली स्थल पर बम विस्फोट तक हो जाने पर भी रैली करने पर अडिग रहने बाले मोदीजी
प्रधानमंत्री बनते ही दूर समुद्र में आये हुदहुद और बारिश जैसी चीजों से भी डरने
लगे । शायद इसलिए कि रैली में पैसा खुद की पार्टी का लगा था और अब की इन बनारस
यात्राओं की तैयारियों में निरीह जनता का । अब कथित रूप से ‘चायवाले’ रहे प्रधानमंत्री
को भी जनता के बीच जनप्रतिनिधि के रूप में आने पर भी एसी टॉयलेट और 100 टन के एसी की जरूरत हो तो इसे फिजूलखर्ची नहीं तो और क्या कहा जाए । इस एसी
के मेनटेनेंस के लिए भी अलग से 10 लोग दिल्ली से बनारस आए थे और 1.4 मेगावॉट की बिजली पैदा करने वाले बड़े-बड़े डीजल जनरेटर लगाए थे।
अब यह तो आपको मालूम ही होगा कि जून 2014 से जून 2015 के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक 26 देशों की यात्राएं कर चुके थे जिन पर जनता के 37 करोड़ रुपये खर्च किये गए थे ।
क्या ऐसे ही होने चाहिए भारत जैसे गरीब देश के लोकतंत्र के निर्वाचित जनप्रतिनिधि
!
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