हाल ही
में बसपा प्रमुख मायावती ने राज्यसभा में संविधान पर चर्चा के दूसरे दिन अगड़ी जाति के लिए
आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की मांग करके बड़ा धमाका किया है। गौरतलब है कि
प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी ने भी पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान अपने
घोषणापत्र में अगड़ी जातियों के लिए आयोग गठित करने की बात कही थी। सपा मुखिया
मुलायम सिंह यादव भी सामान्य श्रेणी की जातियों के गरीब लोगों को आरक्षण का लाभ देने के
हिमायती रहे हैं।
यूपी के आगामी 2017 विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र मायावती
के इस वक्तव्य में उनके अपने निहितार्थ हो सकते हैं और सपा के पूर्व के वक्तव्यों
में भी उनके कुछ राजनैतिक निहितार्थ हो सकते हैं परन्तु यदि उत्तर प्रदेश के पुलिस
मुख्यालय इलाहाबाद द्वारा लखनऊ के सामाजिक कार्यकर्ता और इंजीनियर संजय शर्मा की
एक आरटीआई पर दिए गए जबाब को संकेतक मानें तो स्पष्ट हो जाता है कि सरकारी
नौकरियों में अगड़ों की घटती संख्या के मद्देनज़र सरकारी सेवाओं में उनको आरक्षण
प्रदान करने की मांग अब प्रासंगिक होती जा रही है।
अब बात उत्तर प्रदेश के पुलिस मुख्यालय इलाहाबाद द्वारा
लखनऊ के सामाजिक कार्यकर्ता और इंजीनियर संजय शर्मा की आरटीआई पर दिए गए जबाब की । दरअसल संजय ने बीते साल के फरवरी माह
में यूपी के पुलिस महानिदेशक के कार्यालय में एक आरटीआई दायर करके यूपी पुलिस में
कार्यरत तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी के कुल कार्मिकों में से अनुसूचित जाति,
अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के कार्मिकों की संख्या की सूचना माँगी थी। पुलिस महकमा इस मामले
में हीलाहवाली करता रहा और राज्य सूचना आयोग के दखल के बाद पुलिस मुख्यालय इलाहाबाद के पुलिस
अधीक्षक कार्मिक ने बीते 26 नवम्बर के पत्र के माध्यम से संजय को सूचना उपलब्ध
कराई है।
समाजसेवी संजय को उपलब्ध कराई गयी सूचना के अनुसार यूपी
पुलिस में कार्यरत तृतीय श्रेणी के कुल 192799 कार्मिकों में से महज 67764 (35.15%)
ही सामान्य श्रेणी के हैं जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग के 81403 (42.22%) कार्मिक कार्यरत
हैं तथा अनुसूचित जाति के 42064 (21.82%) और अनुसूचित
जनजाति के 1568 (0.81%) कार्मिक कार्यरत हैं । इसी प्रकार यूपी पुलिस में कार्यरत
चतुर्थ श्रेणी के कुल 13489 कार्मिकों में से 6013 (44.54%) सामान्य श्रेणी के हैं जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग
के 3771 (27.94%) कार्मिक कार्यरत हैं तथा अनुसूचित जाति के 3594 (26.63%) और अनुसूचित जनजाति के 120 (0.89%) कार्मिक
कार्यरत हैं ।
यदि यूपी पुलिस में वर्तमान में कार्यरत तृतीय श्रेणी और
चतुर्थ श्रेणी के कार्मिकों की सम्मिलित संख्या के आधार पर देखें तो कुल 206288 कार्मिकों में से महज 73768 (35.76%) ही सामान्य श्रेणी के हैं जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग
के 85174 (41.29%) कार्मिक कार्यरत हैं
तथा अनुसूचित जाति के 45658 (22.13%)
और अनुसूचित जनजाति के 1688 (0.82%) कार्मिक कार्यरत हैं ।
संजय कहते हैं कि एम् आर बालाजी बनाम मैसूर एआईआर (AIR)) 1963 SC 649 में अदालत ने आरक्षण पर 50% की अधिकतम सीमा लगाई थी पर यदि इन आंकड़ो को देखें तो पता चलता है कि आज यूपी पुलिस में
कार्यरत 64.24% कार्मिक आरक्षित वर्गों से हैं ।
समाजसेवी संजय ने कहा कि यूपी में शीघ्र ही होने जा रही सिपाहियों की भरती के
बाद यूपी पुलिस में सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों का प्रतिनिधित्व और भी कम हो
जायेगा और इस पर चिंता व्यक्त करते हुए बताया कि वे शीघ्र यूपी के
राज्यपाल,मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव से मिलकर उनसे अगड़ी जाति के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की व्यवस्था कराने सम्बन्ध में केंद्र की सरकार को एक प्रस्ताव भेजने की
गुजारिश करेंगे ।
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