लखनऊ/शनिवार,17 अगस्त 2024…………..
पर्यावरणीय अनिवार्यताओं और लोकाचार के मद्देनज़र पूर्णतया पेपरलेस सूचना आयोग को समय की आवश्यकता बताते हुए यूपी की राजधानी लखनऊ के राजाजीपुरम क्षेत्र निवासी संजय शर्मा ने आयोग में हो रही आंशिक ऑफलाइन रिसीविंग को पर्यावरण विरोधी कहा है और यूपी सूचना आयोग को पूर्णतया पेपरलेस बनाने के साथ-साथ आरटीआई भवन का ग्रीन बिल्डिंग प्रमाणन कराने की मांग उठाते हुए देश और प्रदेश के संवैधानिक पदों पर बैठे गणमान्यों,यूपी सूचना आयोग के सभी आयुक्तों, अधिकारियों और आरटीआई के नोडल विभाग के अधिकारियों को पत्र भेजा है । संजय ने पत्र में लिखा है कि कागज रहित कार्यालय की दिशा में कदम केवल परिचालन दक्षता का सवाल नहीं है, बल्कि पर्यावरणीय मुद्दों के समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। आयोग के कामकाज में कागज के पूरी तरह से उन्मूलन से सीधे तौर पर आयोग के पर्यावरण पदचिह्न में कमी आएगी, जो संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी), विशेष रूप से लक्ष्य 13 (जलवायु कार्रवाई) और लक्ष्य 15 (भूमि पर जीवन) के तहत भारत की प्रतिबद्धताओं के अनुरूप होगा।
बकौल संजय पर्यावरणीय प्रबंधन के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता के चलते उन्होंने यह याचिका भेजी है जिसमें संजय ने लिखा है कि पारदर्शिता और जवाबदेही के संरक्षक के रूप में, उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग (यूपीएसआईसी) स्थिरता और पर्यावरणीय जिम्मेदारी के सिद्धांतों को अपनाकर अपनी भूमिका को और बढ़ाने के लिए एक अभूतपूर्व अवसर की दहलीज पर खड़ा है। संचय ने यह भी लिखा है कि वे मुख्य सूचना आयुक्त के प्रतिष्ठित नेतृत्व में आयोग से सम्मानपूर्वक आग्रह कर रहे हैं कि वह अपने कार्यों को पूरी तरह से कागज रहित प्रतिमान में बदलने के लिए सभी आवश्यक उपाय करे, जिससे भारत में अन्य सूचना आयोगों के लिए एक नई मिसाल कायम हो सके।
संजय कहते है कि ऐसे युग में जहां पर्यावरणीय गिरावट गंभीर स्तर तक पहुंच गई है, कागज रहित कार्यालय को अपनाना न केवल एक परिचालन आवश्यकता है बल्कि एक नैतिक अनिवार्यता भी है। बकौल संजय कागज पर पारंपरिक निर्भरता वनों की कटाई, अत्यधिक पानी की खपत, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और महत्वपूर्ण ऊर्जा व्यय से अटूट रूप से जुड़ी हुई है। डिजिटल, पेपरलेस ढांचे में परिवर्तन करके, आयोग अपने पर्यावरणीय पदचिह्न को नाटकीय रूप से कम कर सकता है, जिससे हमारे प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और जलवायु परिवर्तन को कम करने में योगदान मिलेगा।
संविधान के अनुच्छेद 48 - क और अनुच्छेद 51क (छ ) के संवैधानिक अधिदेशों का जिक्र करने के साथ-साथ एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ और सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य जैसे कई ऐतिहासिक निर्णयों में भारतीय न्यायपालिका द्वारा संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार के हिस्से के रूप में स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को लगातार मान्यता दिए जाने की बात भी संजय ने अपने पत्र में लिखी है।
बकौल संजय भारतीय कानूनी परिदृश्य ऐसे क़ानूनों और विनियमों से भरा पड़ा है जो सरकारी संस्थानों के भीतर पूर्णतया कागज रहित संचालन को पूरा करने के लिए परिवर्तन का समर्थन करते हैं और यहां तक कि इसकी आवश्यकता भी बताते है l इस कड़ी में संजय ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000,पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980,राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010, सार्वजनिक अभिलेख अधिनियम, 1993, ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 और जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018 के उद्धरण देते हुए अपनी बात मजबूती से रखी है।
संजय ने इस सम्बन्ध में केंद्र सरकार के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के साथ-साथ उत्तर प्रदेश सरकार की एकीकृत शिकायत निवारण प्रणाली (आईजीआरएस), यूपी ई-सुविधा, ई-ऑफिस कार्यान्वयन, डिजिटल गवर्नेंस और सार्वजनिक सेवा वितरण जैसे ई-जिला परियोजनाओं, वर्कफ़्लो और दस्तावेज़ प्रबंधन प्रणाली (IWDMS), डिजिटल हस्ताक्षर और इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणीकरण, डेटा सुरक्षा और गोपनीयता नीति, ई-गवर्नेंस (CB e-Gov) पहल के लिए क्षमता निर्माण, और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्मों की भी बात अपने पत्र में कही है और इन योजनाओं को सूचना प्रौद्योगिकी (उचित सुरक्षा प्रथाओं और प्रक्रियाओं और संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा या सूचना) नियम, 2011, लोक सेवाओं का अधिकार अधिनियम, 2011, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और डेटा संरक्षण विधेयक (लंबित) द्वारा समर्थित बताते हुए पूर्णतया पेपरलेस ऑफिस का समर्थक बताया है।
संजय ने आयोग से अपने परिसर आरटीआई भवन के लिए हरित भवन मानक, जैसे कि भारतीय हरित भवन परिषद (आईजीबीसी) या ऊर्जा और पर्यावरण डिजाइन में नेतृत्व (एलईईडी) द्वारा निर्धारित कुशल ऊर्जा और पानी का उपयोग, अपशिष्ट में कमी और इनडोर पर्यावरण गुणवत्ता में सुधार करते हुए ग्रीन बिल्डिंग प्रमाणन प्राप्त करने का भी आग्रह किया है । बकौल संजय इस तरह का प्रमाणन प्राप्त करने से न केवल आयोग के संचालन की स्थिरता में वृद्धि होगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति आयोग के समर्पण का एक सार्वजनिक प्रमाण भी बनेगा।
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