विशेष समाचार का सार ©yaishwaryaj: भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर मनमोहन सिंह की सरकार को हटाकर
दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुई नरेंद्र मोदी सरकार 2 साल बाद ही भ्रष्टाचार के
मुद्दे पर खुद भी घिरती नज़र आ रही है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मानवाधिकार
कार्यकर्ता और इंजीनियर संजय शर्मा ने लोकसभा में लोकपाल व लोकायुक्त अधिनियम में हालिया
संशोधन को मंजूरी देने के मामले को मोदी सरकार का भ्रष्टाचार को पोषित करने वाला एक
कदम बताते हुए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा किया है.
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Lucknow/28 July
2016/ Written by Urvashi Sharma ©yaishwaryaj
गौरतलब
है कि लोकसभा ने बीते बुधवार को
लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 की धारा 44 में संशोधन को मंजूरी
प्रदान कर
दी है जिसमें केंद्रीय लोक सेवकों और एनजीओ के लिए अपनी सम्पत्ति एंव देनदारी
की घोषणा करने की समयसीमा से पांचवीं बार छूट दी गई है.मोदी सरकार का कहना है कि क्योंकि इस विधेयक को विस्तार से
चर्चा के लिए संसद की स्थायी समिति को भेजा जा रहा है इसलिए इसकी रिपोर्ट आने तक
के लिए सम्पत्ति और देनदारी की घोषणा करने की समयसीमा को बढ़ाया गया है.
मानवाधिकार संरक्षण के क्षेत्र में
कार्यरत समाजसेवी संजय शर्मा मोदी सरकार के इस तर्क से सहमत नहीं है.संजय के
अनुसार यदि सरकार की मंशा साफ थी तो इस संशोधन विधेयक को एजंडे में शामिल कर चर्चा करने के बाद इसे
पारित कराया जाता. संजय ने सरकार के इस कदम को भ्रष्ट अधिकारियों के दवाव में लोकपाल
कानून को कमजोर करने की साजिश बताते हुए मोदी सरकार के इस कदम की भर्त्सना की है.
संजय
ने बताया कि लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 के तहत अधिसूचित नियमों के मुताबिक प्रत्येक
लोकसेवक को अपनी सम्पत्ति की घोषणा के साथ अपनी पत्नी या पति और आश्रित
बच्चों की संयुक्त सम्पत्ति और देनदारियों की भी घोषणा करना जरूरी है पर जनवरी 2014
को कानून के प्रभाव में आने
के बाद से सरकार ने इन घोषणाओं को करने की समय सीमा में पांच बार विस्तार करके सिद्ध
कर दिया है कि वह उच्च पदों पर नियुक्त अधिकारियों के भ्रष्टाचार को उजागर करने के
मुद्दे पर गंभीर तो नहीं ही है साथ ही साथ
भ्रष्ट अधिकारियों के साथ साधक-सिद्धक जैसा गठजोड़ बनाकर काम कर रही है और अधिकारी
और सरकार दोनों ही अपना-अपना उल्लू सीधा कर आम जनता के साथ धोखाधड़ी कर रहे है.
संजय ने बताया कि लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 में संशोधन
हेतु पेश बिल नंबर 185/2016 के द्वारा सरकार अधिनियम की धारा 44 और 59 में संशोधन
करने जा रही है. लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 की मूल मंशा के विपरीत सरकार लोकसेवक
को उसकी पत्नी या पति और आश्रित बच्चों की संयुक्त सम्पत्ति
और देनदारियों की घोषणा से छूट देकर धारा 44 को केवल लोकसेवक तक
ही सीमित करने जा रही है. यही नहीं अब तक धारा 44 में घोषित की गयी सम्पत्तियों और देनदारियों को वेबसाइट्स पर सार्वजनिक किया
जाना अनिवार्य था किन्तु मोदी सरकार इस संशोधन द्वारा इस अनिवार्यता को ख़त्म करके उच्च
पदस्थ अधिकारियों की संपत्तियों को गोपनीयता के दायरे में लाने जा रही है.
बकौल संजय सरकार के इस कदम से भ्रष्ट
लोकसेवकों को अपनी काले कमाई को पत्नी या पति और आश्रित बच्चों के नाम संपत्ति जमा करने की खुली छूट मिल
जायेगी जिससे उच्च पदों पर भ्रष्टाचार में और भी बढ़ोत्तरी तो होगी ही साथ ही साथ उच्च
पदस्थ अधिकारियों की संपत्ति की घोषणाओं को पब्लिक डोमेन से हटाकर सरकारी रिकॉर्ड तक सीमित रखने के कारण सरकारें
इन अधिकारीयों को अपने मनमाफिक कार्य करने के लिए ब्लैकमेल भी कर सकेंगी जिसके
कारण अधिकारी जनहित के बजाय सरकारों के निहित हित के लिए काम करने को प्रवृत होंगे.
संजय के अनुसार इस बिल के पास होने से जहाँ एक ओर बेईमान और चाटुकार अधिकारी उत्साहित
होंगे तो वहीं ईमानदार और कर्मठ अधिकारी हतोत्साहित होंगे जिसका अंतिम परिणाम सरकारी
योजनाओं में भ्रष्टाचार की बढ़ोत्तरी के रूप में
सामने आएगा.
संजय
ने बताया कि वे प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर धारा 44 के
प्राविधान हटाने के सम्बन्ध में भारत सरकार को प्राप्त सभी ज्ञापनों को सार्वजनिक
करने की मांग कर रहे है और वे मोदी सरकार
द्वारा लाये जा रहे इस बिल के नकारात्मक पहलुओं को आम जनता के बीच ले जाकर इस
मुद्दे को एक देशव्यापी आन्दोलन बनाने का कार्य आरम्भ करने जा रहे हैं.
©yaishwaryaj
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Urvashi Sharma is a
Lucknow based freelancer and Secretary at YAISHWARYAJ. She can be contacted at rtimahilamanchup@gmail.com
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