Saturday, July 30, 2016

UP : दयाशंकर परिवार गालीकाण्ड में समाजसेविका उर्वशी की अर्जी पर NHRC ने BSP नेताओं के खिलाफ शिकायत दर्ज कर शुरू की जांच.



विशेष समाचार का सार  ©TAHRIR : बसपा कार्यकर्ताओं और मायावती समर्थकों द्वारा पूर्व बीजेपी नेता दयाशंकर के खिलाफ पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों-कर्मचारियों की उपस्थिति में किये गए  सार्वजनिक विरोध-प्रदर्शनों के दौरान बसपा नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा दयाशंकर और उसकी बेटी,बहन,पत्नी के वारे में अपशब्दों के प्रयोग को यूपी में कानून व्यवस्था की पूर्ण अनुपस्थिति के साथ-साथ दयाशंकर और दयाशंकर की बहन,पत्नी और बेटी के मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन बताते हुए लखनऊ स्थित प्रतिष्ठित समाजसेविका उर्वशी शर्मा द्वारा दी गयी अर्जी पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मामला दर्ज कर जांच प्रक्रिया शुरू कर दी है और यह जानकारी एक ई-मेल के माध्यम से उर्वशी को दी है.




Lucknow/30 July 2016/ Written by Sanjay Sharma ©TAHRIR


बसपा कार्यकर्ताओं और मायावती समर्थकों द्वारा पूर्व बीजेपी नेता दयाशंकर के खिलाफ किये गए  सार्वजनिक विरोध-प्रदर्शनों के दौरान बसपा नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा दयाशंकर के डीएनए में खराबी होने, उन्हें नाजायज औलाद  बताने, कुत्ता कहे जाने और दयाशंकर अपनी बेटी को पेश करो, अपनी बहन पेश करो और अपनी पत्नी पेश करोजैसे नारे पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों-कर्मचारियों की उपस्थिति में लगाए जाने को यूपी में कानून व्यवस्था की पूर्ण अनुपस्थिति के साथ-साथ दयाशंकर और दयाशंकर की बहन,पत्नी और बेटी के मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन करने का गैरकानूनी कृत्य बताते हुए मामले की जांच कर दोषियों को दण्डित कराते हुए दयाशंकर के परिवार को मुआवजा दिलाने के लिए लखनऊ स्थित वरिष्ठ समाजसेविका उर्वशी शर्मा द्वारा दी गयी अर्जी पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने प्रकरण संख्या 28284/24/48/2016-WC दर्ज कर जांच प्रक्रिया शुरू कर दी है और यह जानकारी एक ई-मेल के माध्यम से उर्वशी को दी है.


उर्वशी ने बताया कि उन्होंने बीते 22 जुलाई को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष को एक पत्र भेजकर बीते 21 जुलाई  को राजधानी लखनऊ स्थित हजरतगंज चौराहे के पास बहुजन समाज पार्टी के धरने प्रदर्शन में लखनऊ पुलिस और प्रशासन के जिम्मेदार कार्मिकों  की उपस्थिति में पूर्व बी.जे.पी. नेता दया शंकर सिंह के परिवार की महिलाओं की शालीनता को भंग करने वाले अपशब्दों और दया  शंकर सिंह के मानवाधिकारों का हनन करने वाले बैनर-पोस्टर और शब्दों के सार्वजनिक प्रयोग करने के मामले की जांच आयोग के स्तर से कराने का अनुरोध किया था. उर्वशी ने बताया कि उन्होंने अपने पत्र के साथ धरने के कार्यक्रम की वीडियो क्लिप्स भी आयोग को भेजीं थीं l





उर्वशी ने बताया कि बीते कल राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उनको एक ई-मेल भेजकर सूचित किया है कि दयाशंकर के परिवार की महिला सदस्यों के वारे में उनके द्वारा भेजी गयी शिकायत को आयोग में पंजीकृत कर लिया गया है. आयोग ने उर्वशी को शिकायत का पंजीकरण संख्या भी दे दिया है.    


गौरतलब है कि उर्वशी ने बीते दिनों सूबे के पुलिस महानिदेशक जावीद अहमद और ए.डी.जी. कानून व्यवस्था दलजीत चौधरी को पत्र लिखकर महिला के विरुद्ध अपराधों के आरोपी बीएसपी नेताओं नसीमुद्दीन सिद्दीकी आदि के खिलाफ पॉस्को एक्ट लगाकर  गिरफ्तारी की कार्यवाही तत्काल आरम्भ कराने और लखनऊ पुलिस द्वारा दया शंकर सिंह और बीएसपी नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी आदि की गिरफ्तारी के मामले में दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगाते हुए बीएसपी नेताओं के खिलाफ लिखी एफआईआर की जांच कर रहे पुलिस कार्मिकों के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराकर विधिक कार्यवाही कराने की मांग भी की थी.



अपनी एक शिकायत पंजीकृत होने के बाद उर्वशी ने अब बीएसपी नेताओं नसीमुद्दीन सिद्दीकी आदि के खिलाफ पॉस्को एक्ट लगाकर  गिरफ्तारी की कार्यवाही तत्काल आरम्भ कराने के लिए भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का दरवाजा खटखटाने की बात कही है.

 

 
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Sanjay Sharma is a Lucknow based freelancer and President at TAHRIR. He can be contacted at associated.news.asia@gmail.com Mobile/Whatsapp No. 7318554721.

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Thursday, July 28, 2016

UP : सूचना आयुक्तों द्वारा महिला यौन उत्पीडन करने पर उपराष्ट्रपति सख्त : मुख्य सचिव को लिखा पत्र.




विशेष समाचार का सार  ©TAHRIR : भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने यूपी के सूचना आयुक्तों द्वारा राज्य सूचना आयोग की सुनवाइयों में आने वाली महिलाओं का उत्पीडन करने की घटनाओं का संज्ञान लेकर राज्य सूचना आयोग में उच्चतम न्यायालय द्वारा विशाखा मामले में दिए निर्देशों के अनुरूप ‘यौन उत्पीडन जांच समिति’ बनाने के लिए यूपी के मुख्य सचिव को पत्र लिखा है और इस पत्र की प्रति इस मुहिम की प्रणेता येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव और प्रतिष्ठित समाजसेविका उर्वशी शर्मा को भेजते हुए उर्वशी को अपनी इस मांग के सम्बन्ध में मुख्य सचिव से मिलने की बात कही है जिससे एक ओर जहाँ राज्य सूचना आयोग में महिलाओं का उत्पीडन करने वाले आयुक्तों की पेशानी पर चिन्ता की लकीरें उभरने के साथ-साथ सूचना आयोग में अफरा-तफरी का माहोल साफ-साफ दिखाई दे रहा है तो वहीं इस मुद्दे पर उर्वशी के साथ हिरासत में लिए गए समाजसेवी तनवीर अहमद सिद्दीकी और घर में नज़रबंद रखे गए वरिष्ठ आरटीआई कार्यकर्ता अशोक कुमार गोयल अपनी यंत्रणा भुलाकर इसे सूचना आयोग को महिलाओं के प्रति सभ्य बनाने की दिशा में किये गए उनके प्रयासों का मीठा प्रतिफल बता रहे हैं.





Lucknow/29 July 2016/ Written by Sanjay Sharma ©TAHRIR


लगता है कि सामाजिक संगठन येश्वर्याज के धुआंधार प्रयासों से यूपी के राज्य सूचना आयोग की सुनवाइयों में आने वाली महिलाओं को यहाँ के सूचना आयुक्तों के उत्पीडन से बचने के लिए ‘यौन उत्पीडन जांच समिति’ की सौगात जल्द ही मिलने वाली है. येश्वर्याज की सचिव और समाजसेविका उर्वशी शर्मा द्वारा बीते 11 जुलाई को इस सम्बन्ध में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को भेजे गए मांग पत्र का संज्ञान लेकर अपने सचिवालय के माध्यम से उर्वशी का मांगपत्र मूल रूप में यूपी के मुख्य सचिव को भेजते हुए मुख्य सचिव को इस मामले में समुचित ध्यान देने के निर्देश दिए है. उपराष्ट्रपति सचिवालय ने इस पत्र की प्रति उर्वशी को भी भेजते हुए इस मांग के सम्बन्ध में मुख्य सचिव से मिलने की बात भी कही है.


बताते चलें कि सूचना आयोग में यौन उत्पीडन जांच समिति बनाने और सभी सुनवाई कक्षों में आडिओ-वीडियो रिकॉर्डिंग शुरू कराने की मांग पूरी किये बिना बीते 11 जुलाई को आरटीआई भवन के उद्घाटन पर भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, यूपी के राज्यपाल राम नाईक और यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का विरोध करने की घोषणा के चलते येश्वर्याज की सचिव उर्वशी और कोषाध्यक्ष तनवीर अहमद सिद्दीकी को बीते 10 जुलाई की रात 9 बजे हिरासत में लेकर अगले दिन कार्यक्रम के समाप्त होने के बाद रिहा किया गया था और येश्वर्याज के अध्यक्ष अशोक कुमार गोयल को इसी अवधि में उनके आवास पर नज़रबंद कर दिया गया था. यही नहीं येश्वर्याज के  बाकी सदस्यों को भी अवैध पुलिसिया उत्पीडन की सम्भावना के  चलते भूमिगत होना पड़ा था. संगठन के सदस्यों पर शासन-प्रशासन की कड़ी निगाह के चलते आम जनता येश्वर्याज की मदद को सामने आई जिसने शासन-प्रशासन की आँखों में धूल झोंककर राजधानी की हृदयस्थली कहे जाने वाले हजरतगंज चौराहे के निकट स्थित महात्मा गांधी पार्क में पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार पूर्वाह्न 11 बजे से अपराह्न 2 बजे तक धरना-प्रदर्शन किया और जमानत पर रिहा होते ही उर्वशी ने उपराष्ट्रपति को यह मांगपत्र प्रेषित किया जिसे अब उपराष्ट्रपति ने यूपी के मुख्य सचिव को भेजा है.



उर्वशी ने एक विशेष बातचीत में बताया कि सूचना आयोग आने वाले आरटीआई आवेदकों के साथ अधिकांश सूचना आयुक्तों का व्यवहार आपत्तिजनक होता है और सूचना आयुक्तों द्वारा सुनवाइयों के दौरान प्रायः ही महिला आरटीआई आवेदकों के समक्ष महिलाओं की शालीनता को भंग करने वाले शब्दों का खुलकर प्रयोग किया जाता है. उर्वशी ने बताया कि सूचना आयोग में महिला यौन उत्पीडन जांच समिति बनने के बाद महिलाएं को अपने उत्पीडन की शिकायतें करने का एक मंच मिल जायेगा और शिकायतों के डर से सूचना आयुक्तों का व्यवहार भी सुधरने की उम्मीद की जा सकती है साथ ही साथ सुनवाइयों की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग शुरू होने के बाद  सूचना आयुक्त आरटीआई आवेदकों से दुर्व्यवहार नहीं कर पायेंगे . बकौल उर्वशी, यदि वे उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग और महिला यौन उत्पीडन जांच समिति का गठन कराने में कामयाब हो जाती हैं तो उनका और उनके साथी तनवीर का पुलिस हिरासत में रहना सार्थक हो जाएगा.  
  

  
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लोकपाल एक्ट में संशोधन मोदी सरकार का भ्रष्ट अधिकारियों को बचाने का प्रयास: संजय शर्मा



विशेष समाचार का सार  ©yaishwaryaj: भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर मनमोहन सिंह की सरकार को हटाकर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुई नरेंद्र मोदी सरकार 2 साल बाद ही भ्रष्टाचार के मुद्दे पर खुद भी घिरती नज़र आ रही है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मानवाधिकार कार्यकर्ता और इंजीनियर संजय शर्मा ने लोकसभा में लोकपाल व लोकायुक्त अधिनियम में हालिया संशोधन को मंजूरी देने के मामले को मोदी सरकार का भ्रष्टाचार को पोषित करने वाला एक कदम बताते हुए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा किया है.
To read full story, please click the link  http://upcpri.blogspot.in/2016/07/blog-post_74.html


Lucknow/28 July 2016/ Written by Urvashi Sharma  ©yaishwaryaj
गौरतलब है कि लोकसभा ने बीते बुधवार को लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 की धारा 44 में संशोधन को मंजूरी प्रदान कर दी है जिसमें केंद्रीय लोक सेवकों और एनजीओ के लिए अपनी सम्पत्ति एंव देनदारी की घोषणा करने की समयसीमा से पांचवीं बार छूट दी गई है.मोदी सरकार का कहना है कि क्योंकि इस विधेयक को विस्तार से चर्चा के लिए संसद की स्थायी समिति को भेजा जा रहा है इसलिए इसकी रिपोर्ट आने तक के लिए सम्पत्ति और देनदारी की घोषणा करने की समयसीमा को बढ़ाया गया है.



मानवाधिकार संरक्षण के क्षेत्र में कार्यरत समाजसेवी संजय शर्मा मोदी सरकार के इस तर्क से सहमत नहीं है.संजय के अनुसार यदि सरकार की मंशा साफ थी तो इस संशोधन विधेयक को एजंडे में शामिल कर चर्चा करने के बाद इसे पारित कराया जाता. संजय ने सरकार के इस कदम को भ्रष्ट अधिकारियों के दवाव में लोकपाल कानून को कमजोर करने की साजिश बताते हुए मोदी सरकार के इस कदम की भर्त्सना की है.





संजय ने बताया कि लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 के तहत अधिसूचित नियमों के मुताबिक प्रत्येक लोकसेवक को अपनी सम्पत्ति की घोषणा के साथ अपनी पत्नी या पति और आश्रित बच्चों की संयुक्त सम्पत्ति और देनदारियों की भी घोषणा करना जरूरी है पर जनवरी 2014 को कानून के प्रभाव में आने के बाद से सरकार ने इन घोषणाओं को करने की समय सीमा में पांच बार विस्तार करके सिद्ध कर दिया है कि वह उच्च पदों पर नियुक्त अधिकारियों के भ्रष्टाचार को उजागर करने के  मुद्दे पर गंभीर तो नहीं ही है साथ ही साथ भ्रष्ट अधिकारियों के साथ साधक-सिद्धक जैसा गठजोड़ बनाकर काम कर रही है और अधिकारी और सरकार दोनों ही अपना-अपना उल्लू सीधा कर आम जनता के साथ धोखाधड़ी कर रहे है.


संजय ने बताया कि   लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 में संशोधन हेतु पेश बिल नंबर 185/2016 के द्वारा सरकार अधिनियम की धारा 44 और 59 में संशोधन करने जा रही है. लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 की मूल मंशा के विपरीत सरकार लोकसेवक को उसकी  पत्नी या पति और आश्रित बच्चों की संयुक्त सम्पत्ति और देनदारियों की घोषणा से छूट देकर धारा 44 को केवल लोकसेवक तक ही सीमित करने जा रही है. यही नहीं अब तक धारा 44 में घोषित की गयी सम्पत्तियों  और देनदारियों को वेबसाइट्स पर सार्वजनिक किया जाना अनिवार्य था किन्तु मोदी सरकार इस संशोधन द्वारा इस अनिवार्यता को ख़त्म करके उच्च पदस्थ अधिकारियों की संपत्तियों को गोपनीयता के दायरे में लाने जा रही है.






बकौल संजय सरकार के इस कदम से भ्रष्ट लोकसेवकों को अपनी काले कमाई को पत्नी या पति और आश्रित बच्चों के नाम संपत्ति जमा करने की खुली छूट मिल जायेगी जिससे उच्च पदों पर भ्रष्टाचार में और भी बढ़ोत्तरी तो होगी ही साथ ही साथ उच्च पदस्थ अधिकारियों की संपत्ति की घोषणाओं को पब्लिक डोमेन से हटाकर  सरकारी रिकॉर्ड तक सीमित रखने के कारण सरकारें इन अधिकारीयों को अपने मनमाफिक कार्य करने के लिए ब्लैकमेल भी कर सकेंगी जिसके कारण अधिकारी जनहित के बजाय सरकारों के निहित हित के लिए काम करने को प्रवृत होंगे. संजय के अनुसार इस बिल के पास होने से जहाँ एक ओर बेईमान और चाटुकार अधिकारी उत्साहित होंगे तो वहीं ईमानदार और कर्मठ अधिकारी हतोत्साहित होंगे जिसका अंतिम परिणाम सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार की बढ़ोत्तरी के रूप में सामने आएगा.




संजय ने बताया कि वे प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर धारा 44 के प्राविधान हटाने के सम्बन्ध में भारत सरकार को प्राप्त सभी ज्ञापनों को सार्वजनिक करने  की मांग कर रहे है और वे मोदी सरकार द्वारा लाये जा रहे इस बिल के नकारात्मक पहलुओं को आम जनता के बीच ले जाकर इस मुद्दे को एक देशव्यापी आन्दोलन बनाने का कार्य आरम्भ करने जा रहे हैं.
 ©yaishwaryaj
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Wednesday, July 20, 2016

पारदर्शिता के मुद्दे पर आईपीएस अमिताभ ठाकुर का दोगलापन उजागर.



आईपीएस अमिताभ ठाकुर वैसे तो पारदर्शिता के लिए समर्पण की बात करता है पर अपने मामले में पारदर्शिता से बचने के लिए हर हथकंडा अपनाता है.पिछले दिनों अमिताभ ठाकुर ने लखनऊ के सहारागंज की पार्किंग के ठेकेदार के खिलाफ एफआईआर लिखाई थी पर जब मैंने आरटीआई के जरिये यह जानना चाहा कि दोपहर बाद और शाम से पहले कार्यालय से बाहर जाकर परिवार संग घूमने के लिए इस आईपीएस ने कौन सी छुट्टी ली थी तो डीजीपी कार्यालय के जनसूचना अधिकारी ने मुझे बताया है कि अमिताभ ने डीजीपी कार्यालय को पत्र लिखकर कहा है कि यह सूचना उसकी व्यक्तिगत सूचना है और यह सूचना मुझे न दी जाए.

अमिताभ के अंध-भक्तों को बता दूं कि कोई भी कमेंट करने से पहले वे यह जान लें और अमिताभ से भी पुष्टि कर लें कि अमिताभ ठाकुर की पत्नी नूतन ठाकुर मेरी सेवा से जुडी अनेकों जानकारियां न केवल मांग चुकी है अपितु प्राप्त भी कर चुकी है.

अमिताभ मामले को अब आयोग लेकर जा रहा हूँ.