लोकायुक्त
जांच से बचने को कानूनी हथकण्डे अपनाते निलम्बित आईपीएस अमिताभ ठाकुर और
उनकी पत्नी नूतन ठाकुर : क्षद्म समाजसेवी ठाकुर दंपत्ति के दोहरे मापदंड और
कथनी - करनी का अंतर उजागर l
ये कैसे समाजसेवी हैं जो औरों को तो पारदर्शिता का पाठ पढ़ाते है पर स्वयं की सूचना मांगे जाने पर बेशर्मी से पारदर्शिता का त्याग लिखित रूप से कर देते है , जो बात तो जबाबदेही की करते हैं पर जब बात स्वयं की संपत्ति अर्जित करने पर जबाबदेही निर्धारण की आती है तो जांच को टालने के उद्देश्य से बेशर्मी से कानूनी हथकण्डे अपनाते हैं , जो बात तो आम आदमी के अधिकारों की करते हैं पर व्यवस्था से रेड-टेपिस्म दूर करने की बजाय व्यवस्था में रेड-टेपिस्म को बढाने की बात करते हैं l
समाचारों से पता चला है कि मेरे द्वारा अमिताभ के विरुद्ध लोकायुक्त में की गयी शिकायत के सम्बन्ध में अमिताभ ठाकुर ने कहा है कि उप्र० लोकायुक्त एक्ट 1975 के नियम 9(2) तथा 9(3) में अंकित है कि प्रत्येक शिकायत और संलग्न शपथपत्र सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुरूप सत्यापित होना चाहिए जबकि धारा 9(5) में लिखा है कि नियम 9(2) तथा 9(3) का पालन नहीं होने पर परिवाद ग्रहण नहीं किया जा सकता है। इस एक्ट की धारा 8(1) में भी कहा गया कि नियम 9 के विपरीत किसी भी शिकायत की जाँच नहीं हो सकती है।
अपने भ्रष्टाचार पर अमिताभ और नूतन कई मौकों पर शातिराना वक्तव्य देते हैं कि वे लोकायुक्त से अनुरोध करेंगे कि वे उनकी संपत्ति जांच लें और जब मेरे द्वारा शिकायत की जाती है तो जांच को टालने के उद्देश्य से बेशर्मी से दांव पेंच अपनाने लगते हैं l
तो ये हैं पारदर्शिता,जबाबदेही और आम आदमी के अधिकारों पर लखनऊ की इस ठाकुर दंपत्ति के दोहरे मापदंड l शायद इनकी समाजसेवा मात्र अपने काले साम्राज्य को बचाने के लिए ही है और इनको वास्तविक सामाजिक सरोकारों से तो कोई भी वास्ता ही नहीं है l
क्या ऐसे लोग समाजसेवी कहलाने के लायक हैं ? मेरे हिसाब से तो बिलकुल नहीं l आप भी अपनी राय दें l
ये कैसे समाजसेवी हैं जो औरों को तो पारदर्शिता का पाठ पढ़ाते है पर स्वयं की सूचना मांगे जाने पर बेशर्मी से पारदर्शिता का त्याग लिखित रूप से कर देते है , जो बात तो जबाबदेही की करते हैं पर जब बात स्वयं की संपत्ति अर्जित करने पर जबाबदेही निर्धारण की आती है तो जांच को टालने के उद्देश्य से बेशर्मी से कानूनी हथकण्डे अपनाते हैं , जो बात तो आम आदमी के अधिकारों की करते हैं पर व्यवस्था से रेड-टेपिस्म दूर करने की बजाय व्यवस्था में रेड-टेपिस्म को बढाने की बात करते हैं l
समाचारों से पता चला है कि मेरे द्वारा अमिताभ के विरुद्ध लोकायुक्त में की गयी शिकायत के सम्बन्ध में अमिताभ ठाकुर ने कहा है कि उप्र० लोकायुक्त एक्ट 1975 के नियम 9(2) तथा 9(3) में अंकित है कि प्रत्येक शिकायत और संलग्न शपथपत्र सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुरूप सत्यापित होना चाहिए जबकि धारा 9(5) में लिखा है कि नियम 9(2) तथा 9(3) का पालन नहीं होने पर परिवाद ग्रहण नहीं किया जा सकता है। इस एक्ट की धारा 8(1) में भी कहा गया कि नियम 9 के विपरीत किसी भी शिकायत की जाँच नहीं हो सकती है।
अपने भ्रष्टाचार पर अमिताभ और नूतन कई मौकों पर शातिराना वक्तव्य देते हैं कि वे लोकायुक्त से अनुरोध करेंगे कि वे उनकी संपत्ति जांच लें और जब मेरे द्वारा शिकायत की जाती है तो जांच को टालने के उद्देश्य से बेशर्मी से दांव पेंच अपनाने लगते हैं l
तो ये हैं पारदर्शिता,जबाबदेही और आम आदमी के अधिकारों पर लखनऊ की इस ठाकुर दंपत्ति के दोहरे मापदंड l शायद इनकी समाजसेवा मात्र अपने काले साम्राज्य को बचाने के लिए ही है और इनको वास्तविक सामाजिक सरोकारों से तो कोई भी वास्ता ही नहीं है l
क्या ऐसे लोग समाजसेवी कहलाने के लायक हैं ? मेरे हिसाब से तो बिलकुल नहीं l आप भी अपनी राय दें l
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