लखनऊ/मंगलवार, 14 मई 2024 ...............
कहावत है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते हैं. कुछ ऐसा ही हाल उत्तर प्रदेश के सूचना आयोग का भी नज़र आ रहा है जहाँ सूचना कानून की धारा 4 (1)(b) की सूचनाओं को वित्तीय वर्ष 2021-22 के बाद से अपडेट ही नहीं किया जा रहा था लेकिन सूबे की राजधानी लखनऊ के राजाजीपुरम क्षेत्र निवासी कंसलटेंट इंजीनियर संजय शर्मा द्वारा बीते माह में की गईं कई शिकायतों के बाद सूचना आयोग को महीने भर के अन्दर ही सुधरना पड़ गया है और आयोग ने सूचना कानून की धारा 4 (1)(b) की सूचनाएं अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दीं हैं.
संजय ने शिकायत में सूचना आयोग पर आरोप लगाया था कि सूचना आयोग ने सूचना कानून की धारा 4 (1)(b) की सूचनाओं को वित्तीय वर्ष 2021-22 के बाद से अपडेट ही नहीं किया था जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23, 2023-24 और वर्तमान वित्तीय वर्ष 2024-25 में उपरोक्त सूचनाएं पब्लिक अथॉरिटी के रूप में राज्य सूचना आयोग द्वारा अपडेट की जानी चाहिए थीं.
आयोग की इस लचर कार्यप्रणाली को अत्यंत खेदपूर्ण बताने के साथ-साथ संजय ने एक पब्लिक अथॉरिटी के रूप में आयोग के स्तर पर अपने कर्तव्यों के निर्वहन में नितांत अक्षमता और असंवेदनशीलता और का द्योतक बताते हुए इसके लिए आयोग के आतंरिक प्रशासन के सम्पूर्ण निकाय को समग्र रूप से उत्तरदाई ठहराया था.
अपनी शिकायत में सूचना कानून और सुप्रीम कोर्ट की साल 2021 की सिविल याचिका संख्या 990 ( KISHAN CHAND JAIN VERSUS UNION OF INDIA & ORS. ) के आदेश की बात कहते हुए संजय ने कहा था कि पूरे सूबे के सभी सरकारी कार्यालयों द्वारा सूचना कानून की धारा 4 (1)(b) का पालन करवाने की जिम्मेदारी सूचना आयोग की है लेकिन ऐसा सूचना आयोग अपनी जिम्मेदारियों को क्या निभाएगा जो खुद धारा 4 (1)(b) का पालन करने के मामले में कई वर्षों से गहरी नींद में सोया पड़ा था.
संजय ने सूचना आयोग के आतंरिक प्रशासन के सम्पूर्ण निकाय पर देश के प्रधानमन्त्री और सूबे के मुख्यमंत्री के अथक प्रयासों को विफल करने की साजिश जैसी करने का आरोप भी अपनी शिकायत में लगाया था.
बताते चलें कि सूचना कानून को लाने वाले नीति नियंताओं ने सूचना कानून 2005 की धारा 4 (1)(b) में सभी सरकारी कार्यालयों के ऐसे सामान्य विषयों को चुना जिन से सम्बंधित सूचनाएं देश के नागरिकों द्वारा बार-बार मांगे जाने की संभावनाएं अधिक थीं और धारा 4 (1)(b) में ऐसी सूचनाओं के 17 बिंदु देकर प्रत्येक लोक प्राधिकारी के लिए ये आवश्यक किया वह कानून लागू होने के 120 दिन के अन्दर इन सभी बिन्दुओं की बिन्दुवार सूचनाएं अपनी वेबसाइट पर अपलोड करेगा और प्रत्येक वर्ष इन सूचनाओं को आवश्यक रूप से अपडेट करेगा ताकि आरटीआई अर्जियों की अनावश्यक पुनरावृत्ति से बचा जा सके.
संजय का कहना था कि आयोग की वेबसाइट पर धारा 4(1)(b) की अशुद्ध और कालातीत सूचनाएं प्रदर्शित रहने से भ्रम की स्थिति उत्पन्न होने के साथ-साथ सूचना का अधिकार कानून का भी निरंतर उल्लंघन हो रहा था एवं इस स्थिति से उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवमानना भी हो रही है जो सर्वथा अनुचित और दुर्भाग्यपूर्ण था.
संजय बताते हैं कि उनके द्वारा सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त,रजिस्ट्रार,सचिव आदि के साथ सूबे के राज्यपाल और मुख्यमंत्री समेत तमाम आला अधिकारियों को शिकायत भेजने के बाद आयोग ने आयोग की वेबसाइट से आरटीआई एक्ट 2005 की धारा 4(1)(b) की अशुद्ध सूचनाएं हटवाकर शुद्ध एवं अद्यतन सूचनाएं शीघ्रता से अपलोड करा दी हैं किसके लिए उन्होंने देश-विदेश के तमाम आरटीआई प्रयोगकर्ताओं की तरफ से सूचना आयोग के प्रबंधन को सार्वजनिक रूप से धन्यवाद ज्ञापित किया है और उम्मीद जताई है कि भविष्य में भी ये सूचनाएं नियमानुसार आयोग की वेबसाइट पर अपलोड होती रहेंगी.