Friday, July 27, 2018

गोरखपुर के मासूमों की मौत के जिम्मेदारों को साल भर में कोई प्रशासनिक दण्ड नहीं दे पाई योगी सरकार : एक्टिविस्ट संजय शर्मा की आरटीआई से बड़ा खुलासा l

यूपी सीएम योगी से एक्टिविस्ट संजय शर्मा का बड़ा सबाल : आखिर प्रशासनिक रूप से सरकार द्वारा कब दण्डित किये जायेंगे गोरखपुर के BRD मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से लगभग एक साल पहले मारे गए मासूमों के हत्यारे ?

11-08-18 को गोरखपुर मेडिकल कॉलेज घटना वाले दिन ऑक्सीजन की कमी होने पर आनंदलोक नर्सिंग होम से 6 और डा. कफील खान से  4 ऑक्सीजन  सिलिंडर मेडिकल कॉलेज मंगवाए गए : RTI खुलासा l











लखनऊ / 27 जुलाई  2018............        

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  के यूपी की राजधानी लखनऊ आगमन की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं l आने वाले दिनों में लखनऊ में केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ राजनैतिक दल बीजेपी के नेताओं द्वारा आम जनता के सामने एक सुनहरे भविष्य की तस्वीर पेश करते हुए बड़े-बड़े वादों  और घोषणाओं की बात की जायेगी l ऐसा होना भी चाहिए क्योंकि विकास  और सुशासन  के लिए ऐसा संवाद जरूरी भी है परन्तु यदि नेताओं द्वारा पूर्व के  वादों  और घोषणाओं को मनसा-वाचा-कर्मणा पूरा नहीं किया जा रहा हो तो ऐसे में सरकार और नेताओं से सबाल पूँछ उनको कटघरे में खड़ा करने का पूरा-पूरा हक़ आम जनता को है l सूबे  की राजधानी लखनऊ के फायरब्रांड मानवाधिकार कार्यकर्ता और इंजीनियर संजय शर्मा ने  बीते साल के 14 अगस्त को यूपी के  मुख्य सचिव  कार्यालय में  दायर की गई एक आरटीआई पर BRD मेडिकल कॉलेज गोरखपुर के प्रधानाचार्य डा. गणेश कुमार द्वारा बीती 3 जुलाई को दिए गए उत्तर के आधार पर  योगी सरकार पर  मृत बच्चों के हत्यारों के खिलाफ कोई प्रशासनिक कार्यवाही न करके मृत बच्चों से किये वादों को पूरा न करने और मामले में  संवेदनहीन रवैया रखने का आरोप लगाते हुए  यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और उनके अगुआई वाली सरकार योगी के गृहजनपद में हुए इस भीषण मौत काण्ड के पीड़ितों को न्याय दिलाने के मुद्दे पर कटघरे में खडा कर दिया है l
  
बताते चलें कि लोकजीवन में पारदर्शिता और जबाबदेही और मानवाधिकार संरक्षण के लिए काम कर रहे देश के नामचीन  कार्यकर्ताओं में शुमार होने वाले संजय शर्मा ने बीते साल के अगस्त महीने की 14  तारीख को  यूपी के मुख्य सचिव के कार्यालय में एक आरटीआई अर्जी देकर गोरखपुर के BRD मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से हुई मासूमों की मौतों के सम्बन्ध में वित्तीय वर्ष 2017-18 के सम्बन्ध में 9 बिन्दुओं पर सूचना माँगी थी l संजय ने मेडिकल कॉलेज की ऑक्सीजन सप्लाई,घटना की मजिस्ट्रेटी जांच, मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली हाई पॉवर जांच, मारे गए बच्चों की पोस्ट मोरटम रिपोर्ट,प्राइवेट संस्थानों से खरीदी गई ऑक्सीजन और घटना के दोषियों को दिए गए दंड की सूचना माँगी थी l मुख्य सचिव कार्यालय के अनु सचिव एवं  जन सूचना अधिकारी पी. के. पाण्डेय ने संजय का आवेदन बीते साल 21 अगस्त  को उत्तर प्रदेश शासन के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग को ट्रान्सफर किया था l  हालाँकि आरटीआई एक्ट के तहत सूचना देने के लिए अधिकतम 30 दिन की अवधि निर्धारित है लेकिन योगी सरकार ने मासूमों की मौत से जुड़े इस संवेदनशील मुद्दे पर निहायत असंवेदनशील रुख अपनाया और सूचना छुपाने के लिए RTI एक्ट का उल्लंघन तक कर दिया l निराश संजय ने बीती साल 5 अक्टूबर को मामला उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग पहुंचा दिया l बीती फरवरी में सूचना आयोग के नोटिस के बाद सूबे के चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण के महानिदेशक कार्यालय की सम्बद्ध अधिकारी और जन सूचना अधिकारी प्रभा वर्मा ने बीती 6 फरवरी को संजय का आवेदन गोरखपुर मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य को अंतरित किया था  l मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य ने बीती 6 फरवरी को पत्र लिखकर सूचना देने के लिए 15 अतिरिक्त दिनों की मांग की थी और अब सूचना आयोग के दखल के बाद 3 जुलाई के पत्र के माध्यम से  संजय को सूचना  दी  गई है l
  
संजय को बताया गया है कि घटना की मजिस्ट्रेटी जांच, मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली हाई पॉवर जांच,  और घटना के लिए दोषी पाई गई ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनियों ने नाम और उनको दिए  गए दंड से सम्बंधित कोई भी सूचना शासन से लेकर मेडिकल कॉलेज तक कहीं भी नहीं है l  अलबत्ता संजय को यह जरूर बताया गया है कि मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है l
  
मामला न्यायलय में विचाराधीन होने की बात कहते हुए 01 अगस्त से 14 अगस्त के बीच अस्पताल में मरे रोगियों के नाम,मौत के कारणों,पोस्ट मोरटम रिपोर्ट देने से मना कर दिया गया है l मेसर्स इम्पीरियल गैसेस लिमिटेड इलाहाबाद से 6742 ऑक्सीजन  सिलिंडर और मेसर्स मोदी केमिकल्स प्रा. लिमिटेड गोरखपुर से 8141 सिलिंडर खरीदे जाने की बात कहते हुए दिनांक 11-08-18 को घटना वाले दिन ऑक्सीजन की कमी होने पर आनंदलोक नर्सिंग होम से 6 और डा. कफील खान से  4 ऑक्सीजन  सिलिंडर मेडिकल कॉलेज मंगवाए जाने की बात भी  आरटीआई कंसलटेंट  संजय शर्मा को बताई गई है l
  
एक्टिविस्ट संजय शर्मा ने एक विशेष बातचीत में कहा है  कि लगभग साल पूरा होने को है लेकिन मुख्यमंत्री के गृह-जनपद में  ऑक्सीजन की कमी  की बजह से हुई मासूमों की मौतों जैसे संवेदनशील मामले में भी योगी सरकार की प्रशासनिक चुप्पी कहीं यह बता रही है कि योगी सरकार ने इस भयावह मौतकाण्ड के मीडिया में लीक होने पर उस समय जांच बैठाने के नाम पर महज खानापूर्ति की थी और सरकार ने बाद में दोषियों को बचाने के लिए मामले की जांचों को ठन्डे बस्ते  में डाल दिया  है l सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों पर बेबाकी से राय रखने के लिए विख्यात संजय ने इस आधार पर यूपी की सरकार और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर के मृत मासूमों को न्याय दिलाने के मुद्दे पर पर कटघरे में खड़ा कर दिया है l
  
पंजीकृत सामाजिक संगठन ‘तहरीर’ के संस्थापक अध्यक्ष  संजय का कहना है कि वे मीडिया के माध्यम से अपनी बात देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पंहुचाना चाहते हैं ताकि राजधानी आगमन पर वे प्रदेश सरकार को गोरखपुर काण्ड के दोषियों के खिलाफ कड़ी प्रशासनिक कार्यवाही करने की नसीहत अवश्य दें l संजय ने सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ से भी अपेक्षा की है कि वे आने वाले 15 अगस्त को झंडारोहण कार्यक्रम से पहले गोरखपुर काण्ड के दोषी लोकसेवकों और दोषी कंपनियों के खिलाफ कड़ी प्रशासनिक कार्यवाही अवश्य पूर्ण करा देंगे  l 

Tuesday, July 24, 2018

पीएम मोदी संसदीय क्षेत्र बनारस पुल हादसे के 2 महीने बाद भी दोषियों को चिन्हित तक नहीं कर पाई योगी सरकार : एक्टिविस्ट संजय शर्मा की आरटीआई से बड़ा खुलासा l






लखनऊ/24-07-18 .....................
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में बीते मई महीने में दर्जनों जिंदगियां लील लेने वाले निर्माणाधीन फ्लाईओवर हादसे के बाद 2 महीने से ज्यादा समय बीत जाने पर भी अभी तक प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ और उनकी अगुआई में चल रही सूबे की बीजेपी सरकार अब तक महज दुःख जताने, हादसे की जांच के लिए विभिन्न जांच समितियां गठित करने, कुछेक लोकसेवकों को निलंबित करने  जैसे दिखावटी उपक्रम करने तक ही सीमित रहे हैं और अभी तक इस मामले में न तो कोई जांच पूरी हो पाई है , न हादसे के लिए उत्तरदायित्व का निर्धारण हो पाया है और न ही अभी तक हादसे के लिए जिम्मेवार लोकसेवकों, कंपनियों और ठेकेदारों के नाम ही चिन्हित किये जा सके हैं और अब तक न ही कोई दोषी जेल ही भेजा गया है l रूपया  130 करोड़ की कुल लागत वाले सवा 2 किलोमीटर लम्बे इस पुल के लिए 95 करोड़ रुपये जनता के खजाने से खर्चे जा चुके हैं लेकिन बीजेपी सरकार पुल बनाने के काम में लगे ठेकेदारों के नाम सार्वजनिक करने के नाम पर बगलें झांकती नज़र आ रही है और आरटीआई में गोल-मोल जबाब दे रही है l और तो और सरकारी तंत्र की संवेदनहीनता का आलम यह है कि शासन से लेकर सेतु निगम तक किसी को भी हादसे में मारे गए व्यक्तियों की संख्या और उनको दिए गए सरकारी मुआवजे या पुल बनाने वाले ठेकेदारों द्वारा दिए गए मुआवजे की कोई भी जानकारी नहीं है और इस सम्बन्ध में सूचना केवल जिला प्रशासन के ही पास होने की बात सरकार द्वारा आरटीआई जबाब में कही जा रही है l मजेदार बात यह भी है कि पुल हादसे की जांच के लिए योगी आदित्यनाथ द्वारा खुद पहल करके शासन स्तर से जांच के लिए गठित की गई जांच कमेटी के गठन का आदेश अभी तक उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम के पास नहीं पंहुच पाया है l हालाँकि शासन स्तर पर गठित कमेटी की जांच पूरी हो गई है परन्तु इस कमेटी ने जांच के नाम पर महज खानापूर्ति ही की है और यह कमेटी पुल हादसे के किसी भी दोषी का नाम सामने लाने में नाकामयाब रही है l बनारस पुल हादसे के वारे में ये चौंकाने वाले खुलासे यूपी की राजधानी स्थित सामाजिक संस्था ‘तहरीर’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष और इंजीनियर संजय शर्मा द्वारा बीते जून माह में यूपी के मुख्य सचिव कार्यालय में दायर की गई एक आरटीआई पर उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम लिमिटेड के परियोजना प्रबंधक संदीप गुप्ता द्वारा बीती 9 जुलाई को दिए गए जबाब से हुए हैं l

एक्टिविस्ट संजय शर्मा कहते हैं कि यह हाल उस जिले में हुए हादसे का है जिसे क्योटो बनाने का वादा पीएम मोदी लम्बे समय से करते आये हैं और जब तब विदेशी मेहमानों के साथ भारी ताम-झाम के साथ बनारस आते रहते हैं तो छोटी-मोटी जगहों पर होने वाले हादसों में हालिया सरकारी तंत्र की उदासीनता का अंदाजा कोई भी आसानी से लगा सकता है l

देश के जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में शुमार होने वाले संजय शर्मा का कहना है कि हादसे के बाद सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव  प्रसाद मौर्य ने हादसे के जिम्मेवार किसी भी दोषी को  बख्शे न जाने के वादे टीवी कैमरों के सामने दहाड़ मार-मार कर किये थे  पर संदीप गुप्ता का यह जबाब सूबे के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के वादों को झूंठा साबित कर रहा है l
संजय ने बताया कि उनका मानना है कि दोषियों को शीघ्रता से कड़ा दण्ड देने से दुर्घटना के शिकार लोगों की आत्मा को शांति मिलने के साथ-साथ भविष्य में ऐसे हादसे रोकने के लिए जिम्मेवार लोगों में डर आने से ऐसे हादसे रोकने में मदद मिलेगी अतः अब वे दुर्घटना के बाद  इस घटना पर दुख जताते हुए ट्वीट करने वाले  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर जल्द से जल्द पुल हादसे के दोषियों को चिन्हित कराकर दण्डित कराने के लिए PMO के स्तर से प्रयास करने की गुहार लगाने जा रहे है l 

Sunday, July 1, 2018

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु जितने पारदर्शी नहीं हैं वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी !









लखनऊ/01-07-2018 ......................

भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने निजी खर्चों पर बोलने के मामलों में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के मुकाबले कम पारदर्शी होने का आरोप लगा है l यूपी की राजधानी लखनऊ स्थित समाजसेवी और इंजीनियर संजय शर्मा ने लगभग 56 साल पहले 28 जुलाई 1962 को लखनऊ से प्रकाशित हुए नवजीवन नाम के अखबार  में   “प्रधानमंत्री का वेतन"  शीर्षक से छपी एक खबर में नेहरु द्वारा अपने निजी खर्चों पर दिए गए सार्वजनिक वक्तव्य और संजय द्वारा हाल ही में बीते 15 मई को प्रधानमंत्री कार्यालय में नरेंद्र मोदी के निजी खर्चों के सम्बन्ध में दायर की गई एक आरटीआई पर प्रधानमंत्री कार्यालय के अवर सचिव एवं केन्द्रीय कोल सूचना अधिकारी प्रवीन कुमार द्वारा बीते 18 जून को दिए गए उत्तर के आधार पर लगाया है l



एक्टिविस्ट संजय ने बताया कि उनके एक फेसबुक मित्र की बीते 4 मई की एक पोस्ट पर उनको 56 साल पहले का नवजीवन नाम का एक अखबार मिला जिसमें छपी खबर के अनुसार  तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा 27 जुलाई 1962 को इलाहाबाद की एक सार्वजनिक सभा मे बोलते हुए कहा गया था कि आयकर कटने के बाद उनको  1600 रुपये मासिक वेतन मिलता था  तो उनके  ऊपर 25 हज़ार प्रतिदिन खर्च का आरोप क्यों लगाया जा रहा था ?



संजय बताते हैं कि भारत के प्रधानमंत्री रहते नेहरू द्वारा खुद पर हो रहे खर्च के आरोपों पर अपनी सफाई सार्वजनिक मंच से जनता के सामने पेश करने की हिम्मत और नैतिकता दिखाने की इस पोस्ट से  प्रभावित होकर उन्होंने वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निजी शाहखर्ची की सूचना आरटीआई में मांगने का निश्चय किया l



देश की नामचीन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में शुमार होने वाले संजय बताते हैं कि जब उन्होंने PMO में RTI लगाकर आयकर काटने के बाद मोदी द्वारा आहरित किये जा रहे वेतन भत्तों की सूचना माँगी तो PMO ने सीधे-सीधे सूचना देने की जगह गोलमोल जबाब देते हुए लिखा कि मोदी को संशोधित ‘The Salaries and Allowances of Ministers Act,1952’ के अनुसार वेतन भत्ते दिए जा रहे हैं l प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी पर राजकोष से किये गए खर्चों की सकल धनराशि और प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी द्वारा आहरित किये गए वेतन भत्तों की धनराशि की सूचना को अस्पस्ट कहते हुए प्रवीन ने संजय को इन दो बिन्दुओं पर कोई भी सूचना नहीं दी है l प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी द्वारा खर्च की गई और बचत के रूप में जमा की गई सूचना को पीएमओ ने मोदी की व्यक्तिगत सूचना बताया गया है और यह  सूचना पीएमओ में नहीं होने की बात कहते हुए सूचना  समाजसेवी संजय को नहीं दी गई है l प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी द्वारा अपने पहनावे पर खुद की कमाई से , सरकारी स्रोतों से व  निजी सहयोगियों के स्रोतों से किये गए खर्चों के साथ-साथ मोदी द्वारा अपने लिए बनबाई गई और रेडीमेड खरीदी गई ड्रेसों की संख्या की सूचना पर पीएमओ ने कहा है कि पीएम मोदी के निजी पहनावे पर खर्चों का मामला पीएम का व्यक्तिगत विषय  है और ये खर्चे सरकारी खाते से नहीं किये जाते हैं और यह  सूचना भी पीएमओ में नहीं होने की बात कहते हुए सूचना  एक्टिविस्ट  संजय को नहीं दी गई है lप्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी द्वारा की गई यात्राओं पर खुद की कमाई से , सरकारी स्रोतों से व  निजी सहयोगियों के स्रोतों से किये गए खर्चों की सूचना पर पीएमओ ने कहा है कि पीएम मोदी की यात्राओं के खर्चों की सूचना किसी एक पब्लिक अथॉरिटी के पास नहीं है क्योंकि PM की यात्राएं  विभिन्न पब्लिक अथॉरिटीज की भागीदारी से होती है l पीएमओ ने मानवाधिकार कार्यकर्ता संजय को यह भी बताया है कि प्रधानमंत्री के गैर-सरकारी दौरों की हवाई यात्राओं का खर्चा सम्बंधित आयोजक द्वारा उठाया जाता है l



संजय का कहना है कि नेहरु के समय में पारदर्शिता के वर्तमान कानून आरटीआई जैसा कानून भी नहीं था लेकिन फिर भी नेहरु ने अपने वेतन और खर्चों पर सार्वजनिक वक्तव्य देकर स्थिति स्पष्ट की थी लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि  नेहरू पर गंभीर आरोपों की झड़ी लगाने वाले वर्तमान पीएम नरेन्द्र मोदी वैसे तो खुद को शीशे की तरह पारदर्शी और नेहरू से कई युग आगे का जननेता मानते हैं पर जब बात अपनी कमाई और अनाप-शनाप खर्चों की आती  है तो न तो नेहरु की तरह खुद ही आगे आकर स्थिति स्पष्ट करते हैं और न ही उनका प्रधानमंत्री कार्यालय आधिकारिक रूप से आरटीआई में अथवा अन्यथा इस सम्बन्ध में कोई स्थिति स्पष्ट करता है l


एक्टिविस्ट संजय कहते हैं  कि हर सरकारी कर्मचारी के कार्यालय में उसकी आय-व्यय-बचत का लेखा जोखा रहता है लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि पीएम मोदी की आय-व्यय-बचत का लेखा जोखा पीएमओ में नहीं है l समाजसेवी संजय सबाल उठाते हैं कि आखिर कैसे  दो लाख मासिक से कम वेतन पाने वाले प्रधानमंत्री मोदी  दस लाख का सूट पहनते हैं, करोड़ों रुपये सिर्फ डिज़ाइनर कपड़ों पर खर्च करते हैं जिसका पैसा अगर सरकार नहीं देती  है तो आखिर इन खर्चों को कौन वहन करता है और इस एवज में वह PM से क्या-क्या अन्यथा लाभ लेता है ?



जहाँ एक तरफ नेहरू ने उनके निर्वाचन क्षेत्र में एक पर्चा बंटवाये जाने पर ही सार्वजनिक सफाई पेश कर दी थी वहीं दूसरी और नेहरू को कोसने वाले मौजूदा पीएम नरेन्द्र मोदी ने आज तक अपनी  व्यक्तिगत आय-व्यय-बचत के मुद्दों पर रहस्यमयी चुप्पी बनाई हुई है l


संजय ने बताया कि वे अपनी संस्था ‘तहरीर’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष की हैसियत से नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे अपनी निजी आय-व्यय-बचत के मुद्दों पर चुप्पी तोड़कर देश की जनता के सबालों का खुला जबाब देने की अपील करेंगे l