Monday, May 29, 2017

OMG! RTI act की मॉनिटरिंग करने में विफल सूचना आयोग राजभवन में करा रहा अपनी झूंठी उपलब्धियों का विमोचन !

उप्र सूचना आयोग ने नहीं निभाई RTI एक्ट की धारा 25 (5 ) में दी गई अनुश्रवण की जिम्मेदारी : नाराज एक्टिविस्ट संजय शर्मा ने राजभवन में आज होने वाले पुस्तक विमोचन को बताया सरकारी धन की बर्बादी l
  

UP : RTI  एक्ट का अनुश्रवण न करने वाले आयोग द्वारा राजभवन में पुस्तक विमोचन कराना जनता के पैसों की खुली बर्बादी : संजय शर्मा 


लखनऊ/ 29 मई 2017

क्या संयोग है कि आज यूपी के गवर्नर राम नाईक राजभवन में "उत्तर प्रदेश सूचना आयोग के बढ़ते कदम" नामक पुस्तक का विमोचन करेंगे जिसमें सूचना आयोग ने अपने द्वारा किये गए सराहनीय कायों को सहेजकर जनता के बीच अपनी छवि सुधारने का प्रयास किया होगा तो वहीं दूसरी तरफ राजधानी लखनऊ के मानवाधिकार कार्यकर्ता इं. संजय शर्मा ने यूपी सूचना आयोग में दायर की गई आरटीआई पर आयोग के जनसूचना अधिकारी तेजस्कर पांडेय द्वारा दिये गए जबाब को मीडिया को जारी करते हुए सूचना आयोग पर RTI एक्ट की मॉनिटरिंग करने में असफल रहने का गंभीर आरोप लगाया है।

दरअसल संजय ने बीते अप्रैल की 7 तारीख को आयोग में 4 बिंदुआरटीआई दायर करके जानना चाहा था कि यूपी के सूचना आयोग ने गठन से तब तक की अवधि में सूचना कानून का सही से पालन न करने वाले कितने विभागों को एक्ट की धारा 25(5) की अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए सिफारिशें भेजीं थीं।संजय की आरटीआई पर आयोग के जनसूचना अधिकारी तेजस्कर पांडेय ने बीते 27 अप्रैल को जारी पत्र द्वारा सूचना दी है जो संजय को आज मिली है। तेजस्कर ने संजय को बताया है कि आयोग ने अपने गठन से अब तक आरटीआई एक्ट न मानने वाले किसी भी सरकारी विभाग को कोई भी सिफारिश नहीं भेजी है।

आरटीआई कंसलटेंट संजय ने बताया कि आरटीआई एक्ट की धारा 25(5) के द्वारा आयोग को यह जिम्मेदारी दी गई है कि आयोग उन लोक प्राधिकारियों को चिन्हित करें जो अपनी कार्य पद्यति को एक्ट की भावना के हिसाब से नहीं बदल पाए हैं और फिर आयोग इन लोक प्राधिकारियों को सुधारने के लिए उपाय बताते हुए अपनी सिफारिश भेजेगा।

बकौल संजय आयोग के जबाव से साफ हो गया है कि आयोग एक्ट की मॉनिटरिंग करने का अपना काम कर ही नहीं रहा है ।संजय के अनुसार आयोग के इस नाकारापन की बजह से ही आयोग में दर्ज होने वाली शिकायतों और अपीलों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।

आयोग द्वारा अपनी पुस्तिका छपवाकर विमोचन कराने को जनता के टैक्स के पैसों की बर्बादी बताते हुए संजय ने मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी को पत्र लिखकर दिखावे करने के स्थान पर जमीनी स्तर पर कार्य करने की नसीहत देने की बात भी कही है।


उप्र सूचना आयोग द्वारा राजभवन में पुस्तक विमोचन कराना जनता के पैसों की खुली बर्बादी : संजय शर्मा







उप्र सूचना आयोग ने नहीं निभाई RTI एक्ट की धारा 25 (5 ) में दी गई अनुश्रवण की जिम्मेदारी : नाराज एक्टिविस्ट संजय शर्मा ने राजभवन में आज होने वाले पुस्तक विमोचन को बताया सरकारी धन की बर्बादी l





OMG! सूचना अधिनियम की मॉनिटरिंग नहीं कर रहा UP सूचना आयोग।
  


लखनऊ/ 29 मई 2017

क्या संयोग है कि आज यूपी के गवर्नर राम नाईक राजभवन में "उत्तर प्रदेश सूचना आयोग के बढ़ते कदम" नामक पुस्तक का विमोचन करेंगे जिसमें सूचना आयोग ने अपने द्वारा किये गए सराहनीय कायों को सहेजकर जनता के बीच अपनी छवि सुधारने का प्रयास किया होगा तो वहीं दूसरी तरफ राजधानी लखनऊ के मानवाधिकार कार्यकर्ता इं. संजय शर्मा ने यूपी सूचना आयोग में दायर की गई आरटीआई पर आयोग के जनसूचना अधिकारी तेजस्कर पांडेय द्वारा दिये गए जबाब को मीडिया को जारी करते हुए सूचना आयोग पर RTI एक्ट की मॉनिटरिंग करने में असफल रहने का गंभीर आरोप लगाया है।

दरअसल संजय ने बीते अप्रैल की 7 तारीख को आयोग में 4 बिंदुआरटीआई दायर करके जानना चाहा था कि यूपी के सूचना आयोग ने गठन से तब तक की अवधि में सूचना कानून का सही से पालन न करने वाले कितने विभागों को एक्ट की धारा 25(5) की अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए सिफारिशें भेजीं थीं।संजय की आरटीआई पर आयोग के जनसूचना अधिकारी तेजस्कर पांडेय ने बीते 27 अप्रैल को जारी पत्र द्वारा सूचना दी है जो संजय को आज मिली है। तेजस्कर ने संजय को बताया है कि आयोग ने अपने गठन से अब तक आरटीआई एक्ट न मानने वाले किसी भी सरकारी विभाग को कोई भी सिफारिश नहीं भेजी है।

आरटीआई कंसलटेंट संजय ने बताया कि आरटीआई एक्ट की धारा 25(5) के द्वारा आयोग को यह जिम्मेदारी दी गई है कि आयोग उन लोक प्राधिकारियों को चिन्हित करें जो अपनी कार्य पद्यति को एक्ट की भावना के हिसाब से नहीं बदल पाए हैं और फिर आयोग इन लोक प्राधिकारियों को सुधारने के लिए उपाय बताते हुए अपनी सिफारिश भेजेगा।

बकौल संजय आयोग के जबाव से साफ हो गया है कि आयोग एक्ट की मॉनिटरिंग करने का अपना कर ही नहीं रहा है ।संजय के अनुसार आयोग के इस नाकारापन की बजह से ही आयोग में दर्ज होने वाली शिकायतों और अपीलों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।

आयोग द्वारा अपनी पुस्तिका छपवाकर विमोचन कराने को जनता के टैक्स के पैसों की बर्बादी बताते हुए संजय ने मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी को पत्र लिखकर दिखावे करने के स्थान पर जमीनी स्तर पर कार्य करने की नसीहत देने की बात भी कही है।


सूचना अधिनियम की मॉनिटरिंग नहीं कर रहा UP सूचना आयोग l

लखनऊ/ 29 मई 2017

क्या संयोग है कि आज यूपी के गवर्नर राम नाईक राजभवन में "उत्तर प्रदेश सूचना आयोग के बढ़ते कदम" नामक पुस्तक का विमोचन करेंगे जिसमें सूचना आयोग ने अपने द्वारा किये गए सराहनीय कायों को सहेजकर जनता के बीच अपनी छवि सुधारने का प्रयास किया होगा तो वहीं दूसरी तरफ राजधानी लखनऊ के मानवाधिकार कार्यकर्ता इं. संजय शर्मा ने यूपी सूचना आयोग में दायर की गई आरटीआई पर आयोग के जनसूचना अधिकारी तेजस्कर पांडेय द्वारा दिये गए जबाब को मीडिया को जारी करते हुए सूचना आयोग पर RTI एक्ट की मॉनिटरिंग करने में असफल रहने का गंभीर आरोप लगाया है।

दरअसल संजय ने बीते अप्रैल की 7 तारीख को आयोग में 4 बिंदुआरटीआई दायर करके जानना चाहा था कि यूपी के सूचना आयोग ने गठन से तब तक की अवधि में सूचना कानून का सही से पालन न करने वाले कितने विभागों को एक्ट की धारा 25(5) की अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए सिफारिशें भेजीं थीं।संजय की आरटीआई पर आयोग के जनसूचना अधिकारी तेजस्कर पांडेय ने बीते 27 अप्रैल को जारी पत्र द्वारा सूचना दी है जो संजय को आज मिली है। तेजस्कर ने संजय को बताया है कि आयोग ने अपने गठन से अब तक आरटीआई एक्ट न मानने वाले किसी भी सरकारी विभाग को कोई भी सिफारिश नहीं भेजी है।

आरटीआई कंसलटेंट संजय ने बताया कि आरटीआई एक्ट की धारा 25(5) के द्वारा आयोग को यह जिम्मेदारी दी गई है कि आयोग उन लोक प्राधिकारियों को चिन्हित करें जो अपनी कार्य पद्यति को एक्ट की भावना के हिसाब से नहीं बदल पाए हैं और फिर आयोग इन लोक प्राधिकारियों को सुधारने के लिए उपाय बताते हुए अपनी सिफारिश भेजेगा।

बकौल संजय आयोग के जबाव से साफ हो गया है कि आयोग एक्ट की मॉनिटरिंग करने का अपना कर ही नहीं रहा है ।संजय के अनुसार आयोग के इस नाकारापन की बजह से ही आयोग में दर्ज होने वाली शिकायतों और अपीलों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।

आयोग द्वारा अपनी पुस्तिका छपवाकर विमोचन कराने को जनता के टैक्स के पैसों की बर्बादी बताते हुए संजय ने मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी को पत्र लिखकर दिखावे करने के स्थान पर जमीनी स्तर पर कार्य करने की नसीहत देने की बात भी कही है।


Saturday, May 27, 2017

UP : आरटीआई ने खोली सूचना आयोग की लापरवाही की पोल-पट्टी - 11 सालों में 5 साल आयोग ने नहीं बनाई सालाना रिपोर्ट - सालाना रिपोर्ट बनाने में उस्मानी भी फेल l

  


लखनऊ / 27 May 2017

साल 2005 में सूचना कानून लागू होने के बाद यूपी के सरकारी विभागों की पोल-पट्टी खोलने में मदद करने के लिए राज्य सूचना आयोग का गठन किया गया था। आयोग के गठन के समय शायद ही किसी ने सोचा होगा कि आने वाले समय में जागरूक नागरिक सूचना आयोग को ही आरटीआई की कसौटी पर कसेंगे और आरटीआई में दिए गए जबाबों के आधार पर आयोग को ही कटघरे में खड़ा कर देंगे। यूपी की राजधानी लखनऊ के मानवाधिकार कार्यकर्ता इं. संजय शर्मा द्वारा सूचना आयोग में दायर की गई आरटीआई के जबाब से ऐसा खुलासा  हुआ है जिसने उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग की जबरदस्त लापरवाही को उजागर करते हुए वर्तमान मुख्य सूचना आयुक्त और पूर्व मुख्य सचिव जावेद उस्मानी के साथ साथ आयोग के सचिव राघवेंद्र विक्रम सिंह को कटघरे में खड़ा कर दिया है।

दरअसल संजय ने बीते 05 अप्रैल को सूचना आयोग में आरटीआई दायर कर जानना चाहा था कि आयोग ने आरटीआई एक्ट की धारा 25 के अनुपालन में कितनी वार्षिक रिपोर्टें तैयार कीं हैं।

आरटीआई कंसलटेंट संजय बताते हैं कि एक्ट की धारा 25 यह कहती है कि आयोग प्रत्येक वर्ष की एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा जिसमें पूरे सूबे में RTI एक्ट के कार्यान्वयन का पूरा विवरण होगा। इस रिपोर्ट को प्रत्येक वर्ष राज्य विधान मंडल सदन के समक्ष रखा जाना भी जरूरी है। बकौल संजय यह रिपोर्ट उस साल के लिए सूचना आयोग का रिजल्ट होती है।

आयोग के जनसूचना अधिकारी तेजस्कर पांडेय ने संजय को जो सूचना दी है उससे यह चौंकाने वाला खुलासा हो रहा है कि पूरे सूबे को पारदर्शिता और जबाबदेही का पाठ पढ़ाने के लिए बनाया गया राज्य सूचना आयोग खुद पारदर्शिता और जबाबदेही के पैमाने पर फ़ेल हो रहा है। संजय को दी गई सूचना के अनुसार आयोग 11 सालों में महज 6 वार्षिक रिपोर्टें ही बना सका है। आयोग ने साल 2009-10,2011-12,2013-14,2014-15 और 2016-17 की सालाना रिपोर्टे बनाई ही नहीं हैं।

11 वर्षों में से 5 वर्षों में सालाना रिपोर्टों को तैयार न किये जाने को सूचना आयोग की घोर लापरवाही बताते हुए समाजसेवी संजय ने साल 2016-17 की सालाना रिपोर्ट अब तक तैयार न हो पाने के आधार पर आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी और सचिव राघवेंद्र विक्रम सिंह पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए कटघरे में खड़ा किया है और मामले की शिकायत यूपी के राज्यपाल और सीएम से करने की बात कही है।


Tuesday, May 9, 2017

UP CM योगी के जनता दरबार की शिकायतों के अनुश्रवण की नहीं है कोई व्यवस्था : RTI खुलासा



Lucknow/ 09-05-17
योगी आदित्यनाथ यूपी का मुख्यमंत्री बनने से पहले सांसद के रूप में गोरखपुर शहर मे रहने पर नित्य और निश्चित समय पर फरियादियों से नियमित रूप से मिलते रहे हैं। यह उनकी नियमित दिनचर्या का यह बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा भी रहा है। इसके लिये हजारों की तादाद में हर जाति वर्ग सम्प्रदाय के लोग आते रहे हैं। समस्याग्रस्त लोगों के पत्र लेकर उसे अपने पीछे खडे अधिकारियों को थमाकर फिर हाथ झाडकर सिर्फ फर्ज अदायगी जैसी औपचारिकता करने के स्थान पर योगी के काम करने का अंदाज  एकदम से अलग रहा है। योगी हर पीडित को अलग से बुलाकर उससे व्यक्तिगत रूप् से रूबरू होते रहे हैं।इस मौके पर पीडितों की भीड उनके कक्ष के बाहर ही खडी रहती रही है। उनकी बारी आने पर ही एक एक को इनके पास भेजा जाता रहा है। पर क्या कभी फरियादियों की समस्याओं का समाधान कराने के लिए अपना भोजन तक छोड़ देने वाले
योगी भी मुख्यमंत्री बनने के बाद बदल रहे हैं या फिर योगी के अधिकारी उनकी मंशा के हिसाब से काम नहीं कर रहे है l ऐसा सबाल हम नहीं खड़ा कर रहे हैं बल्कि बल्कि ऐसा सबाल खड़ा कर रहा है एक आरटीआई जबाब जो यूपी के मुख्यमंत्री कार्यालय के जन सूचना अधिकारी ने राजधानी लखनऊ के समाजसेवी और मानवाधिकार कार्यकर्ता इं. संजय शर्मा को दिया है l

दरअसल समाजसेवी संजय ने बीते अप्रैल महीने की 8 तारीख को मुख्यमंत्री कार्यालय में आरटीआई दायर कर मुख्यमंत्री योगी के जनता दरबार से सम्बंधित 14 बिन्दुओं पर सूचना माँगी थी l मुख्यमंत्री कार्यालय के अनुभाग अधिकारी और जन सूचना अधिकारी सुनील कुमार मंडल ने संजय को जो सूचना दी है वह वेहद चौंकाने वाली होने के साथ-साथ मुख्यमंत्री योगी के जनता दरवारों में आये फरियादियों के प्रति मुख्यमंत्री कार्यालय के तंत्र के उदासीन रवैये को भी सामने ला रहा है l

संजय को दी गई सूचना के अनुसार मुख्यमंत्री कार्यालय के पास अब तक हुए जनता दरबारों की संख्या, जनता दरबारों नें आये फरियादियों की संख्या, जनता दरबारों नें आये फरियादियों द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्रों की संख्या, जनता दरबारों नें आये फरियादियों द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्रों में से निस्तारित हो चुके प्रार्थना पत्रों की संख्या की कोई सूचना नहीं है l मंडल ने संजय को यह भी बताया है जनता दरबारों नें आये फरियादियों द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्रों के आधार पर किसी लोकसेवक को दण्डित किये जाने की भी कोई सूचना मुख्मंत्री कार्यालय में नहीं है l

जनता दरबार में शामिल होने के लिए तय की गई प्रक्रिया के सबाल पर मंडल ने संजय को बताया है कि जनता दरबार में मुख्यमंत्री की उपस्थिति में शामिल हुआ जा सकता है जिसके लिए कोई प्रक्रिया निर्धारित नहीं है l

मुख्यमंत्री कार्यालय के पास अब तक हुए जनता दरबारों से सम्बंधित कोई भी सूचना न होने पर चकित हुए समाजसेवी संजय ने कहा कि जनता दरबार में आये मामलों के अनुश्रवण की व्यवस्था के अभाव में सीएम के  जनता दर्शन महज खबर बन कर रह जायेंगे और इन दरबारों में आई फरियादें भी सूबे की नौकरशाही की लाल-फीताशाही के मकड़जाल में उलझकर अपना दम तोड़ देंगी l

मानवाधिकार कार्यकर्ता संजय ने बताया कि वे योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर जनता दरबार में आये मामलों के अनुश्रवण की प्रभावी व्यवस्था करने और दरबार में आये मामलों की जांच में दोषी पाए गए लोकसेवकों को दण्डित किये जाने की प्रणाली विकसित करने की मांग भी कर रहे हैं l

संजय ने बताया कि उनको विश्वास है कि योगी उनकी मांगों पर ध्यान देकर जनता दरबारों के आयोजनों और इनमें प्राप्त मामलों का निस्तारण अपने गोरखपुर मॉडल के आधार पर करेंगे l



शासन के पास नहीं है जनता दरबार में आई शिकायतों का कोई रिकॉर्ड


UP : CM योगी के जनता दरबार की लुटिया डुबो रहे अधिकारी !


Lucknow/ 09-05-17
योगी आदित्यनाथ यूपी का मुख्यमंत्री बनने से पहले सांसद के रूप में गोरखपुर शहर मे रहने पर नित्य और निश्चित समय पर फरियादियों से नियमित रूप से मिलते रहे हैं। यह उनकी नियमित दिनचर्या का यह बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा भी रहा है। इसके लिये हजारों की तादाद में हर जाति वर्ग सम्प्रदाय के लोग आते रहे हैं। समस्याग्रस्त लोगों के पत्र लेकर उसे अपने पीछे खडे अधिकारियों को थमाकर फिर हाथ झाडकर सिर्फ फर्ज अदायगी जैसी औपचारिकता करने के स्थान पर योगी के काम करने का अंदाज  एकदम से अलग रहा है। योगी हर पीडित को अलग से बुलाकर उससे व्यक्तिगत रूप् से रूबरू होते रहे हैं।इस मौके पर पीडितों की भीड उनके कक्ष के बाहर ही खडी रहती रही है। उनकी बारी आने पर ही एक एक को इनके पास भेजा जाता रहा है। पर क्या कभी फरियादियों की समस्याओं का समाधान कराने के लिए अपना भोजन तक छोड़ देने वाले
योगी भी मुख्यमंत्री बनने के बाद बदल रहे हैं या फिर योगी के अधिकारी उनकी मंशा के हिसाब से काम नहीं कर रहे है l ऐसा सबाल हम नहीं खड़ा कर रहे हैं बल्कि बल्कि ऐसा सबाल खड़ा कर रहा है एक आरटीआई जबाब जो यूपी के मुख्यमंत्री कार्यालय के जन सूचना अधिकारी ने राजधानी लखनऊ के समाजसेवी और मानवाधिकार कार्यकर्ता इं. संजय शर्मा को दिया है l

दरअसल समाजसेवी संजय ने बीते अप्रैल महीने की 8 तारीख को मुख्यमंत्री कार्यालय में आरटीआई दायर कर मुख्यमंत्री योगी के जनता दरबार से सम्बंधित 14 बिन्दुओं पर सूचना माँगी थी l मुख्यमंत्री कार्यालय के अनुभाग अधिकारी और जन सूचना अधिकारी सुनील कुमार मंडल ने संजय को जो सूचना दी है वह वेहद चौंकाने वाली होने के साथ-साथ मुख्यमंत्री योगी के जनता दरवारों में आये फरियादियों के प्रति मुख्यमंत्री कार्यालय के तंत्र के उदासीन रवैये को भी सामने ला रहा है l

संजय को दी गई सूचना के अनुसार मुख्यमंत्री कार्यालय के पास अब तक हुए जनता दरबारों की संख्या, जनता दरबारों नें आये फरियादियों की संख्या, जनता दरबारों नें आये फरियादियों द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्रों की संख्या, जनता दरबारों नें आये फरियादियों द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्रों में से निस्तारित हो चुके प्रार्थना पत्रों की संख्या की कोई सूचना नहीं है l मंडल ने संजय को यह भी बताया है जनता दरबारों नें आये फरियादियों द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्रों के आधार पर किसी लोकसेवक को दण्डित किये जाने की भी कोई सूचना मुख्मंत्री कार्यालय में नहीं है l

जनता दरबार में शामिल होने के लिए तय की गई प्रक्रिया के सबाल पर मंडल ने संजय को बताया है कि जनता दरबार में मुख्यमंत्री की उपस्थिति में शामिल हुआ जा सकता है जिसके लिए कोई प्रक्रिया निर्धारित नहीं है l

मुख्यमंत्री कार्यालय के पास अब तक हुए जनता दरबारों से सम्बंधित कोई भी सूचना न होने पर चकित हुए समाजसेवी संजय ने कहा कि जनता दरबार में आये मामलों के अनुश्रवण की व्यवस्था के अभाव में सीएम के  जनता दर्शन महज खबर बन कर रह जायेंगे और इन दरबारों में आई फरियादें भी सूबे की नौकरशाही की लाल-फीताशाही के मकड़जाल में उलझकर अपना दम तोड़ देंगी l

मानवाधिकार कार्यकर्ता संजय ने बताया कि वे योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर जनता दरबार में आये मामलों के अनुश्रवण की प्रभावी व्यवस्था करने और दरबार में आये मामलों की जांच में दोषी पाए गए लोकसेवकों को दण्डित किये जाने की प्रणाली विकसित करने की मांग भी कर रहे हैं l

संजय ने बताया कि उनको विश्वास है कि योगी उनकी मांगों पर ध्यान देकर जनता दरबारों के आयोजनों और इनमें प्राप्त मामलों का निस्तारण अपने गोरखपुर मॉडल के आधार पर करेंगे l



Saturday, May 6, 2017

यूपी : सूचना आयुक्त पद के आवेदक IPS अमिताभ ठाकुर के RTI ज्ञान पर उठाया सबाल

लखनऊ/06-05-17
सूबे की सपा सरकार के शासनकाल में यूपी के सूचना आयुक्त के पद का आवेदन कर सूचना आयुक्त बनने की चाह में मामले को हाई कोर्ट ले जाने वाले यूपी कैडर के IPS अधिकारी और मुख्यालय नियम एवं ग्रन्थ उत्तर प्रदेश के कार्यालय में पुलिस महानिरीक्षक के पद पर कार्यरत अमिताभ ठाकुर में आरटीआई एक्ट के ज्ञान और समझ की कमी का गंभीर आरोप लगा है l लखनऊ के समाजसेवी और मानवाधिकार कार्यकर्ता इं. संजय शर्मा ने अपने आरटीआई प्रकरण का निस्तारण करने के लिए अमिताभ ठाकुर द्वारा जारी किये गए एक पत्र के आधार अमिताभ पर यह आरोप लगाया है l समझा जा सकता है कि सूबे के पुलिस महकमे ने लिए नियमों को बनाने से सम्बंधित कार्यालय के आला अधिकारी पर और उस अधिकारी पर जो अपने आप को आरटीआई कार्यकर्ता कहता हो और जिसने उच्च न्यायालय तक में अपने सूचना आयुक्त बनने का दावा ठोंक रखा हो, में आरटीआई एक्ट के ज्ञान और समझ की कमी का आरोप कितना गंभीर आरोप है l

दरअसल संजय ने बीते 15 अप्रैल को  मुख्यालय नियम एवं ग्रन्थ उत्तर प्रदेश के कार्यालय में एक आरटीआई दायर करके कुछ सूचना माँगी थीं l संजय के इस पत्र को अमिताभ ठाकुर ने 10 दिन बाद डीजीपी कार्यालय के जन सूचना अधिकारी को अंतरित किया है l अमिताभ के कार्यालय ने यह पत्र जारी होने के 9 दिन बाद बीते 4 मई को जारी किया गया है l संजय बताते हैं कि आरटीआई एक्ट की धारा 6(3) में विधिक प्राविधान है कि आरटीआई आवेदन का अंतरण हर हाल में 5 दिन में हो जाना चाहिए पर अमिताभ ने यह अंतरण 5 दिन के स्थान पर 9 दिन बाद किया है और अंतरण का पत्र 18 दिन बाद जारी किया है l


अमिताभ द्वारा आरटीआई एक्ट का पालन न करना वास्तव में कुछ बड़े सबाल भी खड़ा कर रहा है l जहाँ एक तरफ अमिताभ ठाकुर और इनकी पत्नी नूतन ठाकुर आरटीआई एक्टिविस्ट होने का दम भरते हैं और आरटीआई एक्ट के आधार पर लोगों को कटघरे में खड़ा करते रहते हैं तो वहीं दूसरी तरफ अमिताभ आरटीआई एक्ट के इस साधारण प्राविधान का भी अनुपालन नहीं कर पाए हैं l  संजय ने बताया कि वे मुख्य सूचना आयुक्त को पत्र लिखकर अमिताभ के खिलाफ शिकायत दर्ज करा रहे हैं और अमिताभ ठाकुर को आरटीआई एक्ट की मुकम्मल ट्रेनिंग देने की व्यवस्था कराने की भी मांग कर रहे हैं l