Friday, November 22, 2024

सिटी मोंटेसरी स्कूल द्वारा गंभीर उल्लंघनों के कारण 25वीं अंतर्राष्ट्रीय मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन का बहिष्कार करने की अपील

 







लखनऊ, 23 नवम्बर 2024 — एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और कानूनी अधिकारों के पैरोकार संजय शर्मा ने 25वीं अंतर्राष्ट्रीय मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन के लिए आमंत्रित प्रमुख न्यायाधीशों, विधिक विशेषज्ञों और अन्य सम्माननीय व्यक्तित्वों से इस सम्मेलन के बहिष्कार की अपील की है, जो 20-24 नवम्बर 2024 के बीच लखनऊ में आयोजित होने वाला है। शर्मा ने यह अपील सिटी मोंटेसरी स्कूल (CMS) द्वारा सम्मेलन आयोजित करने के कारण की है, क्योंकि यह संस्था गंभीर कानूनी, सुरक्षा और मानवाधिकार उल्लंघनों में लिप्त है।

सिटी मोंटेसरी स्कूल, जो भारत के सबसे बड़े निजी विद्यालयों के रूप में पहचाना जाता है, वर्तमान में एक ऐसे संस्थान के रूप में जांच के दायरे में है, जो कई कानूनी और संवैधानिक मानकों का उल्लंघन कर रहा है। संजय शर्मा ने अपने पत्र में उन उल्लंघनों की विस्तार से जानकारी दी है, जिनसे छात्रों, कर्मचारियों और समाज के व्यापक हितों को नुकसान हो रहा है।

शर्मा ने इस पत्र में चार प्रमुख मुद्दों पर प्रकाश डाला है:

1.     आग सुरक्षा मानकों का उल्लंघन: सिटी मोंटेसरी स्कूल के विभिन्न कैम्पसों में आग सुरक्षा के मानकों का पालन नहीं किया जा रहा है। रिपोर्ट्स के अनुसार, स्कूल के कई कैंपसों में आग बुझाने के उपकरण, अलार्म, और उचित निकासी मार्ग की कमी है, जो राष्ट्रीय भवन कोड 2005 के तहत अनिवार्य है। इस प्रकार की लापरवाही बच्चों और स्टाफ की जान को खतरे में डालती है, जिसे अनदेखा किया जा रहा है।

2.     आवासीय और विकास मानकों का उल्लंघन: CMS के कैंपसों का निर्माण बिना आवश्यक मंजूरी के किया गया है, जो स्थानीय भवन निर्माण नियमों और भारतीय न्याय संहिता की धारा 125 का उल्लंघन है। यह स्कूल के निर्माण की वैधता पर सवाल खड़ा करता है और भवन सुरक्षा के लिए गंभीर जोखिम उत्पन्न करता है।

3.     शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) का उल्लंघन: सिटी मोंटेसरी स्कूल को शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 के तहत बच्चों के प्रवेश में भेदभाव करने, अत्यधिक फीस वसूलने और मुफ्त शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन करने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21A के तहत सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने के अधिकार का उल्लंघन है, और यह न्याय और समानता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।

4.     नगर निगम और पर्यावरणीय मानकों की अनदेखी: CMS पर स्वच्छता, सैनिटेशन, और कचरा निस्तारण की समस्याओं के लिए आरोप लगे हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, स्कूल परिसर में साफ-सफाई के मानकों का पालन नहीं किया जा रहा है, जो न केवल शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुँचाता है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 47 का उल्लंघन है, जो राज्य को सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने का कर्तव्य सौंपता है।

शर्मा का पत्र केवल सिटी मोंटेसरी स्कूल के कृत्यों की निंदा नहीं करता, बल्कि उन अधिकारियों और न्यायधीशों से भी यह सवाल करता है कि क्या वे ऐसे सम्मेलन में भाग लेने पर विचार करेंगे, जो एक ऐसे संस्थान द्वारा आयोजित किया जा रहा है, जो कानूनी, संवैधानिक और मानवाधिकार उल्लंघनों में लिप्त है। शर्मा का तर्क है कि इस सम्मेलन में भाग लेकर वे यह जोखिम उठा सकते हैं कि वे एक ऐसे संस्थान की स्वीकृति दे रहे हैं, जो न्याय, सुरक्षा और मानवाधिकार के बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन कर रहा है।

उन्होंने अपने पत्र में यह भी कहा कि अगर सम्मेलन में भाग लिया जाता है, तो यह एक खतरनाक उदाहरण पेश करेगा, क्योंकि यह ऐसे संस्थान के कार्यों को अप्रत्यक्ष रूप से सही ठहराएगा, जो कानून और शासन के मानकों का उल्लंघन कर रहा है। शर्मा ने सभी अधिकारियों से अनुरोध किया है कि वे यह सुनिश्चित करें कि सिटी मोंटेसरी स्कूल सभी कानूनी, सुरक्षा और शैक्षिक मानकों का पालन करता है। यदि ऐसा नहीं है, तो सम्मेलन में भाग लेने का निर्णय पुनर्विचार करने योग्य है, ताकि इस प्रकार के उल्लंघनों का समर्थन करने से बचा जा सके।

शर्मा का यह पत्र न केवल सिटी मोंटेसरी स्कूल के कृत्यों के खिलाफ है, बल्कि उन अधिकारियों की भी आलोचना करता है जिन्होंने इन उल्लंघनों को नजरअंदाज किया है। यह पत्र उस संदेश को प्रदर्शित करता है जो दुनिया भर के न्याय और शासन के अग्रणी विचारकों से अपेक्षित है: क्या हम एक ऐसे संस्थान का समर्थन करेंगे जो बच्चों और समाज के अधिकारों और सुरक्षा के प्रति लापरवाह है?

अंततः, यह सवाल उठता है कि क्या वे प्रमुख न्यायाधीश और विधिक अधिकारी जो इस सम्मेलन में भाग लेने जा रहे हैं, वे न्याय, सुरक्षा और मानवाधिकार के सर्वोत्तम सिद्धांतों के पक्ष में खड़े होंगे, या एक ऐसे संस्थान का समर्थन करेंगे जो इन मूलभूत सिद्धांतों का उल्लंघन कर रहा है। संजय शर्मा की अपील एक गहरी चेतावनी है, जो समाज और शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक बदलाव लाने की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

 

 

Call for Boycott of 25th International Conference of Chief Justices of the World Due to Grave Violations by City Montessori School


Lucknow, November 23, 2024 — In a move that has stirred controversy, renowned social activist and legal rights advocate Sanjay Sharma has issued a powerful appeal to the esteemed dignitaries, judges, and legal experts set to attend the 25th International Conference of Chief Justices of the World, scheduled to take place from November 20-24, 2024, in Lucknow. Sharma has called for a complete boycott of the event, citing serious and persistent violations of legal, safety, and human rights norms by the institution hosting the conference, City Montessori School (CMS).

 


City Montessori School, which is recognized as one of the largest chains of private schools in India, is under intense scrutiny for a range of breaches that undermine both national and international standards of justice and governance.

 


The activist, in his letter addressed to key dignitaries including the President of India, the Chief Justice of India, several Union Ministers, the Chief Minister of Uttar Pradesh, and various other high-ranking officials, has raised alarm about the school’s blatant disregard for constitutional and statutory mandates that directly affect the welfare and rights of students, staff, and the broader community.


 

Sharma’s letter meticulously outlines four major areas of concern:

1.     Violation of Fire Safety Norms: CMS has been consistently cited for failing to adhere to crucial fire safety regulations. Reports indicate that multiple CMS campuses lack basic fire safety measures such as fire exits, alarms, and firefighting equipment, despite the requirements set out in the National Building Code of India, 2005. These failures pose an imminent risk to the lives of thousands of children and staff members, yet the management has turned a blind eye to these threats, blatantly disregarding Section 4 of the Fire Safety Act.

2.     Non-Compliance with Housing and Development Norms: The school’s campuses are reportedly built without obtaining the necessary clearances from the Housing and Urban Planning Authority. The violation of local building regulations and the Bhartiya Nyaya Sahita Section 125 (Act endangering life or personal safety of others) raises critical questions about the safety and legality of CMS’s construction practices, further compromising the well-being of those within the institution.

3.     Breach of the Right to Education Act (RTE): CMS has come under fire for discriminatory admission practices, charging exorbitant fees, and failing to meet the requirements of the Right of Children to Free and Compulsory Education Act, 2009 (RTE Act). This not only violates the fundamental right to education guaranteed under Article 21A of the Indian Constitution but also perpetuates inequity in an institution that should be a beacon of inclusion and opportunity for all children, irrespective of their socio-economic status.

4.     Neglect of Civic and Environmental Norms: The school has also been accused of gross negligence in maintaining hygiene, sanitation, and waste disposal on its premises, with several reports highlighting unsanitary conditions. Such neglect violates both local municipal regulations and Article 47 of the Indian Constitution, which mandates the state’s responsibility to improve public health and provide safe and conducive environments for educational activities.

 


Sharma’s appeal, however, does not stop at merely condemning the actions of the school. He goes further to address the ethical implications for those planning to attend the conference hosted by CMS. He implores the Chief Justices and legal dignitaries who are expected to participate in this global gathering to seriously reconsider their attendance, as doing so could inadvertently endorse an institution that has shown a disregard for the most basic principles of governance, justice, and human rights.

 

Sharma asserts that by participating in an event hosted by an institution that flouts safety regulations, discriminates against marginalized children, and neglects its moral and legal duties, these esteemed judges and legal officials would risk tarnishing the integrity of the conference. Such actions would set a dangerous precedent by endorsing an organization that undermines the very values that the conference seeks to uphold—values of fairness, justice, and the rule of law.

 


In his letter, Sharma condemns not only the actions of City Montessori School but also the apparent inaction of the authorities who have allowed such violations to continue unchecked. He expresses his deep concern about the message this sends to the global community, particularly as such an event is aimed at fostering dialogue on the administration of justice worldwide. He calls upon the authorities to uphold the principles of accountability and transparency, urging them to take immediate steps to investigate and address the school’s numerous violations.

 

Sharma also raises an important question: how can global leaders in law and justice stand in solidarity with an institution that so flagrantly disrespects the rights of its students, staff, and the larger public? His call for a boycott is a plea for justice and reform—an appeal to the global community of legal minds to not be complicit in endorsing practices that run contrary to the ethical standards of education and governance.

 

As the conference draws nearer, the eyes of the world are upon the authorities in Lucknow, as well as those planning to attend the event. The question now remains: will they choose to stand for justice, or will they allow an event that should champion the cause of equity to be overshadowed by the shadows of institutional negligence and human rights violations?

 

Sharma’s letter serves as a reminder that in matters of justice, there can be no compromise. Educational institutions, especially those entrusted with shaping young minds, must be held to the highest standards of responsibility, and when they fall short, it is up to the greater community to take a stand.

Wednesday, November 20, 2024

सिटी मोंटेसरी स्कूल द्वारा आयोजित मुख्य न्यायाधीशों के 25वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का बहिष्कार करने की अपील.

 


लखनऊ, 20 नवम्बर 2024: 

सिटी  मोंटेसरी स्कूल (CMS) द्वारा आयोजित की जा रही 25वीं अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। इस सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रमुख न्यायाधीशों, जनता के नुमाइन्दों  और अन्य अधिकारियों से अनुरोध किया गया है कि वे इस आयोजन का बहिष्कार करें, क्योंकि  सिटी  मोंटेसरी स्कूल कई गंभीर कानूनी और सुरक्षा उल्लंघनों में लिप्त है।

 

संजय शर्मा, एक कानूनी जागरूकता कार्यकर्ता और मानवाधिकार रक्षक, ने एक पत्र के माध्यम से इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है। उन्होंने सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिष्ठित लोगों से अपील की है कि वे इस कार्यक्रम से दूरी बनाए रखें, जब तक कि  सिटी  मोंटेसरी स्कूल द्वारा किए गए उल्लंघनों को दूर नहीं किया जाता।

 

पत्र में शर्मा ने चार प्रमुख उल्लंघनों की ओर ध्यान आकर्षित किया:

 

1. अग्नि सुरक्षा मानकों का उल्लंघन 

    सिटी  मोंटेसरी स्कूल के विभिन्न कैंपसों में अग्नि सुरक्षा के मानकों का पालन नहीं किया जा रहा है। स्कूल के कई कैंपसों में अग्नि अलार्म, उचित अग्नि निकासी और अग्नि-रोकथाम उपकरणों की कमी पाई गई है, जो बच्चों और कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए खतरे का कारण बनते हैं।

 

2.आवास और विकास मानकों का उल्लंघन 

   स्कूल ने स्थानीय निर्माण और शहरी योजना के नियामकों का पालन नहीं किया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, स्कूल की इमारतें बिना उचित स्वीकृतियों के बनाई गई हैं, जो सुरक्षा मानकों का उल्लंघन करती हैं।

 

3. शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) का उल्लंघन 

   स्कूल ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE) का उल्लंघन किया है। CMS पर आरोप है कि यह स्कूल बच्चों से अत्यधिक शुल्क वसूलता है, जो संविधान के अनुच्छेद 21A के तहत मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है।

 

4. नगर निगम और नागरिक अधिकारियों के मानकों की अनदेखी 

    सिटी  मोंटेसरी स्कूल ने नगर निगम के विभिन्न नियमों का पालन नहीं किया है, जिनमें सफाई, कचरा निस्तारण, और पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन शामिल है। इससे न केवल शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य भी खतरे में है।

 

संजय शर्मा ने पत्र में कहा कि जब तक  सिटी  मोंटेसरी स्कूल इन उल्लंघनों को ठीक नहीं करता, तब तक इस सम्मेलन में भाग लेने से बचना चाहिए, क्योंकि यह न्याय और शासन के बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन है। उन्होंने यह भी कहा कि सम्मेलन में भाग लेने से स्कूल की अव्यवस्था और कानूनी उल्लंघनों को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन मिल सकता है, जो न केवल भारत, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कानून और न्याय के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन होगा।

 

शर्मा ने सम्मेलन में भाग लेने वालों से अपील की कि वे  सिटी  मोंटेसरी स्कूल द्वारा किए गए इन गंभीर उल्लंघनों की जांच करें और सुनिश्चित करें कि सभी कानूनी, सुरक्षा, और शिक्षा संबंधी मानकों का पालन किया जा रहा है। यदि उल्लंघन दूर नहीं किए जाते हैं, तो उन्होंने सम्मेलन का बहिष्कार करने का अनुरोध किया है।

 

संजय शर्मा का मानना है कि न्याय, पारदर्शिता, और मानवाधिकारों का सम्मान किए बिना कोई भी सम्मेलन प्रभावी नहीं हो सकता है। उन्होंने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाते हुए सभी संबंधित अधिकारियों से इन उल्लंघनों को शीघ्र सुधारने की मांग की है।

Thursday, October 17, 2024

आरटीआई जवाब में उत्तर प्रदेश में अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम पर महत्वपूर्ण जानकारी का खुलासा


लखनऊ
/ शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2024...........

हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार के विधि विभाग के जन सूचना अधिकारी (PIO) राजेंद्र प्रसाद यादव द्वारा दिए गए आरटीआई जवाब से अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी सामने आई है। यह आरटीआई देश के प्रमुख कानूनी जागरूकता, पारदर्शिता, जवाबदेही और मानवाधिकार कार्यकर्ता संजय शर्मा द्वारा दायर की गई थी। संजय शर्मा, जो अपने निःस्वार्थ समर्पण के लिए जाने जाते हैं, ने समाज के कल्याण और न्याय के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे केवल कानूनी समुदाय बल्कि पूरे समाज को लाभ हो रहा है।

 


शर्मा द्वारा बीती 16 सितम्बर को दायर की गई इस आरटीआई के माध्यम से उत्तर प्रदेश में लंबे समय से लंबित अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम के क्रियान्वयन की स्थिति और इसके संबंध में की गई चर्चाओं की जानकारी मांगी गई थी। संजय शर्मा की यह पहल उनके न्याय और कानूनी समुदाय के कल्याण के प्रति समर्पण को दर्शाती है, और यह सुनिश्चित करती है कि सरकारी नीतियों और कार्रवाइयों को जनता के समक्ष पारदर्शी रूप में प्रस्तुत किया जाए।

 

आरटीआई प्रतिक्रिया 7 अक्टूबर 2024 को जारी की गई है, जो आरटीआई अधिनियम द्वारा निर्धारित 30 दिनों की समय सीमा के भीतर है।

 

आरटीआई जवाब से हुए प्रमुख खुलासे हैं :

 

1.    विधेयक की लंबित स्थिति: आरटीआई के जवाब में यह पुष्टि की गई है कि राज्य सरकार ने अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम की आवश्यकता को स्वीकार किया है, लेकिन अभी तक इस विधेयक को विधानसभा में पेश नहीं किया गया है। इस देरी ने उत्तर प्रदेश के अधिवक्ताओं की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी है, जो अपने कार्य में कई प्रकार की चुनौतियों और खतरों का सामना करते हैं।

2.    विधि विभाग की भूमिका: उत्तर प्रदेश का विधि विभाग अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम से संबंधित प्रस्तावों के प्रारूपण में शामिल रहा है। हालांकि, विभागीय विचार-विमर्श के बावजूद, यह प्रक्रिया अपेक्षा से धीमी रही है। इस खुलासे से कानूनी समुदाय में सरकार से जल्द से जल्द इस प्रक्रिया को तेज करने की मांग उठी है।

3.    अधिवक्ताओं की सुरक्षा: जवाब में अधिवक्ताओं की सुरक्षा के मुद्दे पर प्रकाश डाला गया है, जो एक गंभीर चिंता का विषय है। सरकार की मंशा अधिवक्ताओं को बेहतर सुरक्षा प्रदान करने की है, लेकिन इस मंशा और वास्तविक क्रियान्वयन के बीच अब भी अंतर बना हुआ है।

4.    तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता: आरटीआई में राज्य में तत्काल अधिवक्ता संरक्षण संबंधी कानून लाने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया गया है, जो अन्य राज्यों में पहले से मौजूद सुरक्षा प्रावधानों की तरह हो। उत्तर प्रदेश के अधिवक्ता लगातार अपने व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए जोखिम का सामना कर रहे हैं, और इस दिशा में कानूनी ढांचा होने से उनकी समस्याएं और बढ़ गई हैं।

 

 

 

संजय शर्मा, जो कानूनी पारदर्शिता और मानवाधिकारों के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं, ने एक बार फिर से न्याय के प्रति अपने अटूट समर्पण को प्रदर्शित किया है। उनकी आरटीआई पहल के माध्यम से, वे लगातार जनता को महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराकर सामाजिक बदलाव के लिए प्रेरित कर रहे हैं। राज्य सरकार से पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित कराने के लिए उनके निःस्वार्थ प्रयासों ने उन्हें कानूनी सक्रियता के क्षेत्र में अग्रणी स्थान दिलाया है।

 

उत्तर प्रदेश के अधिवक्ता समुदाय को अब अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम के पारित होने की प्रतीक्षा है, और संजय शर्मा की इस दिशा में की गई कार्रवाई यह दर्शाती है कि नागरिकों की भागीदारी और सतर्कता से ही कानूनी पेशेवरों के अधिकारों और सुरक्षा की अनदेखी नहीं की जा सकती। उनका निरंतर प्रयास यह संदेश देता है कि वास्तविक बदलाव सक्रिय भागीदारी और लगातार प्रयासों से ही आता है।

 

संजय शर्मा का न्याय के प्रति यह समर्पण, कानूनी समुदाय और समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत है। उनका निःस्वार्थ संघर्ष पारदर्शी और न्यायसंगत प्रणाली की स्थापना के लिए साहस और समर्पण का उदाहरण प्रस्तुत करता है।

 

अधिक अपडेट के लिए संजय शर्मा से  ईमेल - sanjaysharmalko@icloud.com और फोन नंबर – 8004560000, 9454461111, 9415007567 पर संपर्क किया जा सकता है l