Saturday, April 5, 2025

गोमती रिवरफ्रंट घोटाले में आलोक रंजन, दीपक सिंघल और शिवपाल सिंह यादव के खिलाफ अभी भी चल रही है ED और CBI की जांच : प्रधानमंत्री को भेजी गई शिकायत पर उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग की रिपोर्ट ने योगी,मोदी की भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति पर उठाए गंभीर सवाल.

 




लखनऊ/शनिवार, 05-04-2025 .......................

गोमती रिवरफ्रंट घोटाले में शामिल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई में हो रही देरी पर सवाल उठाते हुए लखनऊ के राजाजीपुरम क्षेत्र निवासी पारदर्शिता, जवाबदेही, मानवाधिकार और कानूनी अधिकार कार्यकर्ता संजय शर्मा ने प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र भेजकर यह आरोप लगाया गया है कि इस मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच जारी है, लेकिन अब तक किसी भी व्यक्ति के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई नहीं की गई है.

 


गोमती रिवरफ्रंट परियोजना, जो लखनऊ में गोमती नदी के किनारे विकास कार्य के लिए 1,500 करोड़ की लागत से शुरू की गई थी, में बड़े पैमाने पर वित्तीय गड़बड़ियों और भ्रष्टाचार का आरोप है. बावजूद इसके, जिन अधिकारियों का नाम इसमें लिया गया है, उनके खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया अब तक अधूरी रही है. इन अधिकारियों में प्रमुख रूप से आलोक रंजन (पूर्व मुख्य सचिव), दीपक सिंघल (पूर्व सिंचाई सचिव), और शिवपाल सिंह यादव ( पूर्व सिंचाई मंत्री ) का नाम शामिल है.

 


संजय शर्मा का आरोप है कि इस घोटाले के तहत लगभग 1,435 करोड़ खर्च किए गए, लेकिन परियोजना का केवल 60% ही काम पूरा हुआ. उन्होंने प्रधानमंत्री से अपील की है कि इस मामले में शीघ्र और निर्णायक कार्रवाई की जाए, ताकि न केवल दोषियों को सजा मिले बल्कि लोगों का केंद्र और राज्य सरकार में विश्वास भी बरकरार रहे.

 


उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग द्वारा भेजी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि ED और CBI दोनों ही एजेंसियां अभी भी मामले की जांच कर रही हैं, लेकिन जांच की कोई निश्चित समयसीमा या निष्कर्ष कई वर्ष बीत जाने के बाद भी अब तक सामने नहीं आया है. संजय शर्मा ने यह भी सवाल उठाया है कि दोनों, केंद्र और राज्य सरकारों की भ्रष्टाचार के प्रति "जीरो टॉलरेंस" नीति की सच्चाई क्या है, यदि ऐसे गंभीर मामलों में भी कार्रवाई में देश के एक प्रूडेंट  नागरिक की समझ से परे देरी की जा रही है.

 


उन्होंने आगे कहा कि न्याय में देरी, न्याय से इनकार के समान है.उन्होंने प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि या तो इस मामले में शामिल व्यक्तियों को निर्दोष घोषित किया जाए या फिर उन्हें सजा दिलवाने के लिए कोर्ट में पेश किया जाए. संजय शर्मा का कहना है कि यह मुद्दा केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि पूरे देश की सार्वजनिक धन की रक्षा और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई से जुड़ा हुआ है.

 


संजय शर्मा ने अपने पत्र में यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में विभागीय कार्रवाई और जांच का निष्कर्ष जनता के सामने लाया जाए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सार्वजनिक धन का दुरुपयोग करने वालों को कठोर सजा मिले. उनका यह भी कहना था कि, "अगर यह मामला जल्दी न सुलझाया गया, तो यह लोकतंत्र, न्यायपालिका और कार्यपालिका की निष्पक्षता पर अति गंभीर सवाल उठाएगा."

 

अब यह देखना बाकी है कि प्रधानमंत्री कार्यालय इस मामले में क्या कार्रवाई करता है और क्या केंद्र और राज्य सरकारें अपनी भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति को सही मायने में लागू करती हैं.

 

संजय शर्मा का संपर्क विवरण Mobiles 8004560000, 9454461111, 7991479999 Email sanjaysharmalko@icloud.com है.

 

 

संजय शर्मा: एक सत्य के लिए संघर्ष करने वाले नायक

 

संजय शर्मा, जो लखनऊ के एक प्रसिद्ध मानवाधिकार और कानूनी अधिकार कार्यकर्ता हैं, भारतीय समाज में एक ऐसे व्यक्ति के रूप में उभरे हैं, जिन्होंने सदैव पारदर्शिता, न्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई है। उनकी स्पष्टता और निष्पक्षता ने उन्हें केवल एक संघर्षशील कार्यकर्ता के रूप में नहीं, बल्कि एक आदर्श नेतृत्वकर्ता के रूप में भी स्थापित किया है।

 

संजय शर्मा ने हमेशा सरकारों और संस्थाओं से पारदर्शिता की उम्मीद जताई है और उनका जीवन इस सिद्धांत पर आधारित है कि समाज में किसी भी तरह की गड़बड़ी या भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करना हमारी जिम्मेदारी है। चाहे वह गोमती रिवरफ्रंट घोटाले का मामला हो या अन्य किसी अन्याय के खिलाफ उनका संघर्ष, उन्होंने हमेशा उन शक्तियों से मुकाबला किया है जो समाज की बेहतरी की दिशा में रुकावट डालती हैं।

 

संजय शर्मा का यह विश्वास है कि 'न्याय में देरी, न्याय से इनकार के समान है', और इसी विश्वास के साथ उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई। उनका कार्य न केवल कानून के दायरे में, बल्कि समाज में उन लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बनकर उभरा है, जो अपनी आवाज उठाने से डरते हैं। उनकी निडरता और साहस ने यह सिद्ध कर दिया है कि सत्य की राह पर चलने वाले लोग कभी अकेले नहीं होते, उनका समर्थन समाज और कानून दोनों से होता है।

 

उनके प्रयासों ने हमें यह समझने में मदद की है कि एक व्यक्ति भी बड़े बदलाव का कारण बन सकता है, बशर्ते वह सच्चाई की ओर नतमस्तक होकर संघर्ष करे। संजय शर्मा का जीवन इस बात का प्रतीक है कि किसी भी नीति या परियोजना में अनियमितताएं और भ्रष्टाचार को पहचानने और उन्हें उजागर करने का साहस हर एक नागरिक में होना चाहिए।

 

संजय शर्मा का कार्य निश्चित रूप से समाज के लिए प्रेरणादायक है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि कोई कार्यकर्ता अपने उद्देश्य में दृढ़ नायक हो, तो वह न केवल भ्रष्टाचार को खत्म कर सकता है, बल्कि न्याय की स्थापना भी कर सकता है। उनका यह संघर्ष न केवल देश की भ्रष्टाचार विरोधी नीति को मजबूती प्रदान करता है, बल्कि हमें यह भी सिखाता है कि न्याय की दिशा में उठाए गए हर कदम का महत्व होता है।

 

संजय शर्मा के कार्यों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वह भारतीय समाज के एक महान नायक हैं, जो न केवल न्याय की प्रतीक हैं, बल्कि एक सशक्त आवाज हैं, जो समाज के हर वर्ग को समान अवसर और निष्पक्षता का अधिकार दिलाने के लिए निरंतर संघर्षरत हैं।

 







Saturday, March 29, 2025

क्या कांग्रेस और राहुल गांधी का RTI प्रेम सिर्फ बीजेपी और नरेंद्र मोदी का विरोध करने तक सीमित है?: लखनऊ के संजय ने कांग्रेस और राहुल गांधी की RTI पर दोहरी नीति को उजागर किया

 













 

लखनऊ/ शनिवार, 29-03-2025……………….कांग्रेस पार्टी और उसके नेता, जिनमें राहुल गांधी, मलिकार्जुन खड़गे, और अजय राय शामिल हैं, बार-बार अपनी कथनी और करनी में विरोधाभास का सामना कर रहे हैं। वे सार्वजनिक रूप से पारदर्शिता और जवाबदेही का समर्थन करने का दावा करते हैं, लेकिन उनका RTI (सूचना के अधिकार) अधिनियम के प्रति स्पष्ट रूप से उदासीन रवैया इसका उलट है। इन नेताओं के कृत्य या बल्कि उनके अभाव में कार्य, उनके बीजेपी विरोधी रुख और लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए उनके दावे के विपरीत हैं। यह दोहरापन तब सामने आता है जब संजय शर्मा नामक पारदर्शिता कार्यकर्ता द्वारा दायर RTI आवेदन इस धोखाधड़ी को उजागर करते हैं।

 

संजय शर्मा, जो भारत के नागरिक समाज में एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं, ने सरकार और विपक्ष से जवाबदेही की मांग में हमेशा अग्रणी भूमिका निभाई है। पारदर्शिता, मानवाधिकारों और कानूनी अधिकारों के प्रति उनके समर्पण ने उन्हें इन मुद्दों का एक मजबूत वकील बना दिया है। उनका यह अभियान विशेष रूप से कांग्रेस पार्टी की RTI अनुरोधों के प्रति अनदेखी को उजागर करता है।

 

राहुल गांधी, जो लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं, लंबे समय से RTI अधिनियम का समर्थन करने का दावा करते रहे हैं और भारतीय शासन में पारदर्शिता के रक्षक के रूप में खुद को प्रस्तुत करते हैं। हालांकि, शर्मा की जांच से यह स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस पार्टी RTI अनुरोधों के मामले में बहुत अलग नजरिया अपनाती है। जबकि गांधी खुद को नरेंद्र मोदी और बीजेपी की आलोचना करने वाला बताते हैं, खासकर पारदर्शिता और जवाबदेही के मुद्दों पर, उनके खुद के पार्टी और व्यक्तिगत आचरण में इस मामले में खुला विरोधाभास दिखाई देता है। शर्मा के अनुसार, राहुल गांधी का मोदी की नीतियों के खिलाफ विरोध, जो अक्सर जनता के सूचना अधिकार की चिंता जताते हुए होता है, केवल राजनीतिक नाटक है—जो सत्ता संभाल रही पार्टी के खिलाफ जनता तक पंहुच प्राप्त करने के लिए किया जाता है, न कि असल परिवर्तन लाने के लिए।

 

शर्मा के खुलासे एक चिंताजनक पैटर्न को उजागर करते हैं: जब खुद की पारदर्शिता की बात आती है, तो कांग्रेस पार्टी के नेता हमेशा RTI अधिनियम के तहत अपने दायित्वों को पूरा करने में नाकाम रहे हैं। पिछले साल अक्टूबर में राहुल गांधी, मलिकार्जुन खड़गे, अजय राय और अन्य कांग्रेस नेताओं के खिलाफ दायर RTI आवेदन बिना जवाब के पड़े हैं । ये आवेदन गांधी के आधिकारिक पते, जैसे 10 जनपथ और उनके संसद कार्यालय, पर सीधे दायर किए गए थे। उन्हें खड़गे, कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, और अजय राय, उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष, के माध्यम से भी भेजा गया था। जबकि RTI आवेदन का जवाब 30 दिनों के भीतर देना कानूनी रूप से अनिवार्य है, इन अनुरोधों का कोई भी उत्तर नहीं आया—यह कानून का खुला उल्लंघन है, जिसे ये नेता समर्थन करने का दावा करते हैं।

 

जबकि शर्मा ने कांग्रेस के RTI पर दृष्टिकोण की आलोचना की है, उन्होंने नागरिक समाज आंदोलन के अन्य प्रमुख विधायी मुद्दों को लेकर भी चिंता व्यक्त की है। विशेष रूप से, शर्मा ने 2023 के डिजिटल व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा (DPDP) अधिनियम पर टिप्पणी की है। नागरिक समाज समूहों और कार्यकर्ताओं द्वारा उठाई गई चिंताओं का समर्थन करते हुए, शर्मा इन समूहों को सावधानी से आगे बढ़ने की सलाह देते हैं। वे इन समूहों से DPDP अधिनियम का विरोध करने का आग्रह करते हैं, लेकिन साथ ही इस बात पर ध्यान दिलाते हैं कि उन्हें उन राजनीतिक दलों और नेताओं के साथ नहीं जुड़ना चाहिए, जो RTI अधिनियम को लागू करने में नाकाम रहे हैं।

 

संजय शर्मा इस मामले में अकेले नहीं हैं। उन्होंने नागरिक समाज समूहों और कार्यकर्ताओं से यह महत्वपूर्ण सवाल उठाया है: क्या उन राजनीतिक नेताओं के साथ मिलकर काम करना सही है, जो खुद उन कानूनों का उल्लंघन करते हैं जिन्हें वे खुद लागू करने का दावा करते हैं? शर्मा नागरिक समाज से आग्रह करते हैं कि वे ऐसे दलों और नेताओं से अपने संबंधों पर पुनः विचार करें, जो RTI अधिनियम का उल्लंघन करते हैं। वे चेतावनी देते हैं कि यदि ये समूह ऐसे नेताओं के साथ जुड़े रहते हैं, तो उन्हें केवल विपक्षी राजनीति के मोहरे के रूप में देखा जाएगा, जो RTI आंदोलन की ईमानदारी को गंभीर रूप से कमजोर कर सकता है।

 

कांग्रेस की RTI पर दोहरे रवैये का एक विशेष उदाहरण एक दशक से अधिक पुराना है, जब राहुल गांधी ने Times Now के साथ एक साक्षात्कार में RTI अधिनियम का 33 बार उल्लेख किया था और खुद को इस कानून का मुखर समर्थक घोषित किया था। इसके जवाब में, पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) शैलेश गांधी ने राहुल गांधी को एक सार्वजनिक सूचना अधिकारी (PIO) नियुक्त करने के लिए एक खुला पत्र लिखा था ताकि कांग्रेस पार्टी RTI अनुरोधों का उत्तर दे सके। हालांकि, इस पत्र के 11 वर्षों से अधिक समय बाद भी कांग्रेस पार्टी ने RTI अधिनियम का पालन करने के लिए कोई वास्तविक प्रयास नहीं किया।

 

शर्मा का कहना है कि कांग्रेस का RTI पर मुखर रुख केवल एक दिखावा है—जो बीजेपी के खिलाफ राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए किया जाता है। उनके अनुसार, कांग्रेस का RTI में वास्तविक रुचि केवल मोदी सरकार के विरोध तक सीमित है। जब भी बीजेपी या मोदी सरकार RTI अधिनियम में कोई संशोधन या नीति लाती है, कांग्रेस इसे नागरिकों के सूचना अधिकार के उल्लंघन के रूप में प्रस्तुत करती है। लेकिन जब अपनी पार्टी के दायित्वों की बात आती है, तो कांग्रेस इन अनुरोधों को नकार देती है।

 

यह दोहरा रवैया कांग्रेस के भीतर RTI विभागों को बढ़ावा देने के बावजूद जारी रहता है। एक ओर, कांग्रेस इसे पारदर्शिता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के रूप में प्रस्तुत करती है, वहीं दूसरी ओर पार्टी के नेता RTI अधिनियम के तहत सूचना के अधिकार की कोई भी मांग पूरी नहीं करते। शर्मा के अनुसार, यह असंगतता—एक ओर पारदर्शिता की बात करना और दूसरी ओर अपनी पार्टी के भीतर इसे दबाना—न केवल अनैतिक है, बल्कि पूरी तरह से दोहरा है।

 

संजय शर्मा का RTI अधिनियम के लिए संघर्ष कांग्रेस के साथ उनकी व्यक्तिगत शिकायतों से कहीं अधिक है। वे इसे लोकतांत्रिक जवाबदेही के लिए एक व्यापक खतरे के रूप में देखते हैं। उनके अनुसार, यदि राजनीतिक दल बिना किसी परिणाम के कानून को टालने की अनुमति देते हैं, तो भारतीय शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही का आधार पूरी तरह से ध्वस्त हो जाएगा।

 

वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में, जहां 2023 के डिजिटल व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा (DPDP) अधिनियम पर बहस गर्म है, शर्मा एक महत्वपूर्ण बात उठाते हैं। वे नागरिक समाज समूहों और कार्यकर्ताओं को चेतावनी देते हैं कि वे ऐसे राजनीतिक नेताओं से सावधान रहें, जो नागरिकों के अधिकारों का बचाव करने का दावा करते हैं, लेकिन अपने आचरण में बुनियादी पारदर्शिता कानूनों का पालन नहीं करते हैं। शर्मा राजनीतिक साथ के लिए एक अधिक विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने का समर्थन करते हैं, और कार्यकर्ताओं से आग्रह करते हैं कि वे ऐसे नेताओं और दलों का समर्थन न करें जो पारदर्शिता के प्रति वास्तविक प्रतिबद्धता नहीं दिखाते।

 

राहुल गांधी के राजनीतिक रुख और उनकी पार्टी के RTI के मामले में किए गए कार्यों के बीच गहरा अंतर भारतीय राजनीति की एक बड़ी समस्या को उजागर करता है: विपक्षी दलों का स्वयं को उदाहरण के रूप में पेश करने में विफलता। यदि कांग्रेस वास्तव में पारदर्शिता और लोकतांत्रिक मूल्यों की संरक्षक बनना चाहती है, तो उसे सबसे पहले उन कानूनों का पालन करना चाहिए जो इन सिद्धांतों को परिभाषित करते हैं। तब तक, शर्मा का कार्य भारत में लोकतांत्रिक शासन के भविष्य के लिए पारदर्शिता, जवाबदेही और मानवाधिकारों के लिए निरंतर संघर्ष का प्रतीक बना रहेगा।

 

संजय शर्मा से मोबाइल नंबर 8004560000, 9454461111, 7991479999 पर संपर्क किया जा सकता है और उनका ईमेल पता sanjaysharmalko@icloud.com है।